नई दिल्ली। तेलंगाना राज में स्थित 2 × 600 मेगावाट का सिंगरेनी थर्मल पावर प्लांट (STPP) दक्षिण भारत का पहला सार्वजनिक क्षेत्र का कोयला आधारित बिजली उत्पादन स्टेशन बनने के लिए तैयार है।
इसके साथ ही देश में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में पहला फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) है। जो सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को सुरक्षित स्तर तक कम करके हरित मानदंडों को पूरा करने के लिए काम करेगा।
FGD या फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन संयंत्र विद्युत उत्पादन के लिए कोयले को जलाने से उत्पन्न सल्फर और अन्य गैसों (नाइट्रोजन ऑक्साइड) को प्रोसेस करेगा। FGD प्लांट, वायुमंडल में छोड़े जाने से पहले ग्रिप गैस से सल्फर डाइऑक्साइड को अलग कर देता है जिससे पर्यावरण पर इसका प्रभाव कम हो जाता है।
FGD सिस्टम को उस चरण के आधार पर “वेट” या “ड्राई” के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिसमें फ्लू गैस अभिक्रिया होती है।
FGD सिस्टम के चार प्रकार हैं –
- (1) वेट FGD सिस्टम तरल अवशोषक का उपयोग करते हैं।
- (2) स्प्रे ड्राई एब्जॉर्बर (SDA) सेमी-ड्राई सिस्टम होते हैं जिनमें विलियन के साथ थोड़ी मात्रा में जल मिलाया जाता है।
- (3) सर्कुलेटिंग ड्राई स्क्रबर्स (CDS) या तो ड्राई अथवा सेमी-ड्राई प्रणाली है।
- (4) ड्राई सॉर्बेंट इंजेक्शन (DSI) सूखे सॉर्बेंट को सीधे भट्टी में या भट्टी में डाले जाने के बाद डक्टवर्क में इंजेक्ट करता है।
- इसके अलावा FGD संयंत्र द्वारा उत्पादित जिप्सम का उपयोग उर्वरक, सीमेंट, कागज, कपड़ा एवं निर्माण उद्योगों में किया जाएगा तथा इसकी बिक्री से FGD संयंत्र के रखरखाव में योगदान की संभावना है।
क्या हैं कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों सरकार से निर्देश –
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के लिये FGD संयंत्रों की स्थापना की समय-सीमा गैर-सेवामुक्त संयंत्रों के लिये दिसंबर 2026 के अंत तक और सेवानिवृत्त होने वाले संयंत्रों के लिये दिसंबर 2027 के अंत तक निर्धारित की है।
हालांकि यह उन संयंत्रों के लिये अनिवार्य नहीं है जो वर्ष 2027 के दिसंबर अंत तक सेवामुक्त होने जा रहे हैं, बशर्ते वे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण से छूट प्राप्त हों।
सिंगरेनी प्लांट ने दो बार जीता है सर्वश्रेष्ठ फ्लाई ऐश उपयोग पुरस्कार –
उत्पन्न फ्लाई ऐश के 100% उपयोग के साथ सिंगरेनी थर्मल पॉवर प्लांट ने दो बार सर्वश्रेष्ठ फ्लाई ऐश उपयोग पुरस्कार जीता है। फ्लाई ऐश एक बारीक पाउडर है जो तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।
इसमें भारी धातु होते हैं और साथ ही PM 2.5 और ब्लैक कार्बन भी होते हैं। इसमें पाया जाने वाला PM 2.5 गर्मियों में हवा के माध्यम से उड़ते-उड़ते 20 किलोमीटर तक फैल जाता है। यह पानी और अन्य सतहों पर जम जाता है।
भारत सरकार द्वारा फ्लाई ऐश उत्पादन और उपयोग की निगरानी के लिए एक वेब पोर्टल और “ऐश ट्रैक” (ASHTRACK) नामक एक मोबाइल आधारित ऐप लॉन्च किया गया है साथ ही फ्लाई ऐश और उसके उत्पादों पर जीएसटी की दरों को घटाकर 5% कर दिया गया है।
कैसे काम करता है थर्मल पॉवर प्लांट –
परम्परागत थर्मल पावर स्टेशन में पानी को गर्म करने के लिए ईंधन का प्रयोग किया जाता है जिससे उच्च दाब पर भाप बनती है। इससे बिजली पैदा करने के लिए टरबाइनें चलाई जाती हैं।
पावर स्टेशनों के मध्य भाग में जेनेरेटर होता है जो एक ऐसी घूमने वाली मशीन है जो, चुम्बकीय क्षेत्र तथा कंडक्टर के बीच सापेक्ष गति पैदा करके यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
जेनेरटर को घुमाने के लिए ऊर्जा स्रोत भिन्न-भिन्न होता है। यह मुख्यतया आसानी से उपलब्ध होने वाले ईंधन तथा प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के प्रकार पर निर्भर करता है।
जब बिजली के उत्पादन के लिए कोयले का प्रयोग किया जाता है तो आम तौर पर पहले इसका चूरा बनाया जाता है और तब बॉयलर युक्त फर्नेस में जलाया जाता है। फर्नेस की ऊष्मा बॉयलर के पानी को भाप में बदल देती है और तब इसका प्रयोग टरबाइन चलाने के लिए किया जाता है।
ये टरबाइने जेनेरेटरों को घूमाती है और बिजली पैदा करती है। समय के साथ-साथ इस प्रक्रिया की तापगतिकी दक्षता में सुधार हुआ है। “मानक” भाप टरबाइनें कुछ उन्नत सुधार के साथ पूरी प्रक्रिया के लिए लगभग 35 O की सर्वाधिक उन्नत तापगतिकी दक्षता प्राप्त कर चुकी हैं जिसका अर्थ है कि कोयला ऊर्जा की 65 O अपशिष्ट ऊष्मा आसपास के पर्यावरण में छोड़ी जाती है।
पुराने कोयला विद्युत संयंत्र विशेष रूप से अति प्राचीन संयंत्र में बहुत कम दक्षता वाले हैं और अपशिष्ट ऊष्मा का बहुत अधिक स्तर पर उत्पादन करते हैं। विश्व की लगभग 40 O बिजली कोयले से प्राप्त होती है।
लगातार कुशल होता भारत का थर्मल पॉवर क्षेत्र –
ताप विद्युत क्षेत्र भारत में विद्युत उत्पादन का प्रमुख स्रोत रहा है, जो देश की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का लगभग 75% है।
मई 2022 तक भारत में ताप विद्युत की कुल स्थापित क्षमता 236.1 गीगावाट है, जिसमें से 58.6% कोयले से और बाकी लिग्नाइट, डीजल तथा गैस से प्राप्त होती है।
इसके बावजूद भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
भारत लगातार अपने ऊर्जा क्षेत्र को विकसित करता जा रहा है वहीं दूसरी ओर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की भारत की प्राथमिकता भी उसकी ऊर्जा परियोजनाओं में दिखाई देती है जो उसके बेहद जिम्मेदार रवैये के साथ दुनिया की महाशक्ति बनने की सोच को प्रदर्शित करता है।