डिंडोरी:
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में दिए गए बयान पर विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें उन्होंने अपर नर्मदा, राघवपुर, और बसनिया बांध प्रभावितों के लिए मुआवजा बढ़ाने की बात कही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी समिति के अध्यक्ष बजारी लाल सर्वटे ने कहा कि प्रभावितों की मांग मुआवजा नहीं, बल्कि बांध को निरस्त करने की है। ग्राम सभा में इस मुद्दे पर प्रस्ताव पारित कर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को सौंपा जा चुका है, लेकिन उनकी असहमति के बावजूद प्रशासन भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को आगे बढ़ा रहा है, जो कि पेसा कानून और नियमों का उल्लंघन है।
समिति के उपाध्यक्ष तितरा मरावी ने बताया कि मंडला और डिंडोरी जिले अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जहां पेसा कानून 1996 और मध्यप्रदेश पेसा नियम 2022 लागू हैं। कानून के अनुसार, ग्राम सभा की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है, लेकिन यहां प्रशासन नियमों का उल्लंघन कर रहा है।
समिति का दावा है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2016 में विधानसभा में लिखित रूप में कहा था कि बसनिया समेत कई बांधों को निरस्त किया गया था। अब इन बांधों को पुनः प्रारंभ करने के पीछे निजी कंपनियों और नौकरशाहों की गहरी साजिश है। उन्होंने चेतावनी दी कि बांध के निर्माण से क्षेत्र की पर्यावरणीय, जैवविविधता और जलीय जीवों पर अपरिवर्तनीय नुकसान होगा।
बैठक में उपस्थित सदस्यों ने सरकार से आदिवासी समाज की मांग को ध्यान में रखते हुए बांध को निरस्त करने की अपील की। साथ ही, निर्णय लिया गया कि आगामी 22 सितंबर को विश्व नदी दिवस के अवसर पर नर्मदा को बचाने के लिए संकल्प सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
इस बैठक में जमुना बाई तेकाम, बरतो बाई मरावी, राजेन्द्र कुलस्ते, सुबेसा बाबा विश्वकर्मा, महेन्द्र परस्ते, लहर दास सोनवानी, प्रेम लाल कर्मो, अर्जुन कर्मो, लामू सिंह मरावी, सुरेश मरावी आदि मौजूद थे।