गैर-कृषि महाविद्यालयों में BSC एग्रीकल्चर पाठ्यक्रम की प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में गैर-कृषि महाविद्यालयों में बी.एससी. (कृषि) पाठ्यक्रम की प्रक्रिया के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि प्रवेश प्रक्रिया में प्री-एग्रीकल्चर टेस्ट (PAT) की कमी और ICAR की मान्यता न होने से कृषि शिक्षा और अनुसंधान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


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उनकी बात Updated On :

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में राज्य के गैर-कृषि महाविद्यालयों में बी.एससी. (कृषि) पाठ्यक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता नीरज कुमार राठौर और रंजीत किसानवंशी, जो इंदौर के कृषि महाविद्यालय के पूर्व छात्र हैं, ने इस प्रवेश प्रक्रिया में खामियों पर आपत्ति जताई है। उनका दावा है कि इन कॉलेजों में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से मान्यता की कमी और प्रवेश प्रक्रिया में प्री-एग्रीकल्चर टेस्ट (PAT) को शामिल न करने से कृषि शिक्षा और अनुसंधान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

 

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति डुप्पाला वेंकट रमन की खंडपीठ कर रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अभिनव पी. धनोडकर ने तर्क दिया कि कृषि पाठ्यक्रम के लिए आवश्यक मान्यता और टेस्ट की उपेक्षा से छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी और भविष्य में उनके रोजगार के अवसरों पर भी असर पड़ेगा। याचिकाकर्ता ने 20 जून 2024 को मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी उस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की है, जिसमें राज्य के स्वायत्त सरकारी कॉलेजों में 2024-2025 शैक्षणिक सत्र से बी.एससी. (कृषि) पाठ्यक्रम शुरू करने का निर्देश दिया गया था।

 

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कृषि शिक्षा एक तकनीकी शिक्षा है, जिसके लिए अनुसंधान और कृषि भूमि की आवश्यकता होती है। बिना भूमि और अनुसंधान सुविधाओं के ऐसे पाठ्यक्रमों से केवल अयोग्य कृषि स्नातक तैयार होंगे, जो किसानों की मदद करने में सक्षम नहीं होंगे और इससे कृषि अनुसंधान पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

 

अदालत ने इस मामले में मध्य प्रदेश राज्य, उच्च शिक्षा विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को प्रतिवादी बनाया है। खंडपीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

 

यह मामला कृषि शिक्षा के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण हो सकता है और इसके अगले कदम अदालत में प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत उत्तरों पर निर्भर करेंगे।



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