18 से 44 साल के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने की केंद्र की पॉलिसी को सुप्रीम कोर्ट ने बताया तर्कहीन 


केंद्र ने 18 से 44 साल के आयुवर्ग की टीकाकरण की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों पर डाल दी। उनसे ही इस आयुवर्ग के टीकाकरण के लिए भुगतान करने को कहा गया, जो पहली नजर में ही मनमाना और तर्कहीन नजर आता है।


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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की देश में 18 से 44 साल के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने की पॉलिसी को तर्कहीन बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि केंद्र ने 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को मुफ्त टीका लगाने का नियम बनाया है, लेकिन इसके 18 से 44 साल की उम्र के लोगों को टीका लगाने का पैसा लिया जा रहा है।

टीकाकरण के शुरुआती दो फेज में केंद्र ने सभी को मुफ्त टीका उपलब्ध कराया। इसके बाद जब 18 से 44 साल के आयुवर्ग की बारी आई तो केंद्र ने टीकाकरण की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों पर डाल दी। उनसे ही इस आयुवर्ग के टीकाकरण के लिए भुगतान करने को कहा गया, जो पहली नजर में ही मनमाना और तर्कहीन नजर आता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के दौरान उन रिपोर्ट्स का हवाला भी दिया जिसमें यह बताया गया था कि 18 से 44 साल के लोग न केवल कोरोना संक्रमित हुए बल्कि उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भी रहना पड़ा। कई मामलों में इस आयुवर्ग के लोगों की मौत भी हो गई।

कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी के बदलते स्वरूप की वजह से 18 से 44 साल के लोगों का वैक्सीनेशन जरूरी हो गया है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि प्रायोरिटी ग्रुप के लिए वैक्सीनेशन के इंतजाम अलग से किए जा सकते हैं।

बता दें कि भारत की वैक्सीनेशन ड्राइव दुनिया में सबसे बड़ी है। यह 16 जनवरी को शुरू हुई थी। पहले फेज में 3 करोड़ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन लगाई गई। इनमें 1 करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स और 2 करोड़ अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल हैं।

इसके बाद 27 करोड़ हाई-रिस्क वाले लोगों का वैक्सीनेशन हुआ। इनमें सीनियर सिटीजन और वह लोग शामिल हैं जिन्हें हाई-रिस्क कैटेगरी में रखा गया है। इन्हें अगस्त 2021 तक वैक्सीनेट करने की योजना थी।


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