इंदौर लॉ कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. इमानुर रहमान को गिरफ्तारी को लेकर SC भी अचरज में, पुलिस से पूछा ‘आर यू सीरियस?’


एबीवीपी के दबाव में प्रिसिंपल के पद से इस्तीफ़ा देने वाले डॉ. इनामुर रहमान के मामले की सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की पुलिस की मंशा पर सवाल उठाए


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बड़ी बात Published On :

इंदौर। मप्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने एक और गिरफ्तारी पर मायूस किया है। मामला इंदौर के लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. इमानुर रहमान की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की मंशा पर अचरज जताया।

16 दिसंबर, 2022 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें मामले में अंतरिम अग्रिम जमानत देने से इनकार करने के बाद, कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी। आज जब मामले की सुनवाई हुई तो याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट अल्जो के जोसेफ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को सूचित किया कि उन्हें 22 दिसंबर, 2022 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत दी गई थी।

बेंच उच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर याचिका को निपटाने के लिए आगे बढ़ रही थी। इस बीच राज्य के वकील ने बेंच से यह रिकॉर्ड करने का अनुरोध किया कि राज्य अग्रिम जमानत देने के आदेश को चुनौती देने का इरादा रखता है। राज्य के रुख ने बेंच को हैरान कर दिया।

CJI चंद्रचूड़ ने राज्य सरकार की ओर से आए वकील से पूछा, “राज्य को कुछ और गंभीर चीजें करनी चाहिए। वह एक कॉलेज प्रिंसिपल हैं। पुस्तकालय में मिली एक किताब की वजह से आप उन्हें क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं? कोर्ट ने कहा कि किताब में कुछ सांप्रदायिक सामग्री है तो क्या इसलिए उन्हें गिरफ्तार करने की मांग की गई है? कोर्ट ने तथ्यो पर गौर करते हुए कहा कि किताब 2014 में खरीदी गई थी और जब आरोपी डॉ रहमान वहां के प्रिंसिपल नहीं थे ऐसे में उन्हें गिरफ्तार करने की मांग अब जा रही है? क्या आप वाकई गंभीर हैं?”

राज्य के वकील ने कहा कि छात्रों ने शिकायत की है कि याचिकाकर्ता पुस्तक से पढ़ा रहे हैं। वहीं प्राचार्य ने अपनी याचिका मे कहा कि वे किताब के बारे में नहीं जानते।  CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “अगर आप आदेश को चुनौती देना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं। हम इससे निपटेंगे।

“ एलएलएम के एक छात्र ने इस मामले में आरोपी बनाई गईं  “सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली” नामक पुस्तक की लेखिका डॉ. फरहत खान और प्रकाशक अमर लॉ पब्लिकेशंस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

 

शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि पुस्तक झूठे और निराधार तथ्यों पर आधारित है। शिकायत में कहा गया कि किताब राष्ट्र-विरोधी है और भारत की सार्वजनिक शांति, अखंडता और धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखती है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि विचाराधीन पुस्तक 2014 में प्रकाशित हुई थी और कॉलेज द्वारा 2014 में भी खरीदी गई थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, वह उस समय कॉलेज में प्रोफेसर थे न कि कॉलेज के प्रिंसिपल। उन्होंने तर्क दिया कि मामला राजनीतिक कारणों से दर्ज किया गया था और याचिकाकर्ता, जो पुस्तक के प्रकाशन या विपणन में शामिल नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता डॉ. रहमान को मामले में अनावश्यक रूप से घसीटा गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि पुस्तक याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान नहीं, बल्कि 2014 में खरीदी गई थी, जब वह केवल एक प्रोफेसर थे और कॉलेज के पुस्तकालय के लिए किताबें खरीदने की प्रक्रिया में शामिल नहीं थे। याचिकाकर्ता ने एबीवीपी के विरोध के बाद प्राचार्य पद से इस्तीफा दे दिया।


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