नर्मदा में बाढ़ की कहानीः पेड़, मंदिर और आश्रम उखड़कर बह गए, लोगों ने कहा शंकराचार्य की मूर्ति के उद्घाटन के लिए आई ये मानव निर्मित बाढ़


लोगों का आरोप सीएम का कार्यक्रम सफल करने के लिए आई यह मानव निर्मित बाढ़, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने किया दौरा


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बड़ी बात Updated On :

प्रदेश में पिछले दिनों हुई बारिश के बाद कई इलाकों में खासी तबाही हुई है। लोगों के मुताबिक ओंकारेश्वर बांध के गेट अचानक खोल दिए गए और इसके बाद नर्मदा के किनारों पर जैसे सैलाब आ गया। ओंकारेश्वर के आसपास तबाही के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। ओंकारेश्वर बांध के नजदीक ही मसानीबाबा मंदिर के पास नदी के किनारे अब पानी उतर चुका है लेकिन यहां किस कदर तबाही थी उसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं हैं। नदी के किनारे लगे बड़े-बड़े पेड़ उखड़कर बह गए। कई पेड़ तक अब भी किनारे पर हैं। यहां के कई मंदिर भी टूट गए हैं। इसे लेकर लोग खासे परेशान हैं वे मुआवज़े का इंतजार कर रहे हैं लेकिन फिलहाल कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। हालही में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ओंकारेश्वर पहुंचे और उन्होंने लोगों से बात चीत की। सिंह ने इस बाढ़ को मानव निर्मित आपदा बताया है।

15 सितंबर की रात को नर्मदा का पानी अचानक बढ़ने लगा। ओंकारेश्वर मंदिर से कुछ सौ मीटर दूर बने इस बांध का एक गेट खोल दिया गया था। लोगों के मुताबिक इसके कुछ ही देर पहले एक चेतावनी जारी की गई लेकिन जब तक लोग समझ पाते गेट खोल दिए गए। ये सब इतना तेजी से हो रहा था कि बांध के इस ओर शहर की तरफ  नर्मदा का जल स्तर हर पांच-दस मिनिट में एक फुट तक बढ़ने लगा।

नर्मदा के किनारे मसानी बाबा मंदिर में रहने वाले संत मुनींद्रदास कबीर कहते हैं कि वह रात बेहद डरावनी थी। सुबह तक पानी इतना बढ़ गया कि नदी जहां सामान्य तौर पर बहती हैं उन किनारों से करीब 100 फुट उंचे स्थान तक दिखाई दे रही थी। नदी की धारा इतनी तेज़ थी कि कई बड़े पेड़ और पक्के निर्माण, मंदिर उखड़ कर बह गए। यहां अभी भी कई मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि यहां कई जानवर भी मारे गए। जिनकी दुर्गन्ध अब तक यहां महसूस की जा सकती है।

ओंकारेश्वर में मंदिर के बिल्कुल नजदीक नदी के किनारे लगने वाली दुकानों की स्थिति भी खराब थी। यहां के दुकानदार बताते हैं कि पानी हर थोड़ी देर में घाट की सीढ़ियों को एक-एक कर उपर चढ़ रहा था। इन दुकानदारों ने पंद्रह सितंबर की रात को करीब बारह बजे अपनी दुकानें खाली करना शुरू कीं लेकिन ज्यादातर लोग अपना पूरा सामान ही नहीं निकाल पाए और पानी घुसने लगा।

नांव चलाने वाले बहुत से मल्लाह भी ऐसे ही हालातों का सामना कर रहे थे। कष्णा नाम के एक नाविक ने बताया कि रात को अचानक उसकी नावें बहनें लगीं थी और वे पूरे परिवार के लोग नावों को बचाने के लिए भाग रहे थे। इस कोशिश में उनकी नांव तो बच गईं लेकिन कई दूसरे साथियों का काफी नुकसान हुआ।

ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी, यहां से बांध भी दिखाई दे रहा है।

ये लोग अब अपने मुआवजे के लिए चक्कर लगा रहे हैं। एक स्थानीय दुकानदार बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज को शंकराचार्य की मूर्ती के अनावरण के लिए आना था इसलिए प्रशासन किसी भी तरह की परेशानी नहीं चाहता था ऐसे में अधिकारियों ने आवेदकों से जल्दी-जल्दी उनके नुकसान के संबंध में कागज़ात ले लिए लेकिन इसके बाद जब मुख्यमंत्री का कार्यक्रम संपन्न हो चुका है तो अब तक मुआवजा नहीं मिला है वहीं अधिकारी भी नए-नए कागजों की मांग कर रहे हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि ओंकारेश्वर में ऐसी बाढ़ उन्होंने शायद पहले कभी नहीं देखी थी। लोग मानते हैं कि यह बाढ़ प्राकृतिक नहीं थी बल्कि इंसानी लापरवाही और महत्वकांक्षा के कारण बनाई गई थी। स्थानीय पत्रकार राजेंद्र पुरोहित बताते हैं कि पिछले दिनों ओंकार पर्वत पर शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण होना था। पहले इस मूर्ति का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा उनके जन्मदिन पर किया जाना था लेकिन उनका कार्यक्रम रद्द हो गया और बाद में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इसका अनावरण किया। इस दौरान कार्यक्रम स्थल पर बड़े भारी वाहनों को पहुंचने के लिए जो रास्ता है वह नदी की एक रपट से होकर जाता है और थोड़े से पानी में ही वह रपट डूब जाती है। ऐसे में आवाजाही बनाए रखने के लिए नदी में बांध से पानी नहीं छोड़ा गया और पुलिया नहीं डूबी तथा वाहन आते-जाते रहे।

इस मूर्ती का उद्घाटन 18 सितंबर को होना था लेकिन भारी बारिश के कारण यह रद्द हो गया। पुरोहित बताते हैं कि जब 18 सितंबर के कार्यकम के  काम की तैयारियां पूरी हो गईं। तो नदी में पानी छोड़ने के लिए बांध खोला गया लेकिन यह अचानक हो रहा था और लगातार बारिश ने इस स्थिति को और भी विकट बना दिया। बताया जाता है कि  इस बांध में करीब 52 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया जबकि अमूमन बांध से करीब 32 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है।

इसका असर कुछ ही घंटों में सैकड़ों किमी दूर तक दिखाई दिया। नदी के किनारे रहने वाले लोगों के घरों में भारी तबाही हुई। इसके अलावा सरदार सरोवर बांध तक भी पानी पहुंच गया और गुजरात में भी नदी में बाढ़ आ गई।

यह मामला बेहद गंभीर था लेकिन इसे लेकर न तो मीडिया में बहुत खबरें आईं और न ही राजनीतिक रूप से इसके बारे में कोई चर्चा हुई। एक पत्रकार ने नाम प्रकाशित न करने के अनुरोध पर बताया कि मूर्ती के निर्माण और इसके उद्घाटन से जुड़े ऐसे पहलुओं से दूर रहने के लिए इलाके में पत्रकारों को विशेष तौर पर कहा गया था ताकि उद्घाटन सत्र किसी भी तरह से विवादों में न आए। वे बताते हैं कि फिर भी नर्मदा की बाढ़ को लेकर खबरें बनीं लेकिन इनमें बहुत आलोचनात्मक रवैया नहीं रखा गया और राजनेता भी इससे दूर रहे।

पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ओंकारेश्वर में लोगों से बात करते हुए

हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाते दिख रहे हैं। उन्होंने गुरूवार की सुबह खरगोन जिले के कसरावद में बाढ़ से प्रभावित इलाकों का दौरा किया। यहां के रेस्ट हाउस में उन्होंने 22 गांवों के प्रभावितों से बात की। इनमें कई किसान भी पहुंचे थे जिन्होंने बताया कि उनके खेतों में पानी भर गया था और पूरी फसलें बर्बाद हो गईं। इसके बाद इन लोगों को कोई मुआवजा नहीं मिला।

सिंह ने लोगों से बात करते हुए कहा कि पानी छोड़ने की सीमा 32 हजार क्यूसेक थी लेकिन अचानक बिना किसी पूर्व जानकारी के 52 हजार क्युसेक पानी छोड़ा गया और इसी वजह से नर्मदा नदी में बाढ आ गई।  दिग्विजय सिंह ने इस मामले में सेवानिवृत्त जज से जांच कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि जांच के आधार पर जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

ग्रामीणों के द्वारा मुआवजे की मांग पर दिग्विजय सिंह ने कहा क्षतिग्रस्त मकानों का सभी प्रभावितों को शत प्रतिशत मुआवजा, विस्थापितों का पुनर्वास कर उन्हें भी मुआवजा, जनहानि और मवेशियों के बह जाने पर भी मुआवजा और डूब प्रभावित गांवों को पुर्नस्थापन किया जाना चाहिए। इसके लिए वे भी प्रभावितों के साथ हैं।   पूर्व सीएम ने प्रभावितों से संवाद कर फिर से सर्वे कराकर डूब प्रभावितों को वर्तमान दर से मुआवजा देने की मांग भी की है।

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