नये कृषि कानूनों के खिलाफ बीते करीब 50 दिनों से जारी किसानों के आंदोलन के पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।
जिस तरीके से सरकार इस मामले को डील कर रही है उस पर असंतोष जताते हुए मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि हमने सरकार से पूछा था कि क्या वह इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा सकती है, इसका अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। अगर आप नहीं लगा सकते तो हम लगा दें?
चीफ जस्टिस ने कहा कि
कोर्ट किसी भी नागरिक को ये आदेश नहीं दे सकता कि आप प्रदर्शन न करें। हां, ये जरूर कह सकता कि आप इस जगह प्रदर्शन करें। अगर कुछ घटित होता है तो उसके जिम्मेदार सब होंगे, हम नहीं चाहते कि हमारे हाथ रक्त रंजित हों।
उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों को लेकर समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि अगर समिति ने सुझाव दिया तो वह इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा देगा। न्यायालय ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि लोग सामाजिक दूरी के नियम का पालन कर रहे हैं कि नहीं लेकिन हमें उनके (किसानों) भोजन पानी की चिंता है।’
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि
स्थिति खराब हो रही है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं. पानी की सुविधा नहीं है, बेसिक सुविधा नहीं है और सोशल डिस्टेंसिंग नहीं पालन किया जा रहा है। किसान संगठनों से पूछना चाहता हूं कि आखिर इस ठंड में महिलाएं और बूढ़े लोग प्रदर्शन में क्यों है?
उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र से कहा, ‘हम अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ नहीं हैं, आप बताएं कि सरकार कृषि कानून पर रोक लगाएगी या हम लगाएं।’
सरकार की ओर से इस मामले में पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील पीएस नरसिम्हा से मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अवकाश से पहले हमने आपसे पूछा था कि इन कानूनों पर अभी के लिए रोक लगाई जा सकती है, जिसका जवाब अब तक नहीं मिला है।
इस पर अधिवक्ता नरसिम्हा ने कहा कि ऐसे मामलों का हल जल्दी नहीं निकलता। सीजेआई ने कहा – किसी तरह का रक्तपात हुआ तो कौन जिम्मेदार होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, सरकार के तर्क को सही भी मान लिया जाये तो भी जिस तरीके इस मामले को डील किया जा रहा है वह निराशा जनक है।
मुख्य न्यायाधीश ने अटॉर्नी जरनल वेणुगोपाल से कहा कि हम आलोचना को दोहराना नहीं चाहते किन्तु इस पूरे मसले को जिस तरह से लिया गया वह संतोषजनक नहीं है।