नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 22 दिनों से जारी किसानों के आंदोलन के बीच गुरुवार को किसानों को सड़कों से हटाने की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच में दोबारा सुनवाई हुई।
इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वो किसानों का पक्ष जाने बिना कोई निर्णय नहीं लेंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों दोनों को सलाह दी।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि कृषि कानूनों पर अमल रोकने की संभावना तलाशें। वहीं, किसानों को नसीहत दी कि विरोध का तरीका बदलें।
Farm laws matter in SC: Attorney General asks, what kind of executive action? Farmers will not come for discussion if this happens, adds AG
CJI says, it's to enable discussions https://t.co/j4zOnhy1P2
— ANI (@ANI) December 17, 2020
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रदर्शनकारियों को सड़क से हटाने की मांग की गई तो चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रदर्शन करना किसानों का अधिकार है, ऐसे में उसमें कटौती नहीं की जा सकती है, लेकिन साथ ही कहा कि इससे किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, चीफ जस्टिस की ओर से कहा गया कि प्रदर्शन का भी एक लक्ष्य होता है, जो बातचीत से निकल सकता है। यही कारण है कि हम कमेटी बनाने की बात कह रहे हैं। कमेटी में एक्सपर्ट हो सकते हैं जो अपनी राय रखें।
Farm laws matter in Supreme Court: A protest is constitutional till it does not destroy property or endanger life. Centre and farmers have to talk; We are thinking of an impartial and independent committee before whom both parties can give its side of story, says CJI
— ANI (@ANI) December 17, 2020
तबतक किसानों को प्रदर्शन करने का हक है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि प्रदर्शन चलता रहना चाहिए, लेकिन रास्ते जाम ना हो। साथ ही पुलिस को भी कोई एक्शन नहीं लेना चाहिए, बातचीत से हल निकलना जरूरी है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बोवड़े ने कहा कि हम अभी कृषि कानूनों की वैधता पर फैसला नहीं करेंगे। हम किसानों के प्रदर्शन और नागरिकों के बुनियादी हक से जुड़े मुद्दे पर ही फैसला सुनाएंगे।