देवेंद्र चौरसिया हत्याकांड: दमोह पुलिस पर हैं गंभीर सवाल, जिनका अब सुप्रीम कोर्ट में देना है जवाब


पुलिस इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है क्योंकि मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सीधी नज़र है जहां से पुलिस को किसी भी हालत में पांच अप्रैल की सुनवाई तक गोविंद सिंह को पकड़ने के लिए कहा गया था। 


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बड़ी बात Updated On :

भोपाल। दमोह के पथरिया की विधायक रामबाई परिहार के पति गोविंद सिंह ने सरेंडर कर दिया है। उन्होंन भिंड पुलिस के सामने  सरेंडर किया है। जिसके बाद उन्हें कोर्ट मेंं पेश करने के लिए दमोह लाया जाएगा। गोविंद सिह ने एसटीएफ के सामने सरेंडर किया है। एसटीएफ के प्रमुख विपिन माहेश्वरी ने इसकी पुष्टी कर दी है।

हालांकि इससे पहले भिंड पुलिस ने इस बारे में भिंड पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह ने इनकार किया था उनका कहना है कि जिले के किसी भी थाने में गोविंद सिंह ने अभी तक सरेंडर नहीं किया है।

गोविंद सिंह से जुड़ी हर जानकारी को बेहद गुप्त रखा जा रहा है। बताया जाता है कि एसटीएफ उन्हें कुछ देर में भोपाल लेकर पहुंच रही है। जहां औपचारिक प्रेस वार्ता की जाएगी।

पुलिस इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है क्योंकि मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सीधी नज़र है जहां से पुलिस को किसी भी हालत में पांच अप्रैल की सुनवाई तक गोविंद सिंह को पकड़ने के लिए कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस से यह भी पूछा है कि जुलाई 2020 में गोविंद सिंह को किस आधार पर सरकारी सुरक्षा प्रदान की गई थी। पुलिस इस मामले में और भी फंसती हुई नज़र आ रही है क्योंकि जब गोविंद सिंह को तत्कालीन एसपी विवेक सिंह ने सुरक्षा दी थी तब तक सीजेएम कोर्ट ने पुलिस की खात्मा रिपोर्ट नहीं स्वीकारी थी और इसके कुछ दिनों बाद ही एसपी विवेक सिंह का तबादला हो गया। जिसके बाद हेमंत चौहान आए लेकिन उन्होंने भी इस तथ्य को नज़र अंदाज किया।

ऐसे में पुलिस द्वारा उन्हें किस आधार पर सुरक्षा दी गई और फरार घोषित करने से पहले अचानक कैसे हटा ली गई यह भी सवाल भी उठ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि गोविंद सिंह को प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद  31 जुलाई 2020 में सुरक्षा प्रदान की गई थी।

इस मामले में चौरसिया परिवार की ओर से केस लड़ रहे वकील मनीष नागाईच बताते हैं कि  जब गोविंद सिंह को सुरक्षा दी गई तब वे ट्रिपल मर्डर केस में थे और उन्हें तीन बार आजीवन कारागार की सजा सुनाई जा चुकी थी। ऐसे में नागाईच सवाल उठाते हैं कि जब कौन से कानूनी विवेक के आधार पर गोविंद सिंह को सरकारी सुरक्षा दे दी। नागाईच के मुताबिक पुलिस ने केवल गोविंद सिंह की टावर लोकेशने के आधार पर उनका नाम रिपोर्ट में हटाने की सिफारिश कर दी थी जबकि उनके अनुभव के मुताबिक पुलिस 99 प्रतिशत मामलों में केवल मोबाइल टावर लोकेश के आधार पर ऐसा नहीं करती है।

इस मामले में दमोह एसपी हेमंत चौहान की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पुलिस ने एक पुराने आरोपी को यह सुरक्षा दी थी जबकि उसके उपर एक बड़े हत्याकांड में शामिल होने के आरोप लग ही रहे थे। ऐसे में अब दमोह एसपी को सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देना है।

वकील मनीष नागाईच के मुताबिक गोविंद सिंह को सुरक्षा देना अपने आप में पुलिस की भूमिका को संदिग्ध बताता है। ऐसे में न्याय मिलने में जो देरी हुई है उसमें पुलिस भी जिम्मेदार कही जानी चाहिए।

दिलचस्प बात यह है कि यहां आरोपी और फरियादी दोनों को ही सरकारी सुरक्षा दी गई थी।  गोविंद सिंह को सरकारी सुरक्षा जुलाई में दी गई थी तो देवेंद्र चौरसिया के बेटे सोमेश चौरसिया और उनके परिवार को भी हत्याकांड के कुछ दिनों बाद से ही सुरक्षा दी गई थी। जो आज तक उनके पास है। चौरसिया परिवार खुद को गोविंद सिंह और उनके परिवार के सदस्यों से खतरा बताता रहा है।

गोविंद सिंह दमोह के देवेंद्र चौरसिया हत्याकांड में आरोपी हैं। हालांकि सरेंडर से पहले जारी किए गए वीडियो में वे खुद को निर्दोष बता रहे हैं लेकिन उन पर आरोप लगाने वाले और दिवंगत देवेंद्र चौरसिया के बेटे सोमेश चौरसिया हैं जो खुद भी उस घटना में बुरी तरह घायल हुए थे। सोमेश की शिकायत के बावजूद भी अगस्त 2019 में कांग्रेस सरकार के दौरान गोविंद सिंह का नाम हत्याकांड की रिपोर्ट में से पुलिस ने हटा  दिया था और कोर्ट में इसके लिए खात्मी की कार्यावाही करने का आवेदन लगा दिया था।

इससे पहले जुलाई 2019 में गोविंद सिंह मध्यप्रदेश की विधानसभा तक में अपनी पत्नी के साथ तफ़री करते नज़र आए। कांग्रेस की सरकार में तब गृह मंत्री बाला बच्चन थे जिन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं पता कि आरोपी विधानसभा में थे। इस समय भी गोविंद सिंह का नाम एफआईआर में था लेकिन उन्हें पुलिस से छूट मिली हुई थी।



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