चेक बाउंस मामलों में राहत: अब हर पेशी पर अदालत में हाजिरी नहीं देनी होगी, राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला


राजस्थान हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में अभियुक्त की अनिवार्य उपस्थिति पर अहम फैसला दिया है। अदालत ने माना कि अर्ध-आपराधिक और अर्ध-नागरिक प्रकृति के इन मामलों में अभियुक्त की हर सुनवाई पर उपस्थिति जरूरी नहीं होनी चाहिए। इस फैसले से उन अभियुक्तों को राहत मिलेगी जो बार-बार कोर्ट में हाजिर नहीं हो पाते हैं। हाईकोर्ट का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को सरल और मानवोचित बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।


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बड़ी बात Updated On :

राजस्थान हाईकोर्ट ने चेक बाउंस के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अभियुक्त की उपस्थिति पर ज़ोर देना आवश्यक नहीं है। न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की एकल पीठ ने इस फैसले में कहा कि चेक बाउंस मामले, जो अर्ध-आपराधिक और अर्ध-नागरिक प्रकृति के होते हैं, उनमें अभियुक्त की उपस्थिति तब तक अनिवार्य नहीं होनी चाहिए जब तक कि उसकी आवश्यकता न हो।

 

मामला और अदालत का निर्णय

यह फैसला उस याचिका के आधार पर आया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट और जमानत बांड की जब्ती को चुनौती दी थी। आरोपी ने व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की याचिका अपनी पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण दाखिल की थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने इसे अस्वीकृत करते हुए अभियुक्त की गैर-हाजिरी पर कठोर रुख अपनाया और गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था। इसके साथ ही, अभियुक्त के जमानतदार के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की गई थी।

 

हाईकोर्ट की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “इस प्रकार के मामलों में अभियुक्त की उपस्थिति को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए, जब तक कि उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता न हो या उससे संबंधित बयान दर्ज करने की आवश्यकता न हो।” अदालत ने माना कि ऐसे मामलों में अभियुक्त की गैर-हाजिरी से सुनवाई प्रभावित नहीं होती है।

 

समझें चेक बाउंस कानून…

 

चेक बाउंस के पुराने मामलों में भी झांका

अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मोहम्मद हारिस बनाम पंजाब राज्य (2023) मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि जमानत रद्द करने का निर्णय बहुत गंभीर होता है और इसे साधारण ढंग से नहीं लिया जा सकता। इस फैसले में ट्रायल कोर्ट को पहले अभियुक्त को जमानत रद्द करने का कारण समझाने का अवसर देने की बात कही गई थी।

 

इसके अतिरिक्त, अदालत ने अरुण सोलंकी बनाम राज्य के मामले का भी जिक्र किया, जिसमें आरोपी की अनुपस्थिति के बावजूद 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। न्यायमूर्ति मोंगा ने इस फैसले को अनुचित और मनमानी बताया था और कहा था कि अभियुक्त की उपस्थिति का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, न कि कोर्ट की प्रतिष्ठा की संतुष्टि।

 

ट्रायल कोर्ट का आदेश निरस्त

इन तर्कों के आधार पर, राजस्थान हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और अभियुक्त के जमानत बांड और उसके जमानतदारों के बांड को बहाल कर दिया, लेकिन इसके साथ अभियुक्त को 7,500 रुपये का जुर्माना शिकायतकर्ता को भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

 

कोर्ट में कम होगी भीड़

यह फैसला उन अभियुक्तों के लिए राहत का संकेत है जो कोर्ट में बार-बार हाजिर होने में असमर्थ होते हैं। इस निर्णय से न केवल अभियुक्तों को न्याय मिलने की प्रक्रिया आसान होगी, बल्कि ट्रायल कोर्ट में भीड़भाड़ कम होगी।

 


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