मध्य प्रदेश के धार जिले के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले कचरे को नष्ट करने की योजना के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को इस विरोध ने तब गंभीर रूप ले लिया, जब दो प्रदर्शनकारियों ने आत्मदाह की कोशिश की। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कचरे को नष्ट करने से पर्यावरण और स्वास्थ्य को भारी खतरा होगा।
गुरुवार को 337 टन यूनियन कार्बाइड का अपशिष्ट भोपाल से पीथमपुर लाया गया, जिसके बाद विरोध तेज हो गया। शुक्रवार को शहर में पीथमपुर बचाओ समिति के आह्वान पर बंद का आयोजन हुआ। दुकानें और बाजार बंद रहे, और सड़कों पर भारी भीड़ जुटी। इस दौरान, दो प्रदर्शनकारियों ने पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश की। पुलिस ने तुरंत उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां उनकी हालत अब स्थिर बताई जा रही है।
प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर जाम लगाया और जगह-जगह नारेबाजी की। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया और कई जगह इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।
यूनियन कार्बाइड कचरे का मामला
1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद से यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का कचरा भोपाल में पड़ा था। अदालत के आदेश पर इसे पीथमपुर के भस्मीकरण संयंत्र में नष्ट करने का निर्णय लिया गया। सरकार का दावा है कि यह कचरा सुरक्षित रूप से नष्ट किया जाएगा। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे “हानिकारक नहीं” बताया, लेकिन स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों का कहना है कि इस कचरे को जलाने से हवा और मिट्टी प्रदूषित होगी।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। धार के पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह ने बताया कि शहर में स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में है। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए हल्के बल का प्रयोग किया गया और इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से बंद की गईं।
न्यायालय का आदेश और जनता की नाराजगी
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में सरकार को चार सप्ताह में इस कचरे को नष्ट करने का आदेश दिया था। अदालत ने गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी कचरे का समाधान न होने पर सरकार को फटकार लगाई थी। हालांकि, स्थानीय लोग इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं और इसे पर्यावरण के लिए खतरनाक मानते हैं।
सरकार को इस मुद्दे पर जनता का विश्वास जीतने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी होगी। वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से कचरे का निपटान ही इस विवाद का समाधान हो सकता है। अन्यथा, यह मुद्दा बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।