इंदौर। उत्तर भारत की कड़ाके की ठंड, केन्द्र की सरकार और देश के किसानों का विशेष रिश्ता है। पहले खेती-किसानी के तीन नए कानूनों की खिलाफत हो या अब फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग के लिए दिल्ली कूच करना हो। कड़कड़ाती ठंड भरी शीत ऋतु में ही ” पत्थर दिल ” दिल्ली किसानों को बुलाती है।
खेत खलिहान और किसानों का ऐसा ही दर्द बयां करते हुए किसानों के युवा नेता दिलीप मुकाती कहते हैं कि केंद्र की सरकार खेती के तीन कानून जैसे लाई थी वैसे ही उन्हें वापस भी ले गई। आंदोलन ठंडा पड़ गया।
इस सबसे अलग भारतीय किसान संघ ने लाभकारी मूल्य की मांग रखी थी। सरकार ने वादा किया था कि किसानों की प्रमुख जरूरी मांगों को अमली जामा पहनाया जाएगा। सभी जानते हैं ऐसा हुआ नहीं।
इससे किसानों में आक्रोश होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि सैकड़ों मील का कठिन सफर तय करते हुए पोटली में चटनी रोटी बांधकर किसानों को धक्के खाते मजबूरीवश सरकार की खबर लेने दिल्ली जाना पड़ रहा है।
खेत खलिहान की हर दिन बढ़ती मुसीबतों का इलाज सरकार की रीति-नीति में ढूंढते किसान, केन्द्र सरकार की खिलाफत में 19 दिसंबर को नई दिल्ली में गर्जना आंदोलन करने जा रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन भारतीय किसान संघ कर रहा है।
प्रदेश में शिव “राज” से दो-दो हाथ करने के बाद प्रदेश के साथ अन्य राज्यो के किसान अब मोदी सरकार को खेती किसानी का हिसाब किताब समझाने के लिए कमर कस रहे हैं।
इससे पहले सभी सांसदों को घेरकर उन्हें अपनी मांगों का पत्रक सौप रहे हैं। साथ ही किसानों की समस्याओं को संसद में प्रस्तुत करने के लिए भी कहा जा रहा है।
लोकसभा-राज्यसभा के अधिकतर सांसदों को कुंभकर्णी नींद से जगाते हुए उन्हें कर्तव्य बोध का एहसास करा रहे हैं।
आक्रोशित किसानों का साफ कहना है कि झूठे किसान हितैषी बनकर चुनाव जीते इन सांसदों ने पलट कर किसानों की सुध नहीं ली। अधिकांश नेता अपने आर्थिक हित साधने में लगे हैं। खासकर सत्ता पक्ष के सांसदों की उदासीनता से सरकार खेती के मसलो को दर किनार किए हुए हैं इसलिए किसान संघ ने देशभर में किसानो को एकजुट करते हुए गर्जना आंदोलन छेड़ा है।
मप्र-छग के संगठन मंत्री वरिष्ठ प्रचारक महेश चौधरी और मालवा प्रांत के संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी ने बताया कि भारतीय किसान संघ ने आगामी 19 दिसंबर को दिल्ली चलो का ऐलान किया है।
सरकार की खेती-किसानी की कमर तोड़ती रीति-नीतियों के खिलाफ किसान संघ ने राज्यों की सरकारों और केंद्र के खिलाफ गर्जना आंदोलन छेड़ा है। राज्यों में आंदोलन का चरण पूर्ण हो चुका है।
माहेश्वरी कहते हैं कि किसानों ने अपने परिश्रम के बल पर देश का भंडार भरने में कोई कमी नहीं रखी है। यह भारत के किसानों का ही पुरुषार्थ है कि खाद्यान्न, दलहन समेत अन्य उपज के लिए विदेशी आयात पर निर्भर रहने वाला भारत आज आत्मनिर्भर होकर विदेशों को निर्यात कर रहा है।
कोरोना काल और अन्य संकटों के समय में तो हमने कई देशों को निशुल्क खाद्यान्न भेजकर अपनी सदायशता का परिचय भी दिया है। इतना सब होने करने के बाद भी सरकार की उपेक्षा से किसान बदहाल है।
अतिवृष्टि, अनावृष्टि, प्राकृतिक आपदा, तूफान, महंगाई से अपनी फसल, घर, परिवार और गांव बचाते हुए जब किसान अपनी उपज लेकर मंडी में पहुंचता है तो औने-पौने दामों पर बेचने के लिए विवश होता है।
किसान को कड़ी मेहनत के बाद भी उसकी उपज का पूरा दाम नहीं मिल पा रहा है। आजादी के बाद से ही सरकारों की गलत नीतियों का दंश किसान झेलता रहा है।
देश में 5 लाख किसानों को कर्ज में डूबकर आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा है। आज किसान के सामने अपने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसलिए देश के किसानों को संगठित करते हुए किसान संघ ने सरकारों के अन्याय के विरूद्ध गर्जना की है।
किसान संघ की मांग है कि सरकार फसल की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य को लागू कर इसको दिलाना सुनिश्चित करें।
सभी प्रकार के कृषि जीन्सों पर जीएसटी समाप्त हो और किसान सम्मान निधि में पर्याप्त बढ़ोतरी की जाये।
इधर , दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में भी खेती-किसानी के काम छोड़कर दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे हैं। किसान संघ के संभागीय प्रमुख श्याम सिंह पंवार पश्चिम निमाड़ के दूरस्थ आदिवासी क्षेत्र के युवा किसान नेता हैं जिन्होंने खरगोन, बड़वानी और खंडवा जिलों में दिल्ली चलो का शंखनाद कर दिया है।
पंवार ने बताया कि अभी सांसदों को उनके कर्तव्यबोध का अहसास करवाने उनसे मिल रहे हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि लोकसभा में किसानों के विषय ताकत से रखें। उन्होंने बताया कि दिल्ली आंदोलन के लिए किसान संघ के मालवा प्रांत के संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी के नेतृत्व में लगातार गांवों में भ्रमण कर किसानों के साथ बैठकें हो रही हैं।
रामलीला मैदान में किसानों की गर्जना –
किसान संघ के मप्र छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संगठन मंत्री महेश चौधारी बताते हैं कि खेती किसानी के प्रति सभी सरकारों की तासीर एक जेसी है। किसानों की मूलभूत जरूरतों से जुड़ी नीतियां बनाने के प्रति सरकारी तंत्र कतई गंभीर नहीं रहा है।
इस कारण प्रदेश के बाद अब दूसरे चरण में किसान संघ द्वारा केंद्र सरकार का घेराव किया जाएगा। खेती-किसानी से जुड़े वादे सरकार को पुनः याद दिलाएं जाएंगे।
बीते दो-तीन वर्षों में खेती के नफे-नुकसान पर किसानों और केंद्र की मोदी सरकार के बीच खूब मंथन हो चुका है, लेकिन सरकारी वादों का अमृत किसानों के हाथ नहीं लगा।
दुर्भाग्य है कि सरकार की उदासीनता से उसके वादे नौकरशाही द्वारा उलझाने के बाद दबा दिए जाते हैं। किसानों द्वारा
बार-बार मांग करने के बाद भी सरकारों की नींद नहीं खुल रही है इसलिए दिल्ली के रामलीला मैदान में 19 दिसंबर को प्रातः 11 बजे भगवान बलराम के दूत देश भर के किसान सरकार के खिलाफ गर्जना करेंगे।
मांगें पूरी करे सरकार –
किसान संघ ने केंद्र की मोदी सरकार से फसल बीमा की प्रक्रिया को सरल और सस्ता किया जाने की भी मांग रखी है। जंगली जानवर खेत में घुसकर फसलों का नुकसान करते हैं।
खेतों की फेंसिंग के लिए अनुदान की नीति को प्रोत्साहित नहीं किया गया इसलिए नुकसान के मुआवजे की मांग की गई है। गौपालन पर प्रति गाय 900 रुपये प्रतिमाह अनुदान दिया जाए।
आंदोलन की मांगों पर संघ के इंदौर महानगर अध्यक्ष दिलीप मुकाती और जैविक खेती के प्रांत अध्यक्ष आनंद सिंह ठाकुर कहते हैं कि खेती की जमीन का अधिग्रहण बंद करने की हमारी मांग के साथ प्रधानमंत्री सम्मान निधि की राशि में सम्मानजनक बढ़ोतरी की जाए। किसानों को लूटने वाली कृषि से जुड़ी आयात-निर्यात नीति में बदलाव किए जाना चाहिए।