हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई और बेमौसम बारिश ने बढ़ाई मवेशियों के लिए भूसे की किल्लत


जो भूसा 8-12 हज़ार रु का प्रति ट्रॉली बिकता था वह इस समय उसकी कीमत अब 3-6 हजार रुपये तक आ गई है। 


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

नरसिंहपुर। उन्नत तकनीक कई सुविधाएं देती है तो कई समस्याएं भी खड़ी कर देती है यहां खेती-बाड़ी से भरपूर नरसिंहपुर जिले में मवेशियों के लिए गेहूं के भूसे की किल्लत है। हार्वेस्टर से हुई कटाई के बाद अब नरवाई जलाई जा रही है और मई के पहले हफ्ते में हुई बारिश ने बड़े पैमाने पर गेहूं के भूसे को खराब कर दिया है। जिससे गेहूं के भूसे की किल्लत मवेशियों के लिए उनका मनपसंद भोजन महंगा हो गया।

पशु पालकों के लिए गेहूं का भूसा दुधारु मवेशियों के लिए बेहतर होता है। खली चुनी के साथ गेहूं के भूसे से दूध की मात्रा बढ़ती है और पशुओं को पौष्टिक भोजन भी मिल जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जिले में बड़े पैमाने पर गेहूं की कटाई हार्वेस्टर से हो रही है। एक तरह के हार्वेस्टर से हो रही कटाई से भूसा नहीं निकलता जबकि दूसरी तरह के हार्वेस्टर की कटाई से गेहूं के साथ-साथ भूसे का इंतजाम भी हो जाता है लेकिन बहुत कम ही किसान ऐसे हैं जो गेहूं की कटाई के साथ भूसा की व्यवस्था करते हैं। इनमें प्रायः वह किसान होते हैं जिनके घर गाय भैंस होती हैं।

सोबाबीन का भूसा

मशीन से हो रही कटाई के बाद किसान अब खेतों में खड़ी नरवाई जला रहे हैं। अलावा इसके, जिन कुछ किसानों ने परंपरागत तरीके से हार्वेस्टिंग की है और उससे जो भूसा निकला वह मई के पहले हफ्ते में हुई बेमौसम बारिश से खराब हो गया था। उसकी सुनहरी चमक चली गई और रंग में अंतर आ गया है और पानी पड़ने से गंध भी बदल गई इससे वह मवेशियों के लिए काम का नहीं रहा और बाजार में उसके दाम नहीं मिलेंगे और घरेलू तौर पर भी इतनी खपत संभव नहीं है।

किसानों के मुताबिक उसके लेनदार रंग और चमक देखकर खरीदने में आनाकानी कर रहे हैं। जो भूसा 8-12 हज़ार रु का प्रति ट्रॉली बिकता था वह इस समय उसकी कीमत अब 3-6 हजार रुपये तक आ गई है।

जिले में भूसा की पूछ परख के लिए जबलपुर जिले के कई अंचलों से लोग नरसिंहपुर पहुंच रहे हैं लेकिन उन्हें गेहूं का भूसा नहीं मिल रहा है। विशेष तौर पर डेरी और दुग्ध व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए यह के लिए यह मुश्किल हो गई है जो साल भर के लिए बड़े पैमाने पर स्टॉक कर लेते हैं। वहीं क्षेत्र के किसान अब गेहूं के भूसा की बजाय चना, सोयाबीन, उड़द के भूसे से का इस्तेमाल कर रहे हैं।

किसान बताते हैं कि खली, चुनी महंगी हो गई इसलिए अब गेहूं के भूसे को मवेशियों को देना महंगाई के दौर में खर्च बढ़ाना ह। इसलिए वह आमतौर पर चना, सोयाबीन ,मूंग आदि के भूसे का इस्तेमाल करते हैं। नरसिंहपुर जिले में दुधारु पशु ,मवेशियों के लिए गेहूं का भूसा दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से बढ़िया माना जाता है इसकी तासीर गर्म नहीं होती जिससे दुधारू पशुओं के दूध की मात्रा में अंतर नहीं आता।

डोंगरगांव के किसान या पशुपालक भुवनेश्वर यादव कहते हैं कि खली चुनी महंगी हो गई इसलिए अब गेहूं का भूसा उपयोग नहीं करते हैं। चने और सोयाबीन का भूसा गर्म होता है इससे देर सबेर मवेशियों के दूध की मात्रा में अंतर तो आ जाता है।

समनापुर के किसान रोशन पटेल कहते हैं कि उनके भूसे को जबलपुर के पाटन समेत अन्य क्षेत्रों से लेने आते हैं लेकिन इस बार मई के पहले हफ्ते में हुई बारिश से भूसा ख़राब हो गया। 14 – 15 एकड़ के गेहूं से जो भूसा निकलता था वह ढेर 20- 25हज़ार में बिक जाता था वह सिर्फ इस बार साढ़े 11 हज़ार रुपये कीमत मिली है।

खेतों में नरवाई जलाई जा रही है।

खेतों में नरवाई जलना शुरूः रबी की फसल की कटाई के बाद अब किसान खरीफ के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। जिन किसानों ने हार्वेस्टर से कटाई कराई है वह अब अपनी नरवाई में आग लगा रहे हैं। इससे खेतों को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है लेकिन मजदूर नहीं मिलने एवम मजदूरी के बढ़ते खर्च को बचाने के लिए किसान अब यह गलत लेकिन आसान उपाय अपना रहे हैं। यह उपाय मौसम के लिए कितना नुकसानदेह है इसका अंदाज़ा उन्हें नहीं है।

नरवाई जलाने से मिट्टी के जीवाणु हो जाते नष्ट ,मिट्टी होती है कड़ी

इस सिलसिले में कृषि वैज्ञानिक डॉ आर एस शर्मा कहते हैं कि नरवाई जलाना खेती-बाड़ी के लिए अच्छा नहीं है। डॉ. शर्मा बताते हैं कि नरवाई जलाने से मिट्टी में मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जो फसल के लिए अति आवश्यक है। दूसरा नुकसान यह है कि नरवाई जलने से मिट्टी कड़ी हो जाती है और धीरे-धीरे मिट्टी बंजर बन जाती है इससे फसल के उत्पादन पर विपरीत असर भी पड़ता है। डॉ. शर्मा कहते हैं कि खेत में खड़ी नरवाई से बेहतर खाद बनाया जा सकता है लेकिन किसान इसमें रूचि नहीं लेते।


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