भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य कर्मचारी संघ के प्रतिनिधियों की तरफ से शुक्रवार को कर्मचारी आयोग के गठन के संबंध में एक पत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम लिखा गया है।
साथ ही साथ, संविदाकर्मियों के लिए नीति बनाने, अनुकंपा नियुक्ति के नियमों में बदलाव, आवास, दैनिक वेतनभोगी को नियमित करने समेत 10 सूत्रीय मांगों को भी पूरा करने की बात कहा गया है।
राज्य कर्मचारी संघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह ने पत्र में कहा है कि कर्मचारी कल्याण समिति को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसका असर कर्मचारियों पर पड़ता है। मांगों के संबंध में ठोस चर्चा और उस पर अमल नहीं होता है। पूर्व में कर्मचारी कल्याण समिति के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं इसलिए कर्मचारी आयोग का गठन किया जाए।
2013 में विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भाजपा ने अधिकारीयों-कर्मचारियों की वेतन विसंगति एवं क्रमोन्नति-पदोन्नति आदि के युक्ति-युक्तिकरण के लिए आयोग के गठन की बात कही थी।
सरकार ने रिटायर्ड मुख्य सचिव अजय नाथ की अध्यक्षता में आयोग का भी गठन किया था। यह आयोग अच्छे तरीके से काम कर रहा था। इसी बीच आयोग अध्यक्ष ने पद से इस्तीफा दे दिया। इससे आयोग के कार्य शिथिल हो गए।
मोर्चा ने इन मांगों को भी रखा –
- जिला मुख्यालयों पर आवास बने।
- दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को रिक्त स्थानों पर नियमित करने के लिए आरक्षण नीति हो।
- 50 वर्ष से अधिक उम्र के सरकारी कर्मचारियों को अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की तरह अनिवार्य वार्षिक स्वास्थ्य जांच हो।
- संविदा कर्मचारियों के लिए ‘मानव संसाधन’ नीति बने।
- कर्मचारी कल्याण कोष हो।
- कर्मचारियों को तृतीय समयमान वेतनमान का लाभ दिया जाए।
- अनुकंपा नियुक्ति के नियमों में परिवर्तन हो।
- कार्यभारित कर्मचारियों की सुविधाओं में विस्तार किया जाए।
- अच्छा काम करने वाले शिक्षक व कर्मचारियों को राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी शिक्षण एवं प्रशासनिक विधि और ट्रेनिंग दी जाए।
- सरकारी सेवाओं को होम लोन उपलब्ध कराने के लिए बैंक से एमओयू हो। सरकार गारंटर बने। सरकार के सेवाकर्मी की आय के आधार पर 30 लाख रुपये तक का लोन न्यूनतम दर पर मिले।