जबलपुर। सीलिंग की भूमि और खसरों में अन्य मदों की प्रविष्टि दर्ज होने के कारण किसान परेशान हैं। वे अधिकारियों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं। कई तो ऐसे भी हैं जिनकी सारी उम्र सीलिंग की भूमि मुक्त कराने में बीत रही है। उनका कहना है कि जब देश के अन्य प्रदेशों में सीलिंग एक्ट को समाप्त कर दिया गया तो यह मप्र के जबलपुर में ही अभी भी क्यों लागू है। सबकी यह शिकायत है कि भूमि स्वामी का नाम दर्ज होने के बाद भी कॉलम नंबर 12 से सीलिंग क्यों नहीं हटाई जा रही, जबकि वर्षों से किसानों के कब्जे में जमीनें हैं और उसमें खेती भी कर रहे हैं।
20-30 साल से लगा रहे चक्कर
महाराजपुर निवासी जवाहर जायसवाल ने बताया कि
उनके पास महाराजपुर क्षेत्र में ही 17 एकड़ जमीन थी। यह जमीन 1990 में सीलिंग में चली गई। हमारे हक में सिर्फ 15 हजार वर्गफीट जमीन ही नाम पर दर्ज है। इस जमीन के भी देखे जायें तो 5 हिस्से हैं, क्योंकि दो उनके बड़े भाई हैं और दो बहनें हैं। बड़े भाई तो अब नहीं रहे, लेकिन उनके बच्चे और हम इस जमीन में खेती कर रहे हैं। मेरी उम्र भी 70 वर्ष हो गई है। कई वर्षों से इस जमीन को सीलिंग से अलग कराने संघर्ष चल रहा है, लेकिन कुछ हो नहीं रहा है, जबकि हमारी जमीन सिंचित भी है और टयूबवेल भी लगे हैं। इस मामले में कलेक्टर कार्यालय के भी चक्कर काट-काटकर थक चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है।
20 एकड़ जमीन थी, बाद में पता चला सीलिंग में चली गई सारी जमीन
तिलहरी में रहने वाले सुरेन्द्र पटेल बताते हैं-
मेरे परिवार में 14 सदस्य हैं और हमारी तिलहरी क्षेत्र में ही अलग-अलग जगह पर लगभग 20 एकड़ जमीन थी। इस जमीन पर हम खेती भी कर रहे थे। इसी से परिवार की गुजर-बसर भी होती है। हमने इस जमीन पर कुआं खुदवाया और अन्य काम भी कराये। वर्ष 1998 में जब हमने कुछ काम से खसरा की नकल निकलवाई तब पता चला की हमारी जमीन तो सीलिंग में चली गई है। इसके बाद हम भटकते रहे, लेकिन जमीन का कोई फैसला नहीं हो रहा है, जबकि अधिकारी भी कई बार कह चुके हैं कि जल्द ही जमीन के संबंध में कुछ निराकरण निकलेगा, लेकिन 22 साल बीतने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। हमारा परिवार भूमि को लेकर मानसिक रूप से परेशान है। अब समझ में नहीं आ रहा है कि कहां जाएं।