हटा (दमोह)। हटा के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में भीषण जलसंकट के कारण लोग पानी के लिए कोरोना वायरस के खतरे को भूलकर घरों से निकलने के लिए मजबूर हैं।
ग्राम पंचायत घोघरा गांव के ग्रामीण अपने गांव से करीब दो किलोमीटर दूर जंगल में आमखुआ घाटी के नीचे उतरकर पानी ला रहे हैं।
जहाँ एक ओर सरकार के द्वारा आदिवासियों के कल्याण के लिये कई योजनाओं को शुरू करने की बात की जाती रही है तो दूसरी ओर जमीनी स्तर पर सब खोखली साबित हो रही है।
पानी की तलाश में ग्राम घोघरा गांव के कई परिवार गांव छोड़कर घाटी से नीचे उतरकर जंगल में प्राकृतिक झिरिया से पानी लाकर अपनी जरूरतें पूरी करने में जुटे हुए हैं।
घोघरा गांव के लोग सुबह से ही घरों से निकलकर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर पथरीली घाटी उतरकर जंगल में पहुंचते हैं और पानी के लिए रोज यहां के लोग 2 से 4 घंटे तक मशक्कत करते हैं।
यहां झिरिया कुंड से पानी लेकर वापिस बच्चे, महिलाएं और पुरुष पथरीली घाटी की कठिन चढ़ाई चढ़ते हैं, जहां हर समय दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
यही नहीं घाटी का इलाका पन्ना टाइगर रिजर्व के बफ़र जोन के जंगलों में शामिल है। यहां पानी की तलाश में कई हिंसक जानवर भी घूमते रहते हैं। कई बार लोगों का वन्यजीवों से सामना भी होता है, लेकिन प्यास बुझाने की खातिर ग्रामीण रोज कई खतरे और जोखिम उठाते हैं।
वैसे तो घोघरा गांव में सरकार द्वारा कई योजनाओं के अंतर्गत कई हैंडपंप लगवाए गए हैं, लेकिन फिलहाल सभी बंद पड़े हैं। ग्राम पंचायत द्वारा यहां बोरबेल में सोलर पैनल सिस्टम मशीन भी लगाई गई थी जो महीनों से बंद पड़ी हुई है।
यहां पंचायतकर्मियों और जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते घोघरा गांव के कई परिवार पानी के लिए जंगल मे भटकने को मजबूर हैं।
ग्रामीणों की समस्याओं और हैंडपंप बंद पड़े होने का कारण जब हमने जिम्मेदार अधिकारियों से जानना चाहा तो कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने बोलने तैयार नहीं है। सभी ऑफ कैमरा सुधार की बात कह रहे हैं।