2 जनवरी 2023 को जब छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में हिन्दू चरमपंथियों ने चर्च और पुलिस पर हमले किये और लगभग 33 गांवों से धर्मान्तरित आदिवासियों को डर और खौफ की वजह से पलायन करना पड़ा तो यह साफ़ नजर आने लगा था कि अब साम्प्रदायिक शक्तियां पूरे प्रदेश का माहौल खराब करेंगी। अब घटना के पांच दिनों बाद आलम यह है कि नारायणपुर के अलावा सुकमा और बस्तर में भी प्रशासन को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ रही है।
नारायणपुर की घटना के संबंध में भाजपा, विहिप और आरएसएस की संलिप्तता को लेकर कांग्रेस पार्टी द्वारा गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उस सच की ओर इशारा किया है, जिस सच के कटघरे में बीजेपी को बार-बार खड़ा होना पड़ा है। वह सच यह है कि डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक धर्मांतरण हुआ है, कांग्रेस इस बात के लिखित दस्तावेज होने का भी दावा कर रही है।
क्या कहता है आदिवासी समाज –
धर्मांतरण के मुद्दे में यह सवाल सबसे ज्यादा जरुरी है कि आदिवासी क्या चाहते हैं? यकीनन राजनैतिक लाभ-हानि से परे खड़े आदिवासी समाज की आस्था हिन्दू और ईसाई दोनों धर्मों में नहीं है। आरएसएस और विहिप घर वापसी के बाद किसी भी आदिवासी को सवर्ण नहीं बनाते, जब कभी घर वापसी करने वालों की जाति का सवाल पूछा जाता है वह बगले झाँकने लगते हैं।
दूसरी तरफ चर्च भी धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को सामाजिक व आर्थिक तौर पर सशक्त करने की दिशा में कभी कुछ ख़ास करता नहीं दिखता। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में धर्मांतरण को लेकर मचे बवाल के बीच सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की है। राजभवन पहुंचे आदिवासी समाज के सोहन पोटाई धड़े ने हिंदूओं और ईसाईयों दोनों पर धर्मांतरण का आरोप लगा कर विहिप और भाजपा के खेल को खतरे में डाल दिया है। हालांकि भाजपा भी घटना के बाद से आदिवासियों को हिन्दू कहने से बच रही है।
विहिप की भूमिका –
इस पूरे मामले में सबसे विवादित भूमिका विश्व हिन्दू परिषद् की दिख रही है। सूत्र बताते हैं कि विहिप के केन्द्रीय नेतृत्व ने 21 दिसंबर से 31 दिसंबर तक देशभर में ‘धर्म रक्षा अभियान’ चलाने की घोषणा की थी। खुद विहिप के केंद्रीय राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने इसका ऐलान किया था।
छत्तीसगढ़ जैसा राज्य इस किस्म के अभियान के लिए बेहद शानदार जगह थी जहाँ एक तरफ कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, दूसरी तरफ मुद्दाविहीन और नेतृत्वहीन भाजपा के लिए इस वर्ष होने वाले चुनावों के लिए अवसरों के निर्माण की भी संभावनाएं मौजूद थीं। इस बीच मामले की जांच करने गया भाजपा का प्रतिनिधिमंडल बिना किसी जांच के वापस लौट आया है और बयानबाजी का दौर जारी है।
शुद्धिकरण या दंगा भड़काओ अभियान –
विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने घर वापसी के अभियान को लेकर कहा था कि हम स्वामी श्रद्धानंद के बलिदान दिवस को केंद्र में रखकर, उनके शुद्धिकरण आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे और हिंदू समाज से किन्ही कारणों से बिछड़ चुके लोगों को वापस लाने के लिए अभियान तेज करेंगे। एसपी सुकमा पी. सदानंद (जिनका पथराव के दौरान सिर फट गया) विहिप के कार्यक्रम की जानकारी होने से इनकार करते हैं।
घटना के तत्काल बाद जैसा कि होना ही था, भाजपा की तरह विहिप ने भी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार पर ठीकरा फोड़ दिया। विहिप महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि यदि राज्य सरकार ने धर्मांतरण रोकने के लिए समय पर कदम उठाये होते तो आदिवासियों को प्रदर्शन के लिए सड़कों पर नहीं आना होता।
हिन्दूत्ववादियों का गेम प्लान –
आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा संभाग में भाजपा हिन्दू-ईसाई मतों के ध्रुवीकरण को लेकर हर संभव प्रयास कर रही है। राजनांदगांव के विवादित सांसद और कवर्धा में हुए दंगों के आरोपी संतोष पांडे को बस्तर का प्रभारी बनाना और नारायणपुर मामले में आगे खड़ा करना यूँही नहीं है कि नारायणपुर में भाजपा का जिलाध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज का संरक्षक भी है, जो बलवा भड़काने के आरोप में अब जेल में है।
इस बात को नहीं भुला जाना चाहिए कि मई 2018 में जब आदिवासियों ने अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण पत्थलगड़ी अभियान चलाया तो पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इसे धर्मांतरण की साजिश बता दिया। उस वक्त उन्होंने कहा कि “ये चुनाव की दृष्टि से षड्यंत्र है और एक प्रकार से उस ताकत का काम है, जो धर्मांतरण को बढ़ावा देना चाहती है।” निस्संदेह उनका इशारा उस वक्त भी कांग्रेस की ओर था स्पष्ट है कि हर चुनावी वर्ष में छत्तीसगढ़ में धर्मान्तरण की आग लगाने की कोशिशें की ही जाती हैं।
एक जरूरी नजरिया –
इस पूरे मामले पर हमने आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य विनयशील से बात की तो उन्होंने कहा कि आज आदिवासियों के लिए सबसे मुख्य सवाल उनकी पहचान से जुड़ा है कि ‘आदिवासी कौन हैं’? यह सभी जानते हैं कि आदिवासी प्रकृतिवादी होते हैं, प्रकृतिपूजक नहीं। आदिवासी मूल रूप में किसी प्रचलित जीवन शैली और धर्म का हिस्सा नहीं है, वह लोग हैं जिन्होंने आज के विकास की अवधारणा को छोड़कर प्रकृति के साथ जीवन चुना है।
विनय कहते हैं कि आररएसएस, आदिवासियों को हिन्दू मानती है, इसलिए आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन का सवाल छोड़कर उन्होंने धर्मांतरण का मुद्दा बनाया है। जबकि मूल रूप से आदिवासियों का धर्मांतरण नहीं हो सकता है। जब आदिवासी किसी धर्म का हिस्सा ही नहीं है तो भी बदलाव का सवाल ही काल्पनिक है।
विनय का मानना है कि आरएसएस जब कहती है कि जो आदिवासी ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं उनकी घर वापसी करनी है, तब असल में आरएसएस धर्मांतरण की बात कर रही है। आरएसएस जब कहती है कि जो आदिवासी ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं उनकी घर वापसी करनी है तब असल में आरएसएस धर्मांतरण की बात कर रही है।