भोपाल। सभी कर्मचारियों को पेंशन लागू करने के राजस्थान सरकार के फैसले के बाद अब मध्यप्रदेश में भी इसकी मांग उठने लगी है। नई पेंशन नीति का विरोध काफी पहले से किया जाता रहा है। जिसके अनुसार साल 2005 के बाद नियुक्त हुए कर्मचारियों को सरकारी पेंशन का लाभ नहीं दिया जाता है।
ऐसे में अब कर्मचारियों ने राजस्थान सरकार की तर्ज पर मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार से भी पुरानी पेंशन स्कीम फिर लागू करने की मांग की है। इस मांग का सर्मथन कांग्रेस ने भी किया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस सरकार से पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की है। ऐसे में अब आने वाले दिनों में यह मुद्दा गरमाने वाला है।
राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है।
मैं मांग करता हूं कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी प्रदेश के कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन प्रणाली को प्रदेश में तत्काल लागू करे।
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) February 25, 2022
पुरानी पेंशन नीति को लागू करने के लिए कर्मचारी संगठन लामबंद हो रहे हैं। यह कर्मचारी संगठन अब बड़े प्रदर्शन की तैयारी भी कर रहे हैं। यह प्रदर्शन 13 मार्च को भोपाल में प्रस्तावित है। इस प्रदर्शन में राजनीतिक दलों का भी प्रभाव होगा क्योंकि कर्मचारियों के अलावा राजनीतिक संगठन भी इसके लिए मांग कर रहे हैं।
कांग्रेसी विधायक नीलांशु, महेश परमार और कुणाल चौधरी सहित कई दूसरे विधायकों ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसके लिए पत्र लिखा है। इस विषय को कांग्रेस ने 2023 के चुनाव अभियान में प्रमुखता से रखने का निर्णय लिया है।
राजस्थान में पुरानी पेंशन बहाल होने के बाद मध्य प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल (कांग्रेस) के विधायकों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर के मध्य प्रदेश में भी पुरानी पेंशन बहाल की मांग को तेज कर दिया है!#पुरानी_पेंशन_बहाल_करो_मध्यप्रदेश_सरकार pic.twitter.com/GDB7w5CYSk
— Misson MP Election 2023 (@Nai_yatra) February 26, 2022
कर्मचारियों के बीच पेंशन एक बड़ा मुद्दा है। नई पेंशन नीति की कई परेशानियां हैं। इसका कर्मचारियों के सभी संगठन विरोध करते रहे हैं। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस नीति का विरोध करते हुए बताया कि इसके दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ कर्मचारी जब रिटायर हुए तो उनकी पेंशन केवल 800 से 1500 रुपये प्रतिमाह बनी। इस पैसे में परिवार तो दूर खुद पेंशन पाने वाले कर्मचारी का भी भरण-पोषण संभव नहीं है।
पुरानी पेंशन नीति में कर्मचारी को उनके सेवाकाल में मिलने वाले वेतन की लगभग आधी राशि पेंशन के रुप में मिलती थी और डीए बढ़ने पर पेंशन भी बढ़ जाती थी जबकि नई नीति में ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसे में इस मुद्दे के साथ कर्मचारी संगठनों का साथ आना तय माना जा रहा है।
ये है नई पेंशन नीति…
1 जनवरी 2005 के बाद भर्ती अधिकारी-कर्मचारियों के लिए अंशदायी पेंशन योजना लागू है। इसके तहत कर्मचारी 10% और इतनी ही राशि सरकार मिलाती है। संघ के अनुसार, इस राशि को शेयर मार्केट में लगाया जाता है। इसके चलते कर्मचारियों का भविष्य शेयर मार्केट के ऊपर निर्भर हो गया है। रिटायरमेंट होने पर 60% राशि कर्मचारी को नकद और शेष 40% राशि की ब्याज से प्राप्त राशि पेंशन के रूप में कर्मचारी को दी जाती है।
इसके अलावा प्रदेश का अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा भी इस विषय को लेकर चार मार्च को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपने जा रहा है। इस विषय में 26 फरवरी शनिवार को संगठन की बैठक में यह निर्णय लिया जाएगा।
#मध्यप्रदेश_अधिकारी_कर्मचारी_संयुक्त_मोर्चा पूरे प्रदेश में दिंनाक 4 मार्च 2022 सोंपेगा ज्ञापन
मध्य प्रदेश अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा की बैठक आज दिनांक 26/02/2022 भोपाल में सम्पन्न हुई बैठक में कर्मचारियो अधिकारियों#पुरानी_पेंशन_बहाल_करो
1/1 pic.twitter.com/nZ4GjSHW1y— Sumit A.Sharma (@sumits7633) February 26, 2022
राजस्थान से उठा पेंशन का मुद्दा प्रदेश की राजनीति में बड़ा विषय होने वाला है। झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने भी इस मुद्दे पर फैसला लेने के निर्णय लिया है। ऐसे में शिवराज सरकार पर भी इसे लेकर दबाव होगा और कहा जा रहा है कि वे भी इसे लेकर जल्दी फैसला ले सकते हैं। हालांकि फिलहाल इसके कोई संकेत नहीं दिये गए हैं।