नई दिल्ली। किसान आंदोलन (Farmers protest) को शुरु हुए आज 21 दिन हो चुके हैं। इस बीच किसानों को सड़क से हटाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) पहुंच चुका है जिस पर आज सुनवाई होनी है। केंद्र सरकार जहां किसान आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश में जुट गई है तो इसे मज़बूत करने के लिए उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतेें (Khap Panchayat) आगे आ रहीं हैं। मुजफ्फरनगर में कई खापों ने आंदोलन को समर्थन दिया है।
ये खाप पंचायतें कल यानि 17 दिसंबर को दिल्ली की सीमाओं पर हो रहे इन प्रदर्शनों में शामिल होंगी। दैनिक भास्कर अख़बार के मुताबिक अखिल खाप परिषद के सचिव सुभाष बालियान इसे सही बता रहे हैं। वहीं किसान संगठनों ने कहा है कि वे बुधवार को दिल्ली और नोएडा के बीच चिल्ला बॉर्डर को पूरी तरह से ब्लॉक करेंगे।
केंद्र सरकार और उनके मंत्री तो आंदोलन पर गंभीर नज़र आ रहे थे लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इसे लेकर खास प्रतिक्रिया नहीं दी थी। आंदोलन बढ़ता देख अब पीएम मोदी आंदोलन कर रहे किसानों की हर शंका को दूर करने की बात कह रहे हैं।
मंगलवार को गुजरात दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि
विपक्ष किसानों को गुमराह करने की साजिश कर रहा है। उन्हें डराया जा रहा है कि किसानों की जमीन पर दूसरे कब्जा कर लेंगे। यदि कोई डेयरी वाला दूध लेने का कॉन्ट्रैक्ट करता है तो क्या वह पशु को भी ले जाता है? उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार हर शंका के समाधान को तैयार है। मोदी ने गुजरात में सिख संगठनों से भी मुलाकात की।
ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि पीएम नरेंद्र मोदी भी अब इस आंदोलन को शांत करने के लिए मैदान में आ सकते हैं और किसानों के साथ होने वाली किसी वार्ता में हिस्सा ले सकते हैं। हालांकि यह अभी पुष्ट नहीं है लेकिन जानकार कहते हैं कि अब मोदी को खुद ही मोर्चा संभालना चाहिए और किसानों की शंकाओं को सीधे तौर पर सुनना चाहिए और उन्हें भरोसा दिलाना चाहिए।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने अलग-अलग राज्यों में किसानों को अपने संगठन के ज़रिये मनाने की कोशिश शुरु कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसदों और विधायकों को किसानों के बीच जाकर कृषि बिलों के बारे में सकारात्मक राय बनाने के लिए कहा है।
मध्यप्रदेश के भोपाल (Bhopal) में इसकी शुरुआत मंगलवार को हुई और अब बुधवार को प्रदेश के सात शहरों में बड़े किसान सम्मेलन होने जा रहे हैं। इस तरह केंद्र सरकार किसानों के सामने अब किसानों को ही खड़ा कर रही है। ऐसे में आंदोलन कमज़ोर पड़ने की संभावना सरकार को सबसे ज़्यादा नज़र आ रही है।