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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) की जांच के दौरान उनका मतदान डेटा न मिटाया जाए। यह निर्देश मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
ADR ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग ईवीएम की जांच की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश के अनुसार लागू नहीं कर रहा है।
अदालत ने 2024 में दिया था जांच का आदेश
26 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवारों को यह विकल्प दिया था कि वे प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की 5% ईवीएम मशीनों के माइक्रोकंट्रोलर और मेमोरी को इंजीनियरों से सत्यापित करवा सकते हैं। यह जांच चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद, उम्मीदवारों के लिखित अनुरोध और चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित शुल्क के भुगतान के बाद की जा सकती है।
ADR ने उठाए गंभीर सवाल
मंगलवार की सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चुनाव आयोग केवल मॉक पोल के माध्यम से ईवीएम सत्यापन करता है, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि मशीन के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की गहन जांच की जाए ताकि किसी भी प्रकार की हेराफेरी का पता लगाया जा सके।
वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, जो एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए, ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि वर्तमान में केवल मॉक पोल किया जाता है और इसके लिए 40,000 रुपये का शुल्क लिया जाता है। इसके अलावा, जांच के दौरान पिछले डेटा के मिटने की संभावना भी बनी रहती है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
सीजेआई ने किया स्थिति स्पष्ट
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि अदालत का इरादा यह सुनिश्चित करना था कि गिनती की प्रक्रिया में कोई व्यवधान न आए और ईवीएम की जांच केवल उनके निर्माता कंपनी के इंजीनियर द्वारा की जाए। इसके अलावा, मतदान डेटा को मिटाने या फिर से लोड करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सीजेआई ने चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह से पूछा, “आप डेटा क्यों मिटाते हैं?” उन्होंने कहा कि अदालत ने कभी यह नहीं कहा था कि जांच के लिए डेटा को हटाया जाए या दोबारा लोड किया जाए। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि सत्यापन प्रक्रिया के लिए 40,000 रुपये की फीस बहुत अधिक है और इसे कम किया जाना चाहिए।
अगली सुनवाई 3 मार्च को
अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करे कि ईवीएम सत्यापन की प्रक्रिया कैसे की जा रही है। अदालत ने यह भी रिकॉर्ड किया कि इस दौरान मशीनों के डेटा में कोई संशोधन या परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इस मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च को होगी, जिसमें चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठा रहा है।