सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा दंगों के संबंध में कथित तौर पर सबूत गढ़ने से जुड़े गुजरात पुलिस मामले में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को बुधवार को जमानत दे दी।
जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 1 जुलाई के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने सीतलवाड को नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया था। कानूनी समाचार देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ “विकृत” और “विरोधाभासी” थीं।
हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर विद्वान न्यायाधीश की टिप्पणी को स्वीकार किया जाए तो जमानत के लिए कोई भी आवेदन तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि आरोपी कार्यवाही को रद्द करने के लिए आवेदन दायर नहीं करता। दूसरी ओर, विद्वान न्यायाधीश कुछ गवाहों के बयानों पर चर्चा करते हैं और पाते हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है। कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि निष्कर्ष पूरी तरह से विरोधाभासी हैं।”
सीतलवाड की ओर से आज पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को सूचित किया कि गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया था कि उन्होंने इसे रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत याचिका दायर नहीं की थी। तीन सप्ताह पहले अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कार्यकर्ता को “तुरंत आत्मसमर्पण करने” का निर्देश दिया था।
तीस्ता सीतलवाड़ को 25 जून, 2022 को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार के साथ 2002 में हुए गुजरात दंगों के संबंध में निर्दोष लोगों को झूठा फंसाने की साजिश रचने के कथित आरोप में अहमदाबाद डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) द्वारा एक एफआईआर पर हिरासत में लिया गया था।