सुप्रीम कोर्ट की फटकार: “चुनावी रेवड़ियां लोगों को काम करने से रोक रही हैं”


सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी मुफ्त योजनाओं की घोषणा पर कड़ी आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि ये योजनाएं लोगों को श्रम से विमुख कर रही हैं और राज्यों में श्रमिकों की भारी कमी हो रही है। पूरी खबर पढ़ें।


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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव से पहले मुफ्त सुविधाओं (रेवड़ियां) की घोषणा पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की योजनाएं लोगों को श्रम से विमुख कर रही हैं और समाज में एक वर्ग ऐसा तैयार हो रहा है, जो काम करने के बजाय मुफ्त सुविधाओं पर निर्भर रहना पसंद करता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह समस्या गंभीर हो गई है, जहां किसानों को खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो बेघर लोगों के लिए आश्रय गृहों की स्थिति से संबंधित थी। सुनवाई के दौरान एक वकील ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे केवल अमीरों के लिए बनाई जाती हैं, जबकि गरीब और बेघर लोग हाशिये पर रहते हैं। वकील ने दलील दी कि देश में बेघरों की समस्या को प्राथमिकता नहीं दी जाती और सरकारें इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहीं। वकील ने कहा, “मुख्य पीड़ित गरीब और बेघर लोग हैं। दुर्भाग्य से, बेघर होने के असली कारण को कभी संबोधित नहीं किया जाता। इस देश में सहानुभूति केवल अमीरों के लिए होती है, गरीबों के लिए नहीं।”

“हमारी अदालत को राजनीतिक मंच मत बनाइए”

वकील की इस टिप्पणी पर न्यायमूर्ति गवई ने आपत्ति जताई और उन्हें फटकार लगाते हुए कहा, “रामलीला मैदान जैसा भाषण मत दीजिए। यह अदालत है, यहां सिर्फ तर्क दीजिए। यदि आप किसी के पक्ष में दलील दे रहे हैं, तो उसे सीमित दायरे में रखिए। अनावश्यक आरोप मत लगाइए। हम अदालत को राजनीतिक मंच में बदलने की अनुमति नहीं देंगे।”

जब वकील ने सफाई देते हुए कहा कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था, तो न्यायमूर्ति गवई ने उनसे पूछा, “आप कैसे कह सकते हैं कि सहानुभूति केवल अमीरों के लिए है?”

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सफाई देते हुए कहा कि वकील का मतलब यह था कि कई आश्रय गृहों को सरकार ने केवल शहरों की सुंदरता बनाए रखने के लिए हटा दिया। हालांकि, दिल्ली सरकार के वकील ने तर्क दिया कि ये आश्रय गृह जर्जर हालत में थे और सरकार इन्हें बेहतर बनाने की कोशिश कर रही थी।

“चुनावी मुफ्त योजनाएं लोगों को काम करने से रोक रही हैं”

इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की नीतियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि चुनाव से पहले घोषित की जाने वाली मुफ्त योजनाएं समाज में ‘परजीवी वर्ग’ तैयार कर रही हैं, जो श्रम करने की बजाय मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर हो रहे हैं।

उन्होंने कहा, “चुनाव से पहले ‘लाड़ली बहना’ और अन्य योजनाओं की घोषणा होती है, जिससे लोग काम करने के बजाय मुफ्त की चीजों पर निर्भर हो जाते हैं। जब मुफ्त में राशन और पैसे मिल रहे हैं, तो वे काम क्यों करेंगे?”

“महाराष्ट्र में किसानों को नहीं मिल रहे मजदूर”

न्यायमूर्ति गवई ने इस बात पर जोर दिया कि उन्हें कृषि परिवार से होने के नाते इस समस्या की गहरी समझ है। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित की गई मुफ्त योजनाओं की वजह से किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। जब लोगों को घर बैठे मुफ्त सुविधाएं मिल रही हैं, तो वे खेतों में काम करने क्यों आएंगे?”

उन्होंने कहा कि इस तरह की योजनाओं से देश के विकास को नुकसान हो रहा है, क्योंकि इससे श्रमबल घट रहा है और लोग रोजगार के बजाय मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर हो रहे हैं।

“कोई भी काम करने से बचना नहीं चाहता”

हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायालय की इस राय से असहमति जताई और कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो काम नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा, “अगर गांवों में रोजगार के अवसर होते, तो लोग शहरों की ओर पलायन ही नहीं करते। वे शहरों में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें गांवों में काम नहीं मिलता।”

लेकिन न्यायमूर्ति गवई ने उनकी इस दलील को एकतरफा ज्ञान करार दिया और कहा कि वे व्यावहारिक अनुभव से बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले घोषित मुफ्त योजनाओं की वजह से कई राज्यों में श्रमिकों की भारी कमी हो रही है, जो देश की अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।


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