मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में जारी एक आदेश ने राज्य में राजनीतिक और शैक्षणिक जगत में हंगामा मचा दिया है। इस आदेश के अनुसार, राज्य के सभी सरकारी और निजी कॉलेजों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े प्रमुख लेखकों की किताबों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी की गई 88 किताबों की सूची में कई प्रमुख संघ नेताओं और लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं। इनमें से प्रमुख नाम हैं:
- दीनानाथ बत्रा: 14 किताबें
- डॉ. अतुल कोठारी: 10 किताबें
- स्वामी विवेकानंद: 4 किताबें
- सुरेश सोनी: 3 किताबें
- डॉ. कैलाश विश्वकर्मा: 3 किताबें
- देवेन्द्र राव देशमुख: 3 किताबें
- एनके जैन: 2 किताबें
- प्राणनाथ पंकज: 2 किताबें
- राकेश भाटिया: 2 किताबें
इन किताबों को कॉलेजों में अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। उच्च शिक्षा विभाग ने सभी कॉलेजों को यह निर्देश दिया है कि वे बिना देरी इन किताबों की खरीदारी करें और छात्रों के पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल करें।
कांग्रेस का आरोप: नफरत का पाठ
इस फैसले के बाद कांग्रेस ने इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना लिया है। कांग्रेस के पूर्व विधायक कुणाल चौधरी ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना की है और इसे “नफरत का पाठ” पढ़ाने का प्रयास करार दिया है। चौधरी ने कहा, “बीजेपी अब एमपी के कॉलेजों में भारतीय ज्ञान परंपरा के नाम पर अज्ञात प्रकोष्ठ बनाना चाहती है। अगर शिक्षा में सुधार करना था तो वैज्ञानिकों और तटस्थ विचारधारा वाले लेखकों की किताबों को शामिल किया जाना चाहिए था। हम इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगे।”
कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया है कि यह निर्णय शिक्षा के भगवाकरण का हिस्सा है और इसे संघ की विचारधारा को थोपने का प्रयास बताया है। पार्टी ने इस मुद्दे पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।
बीजेपी का बचाव
वहीं, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए इस निर्णय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि ये किताबें छात्रों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से अवगत कराएंगी और उनके समग्र व्यक्तित्व विकास में सहायक होंगी। शर्मा ने कहा, “शिक्षा में भारतीयता का समावेश गलत नहीं है। यह छात्रों में देशभक्ति की भावना को प्रोत्साहित करेगा।”
सरकारी आदेश का पालन
उच्च शिक्षा विभाग ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि किताबों की खरीदी के लिए सरकारी कॉलेजों को जनभागीदारी मद से और निजी कॉलेजों को संस्था की निधि से यह खर्च करना होगा। विभाग ने यह भी सिफारिश की है कि प्रत्येक कॉलेज में ‘इंडियन नॉलेज ट्रेडिशन सेल’ का गठन किया जाए, जो इन किताबों को विभिन्न स्नातक पाठ्यक्रमों में शामिल करने में मदद करेगा।
इस निर्णय ने मध्य प्रदेश में शिक्षा और राजनीति दोनों क्षेत्रों में एक नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर इसे भारतीयता को बढ़ावा देने के कदम के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे एक विचारधारा विशेष को थोपने का प्रयास माना जा रहा है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर न्यायालय का सहारा लेने का निर्णय किया है, जिससे इस विवाद के और बढ़ने की संभावना है।
इसे लेकर हो रही राजनीति होना लाज़मी है क्योंकि इस तरह आरएसएस अपना शैक्षणिक संस्थानों में विस्तार ही कर रही है। इस फैसले का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आरएसएस की शैक्षिक शाखा, विद्या भारती, पहले से ही देशभर में शिक्षा के क्षेत्र में अपना मजबूत आधार बना चुकी है, जिसका असर अब उच्च शिक्षा तक भी दिखाई देने लगा है।
विद्या भारती के तहत, 2023 के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में लगभग 12,754 औपचारिक स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें करीब 3,292,896 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अलावा, विद्या भारती के 12,000 से अधिक अनौपचारिक स्कूल भी हैं, जो प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्रदान करते हैं।
इन स्कूलों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषाओं से लेकर अंग्रेजी तक भिन्न होता है, और अधिकांश स्कूल राज्य बोर्डों से संबद्ध हैं।विद्या भारती का प्रभाव सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है; यह पूर्वी और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में 1,000 से अधिक स्कूलों का संचालन करती है, जिनमें कई आवासीय स्कूल भी शामिल हैं।
इसके अलावा, देश के 127 सीमा जिलों में विद्या भारती 211 स्कूलों का संचालन कर रही है, और “राष्ट्रीय हित” में और अधिक स्कूल स्थापित करने की योजना भी है।मध्य प्रदेश में आरएसएस से जुड़े लेखकों की किताबों को कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय, विद्या भारती के इस व्यापक नेटवर्क और उसके शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव का एक हिस्सा माना जा सकता है।
राज्य सरकार का यह कदम, विद्या भारती की उस विचारधारा को आगे बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जो पहले से ही प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में मजबूत हो चुकी है। इस निर्णय ने राज्य में राजनीतिक विवाद को भी हवा दी है, जहां विपक्ष इसे “शिक्षा के भगवाकरण” के रूप में देख रहा है, जबकि सरकार इसे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने का कदम बता रही है। विद्या भारती के विस्तार के साथ, अब उच्च शिक्षा में भी आरएसएस की विचारधारा का प्रभाव दिखाई देने लगा है, जो इस बहस का केंद्र बिंदु बन गया है।