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सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले रासायनिक कचरे को मध्य प्रदेश के पीथमपुर में निस्तारित करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब मांगा है। यह याचिका इंदौर के जाने माने गांधीवादी विचारक चिन्मय मिश्र के द्वारा दायर की गई है।
क्या है मामला?
भोपाल गैस त्रासदी 3 दिसंबर 1984 की रात को हुई थी, जब यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था। इस भयावह घटना में हजारों लोगों की मौत हो गई थी और लाखों लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे। इस त्रासदी के 40 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के पुराने परिसर में खतरनाक रासायनिक कचरा जमा है, जो पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है।
भोपाल स्थित संयंत्र से इस कचरे को हटाने के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दिसंबर 2024 में आदेश दिया था, जिसके तहत 2 जनवरी 2025 को 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा पीथमपुर स्थित अपशिष्ट निपटान संयंत्र भेजा गया। लेकिन स्थानीय समुदाय और पर्यावरणविदों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया।
पीथमपुर में विरोध प्रदर्शन और स्थानीय लोगों की चिंताएं
पीथमपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों के लोगों ने इस खतरनाक कचरे के निपटान का पुरजोर विरोध किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इससे उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।
3 जनवरी 2025 को विरोध प्रदर्शन के दौरान, एक स्थानीय निवासी ने आत्मदाह करने का प्रयास किया, जिससे स्थिति और अधिक गंभीर हो गई। पीथमपुर के निवासी इस कचरे के जलाने से निकलने वाली विषैली गैसों के संभावित प्रभावों को लेकर चिंतित हैं।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया है कि:
- हाईकोर्ट ने बिना वैज्ञानिक परामर्श के कचरे के निपटान का आदेश दिया, जिससे स्थानीय निवासियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
- पीथमपुर संयंत्र घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है, जहां 105 घरों वाला तारापुरा गांव सिर्फ 250 मीटर की दूरी पर है।
- निपटान स्थल गंभीर नदी के पास स्थित है, जिससे यदि विषैले कचरे का उचित तरीके से निपटान नहीं किया गया, तो नदी का जल प्रदूषित हो सकता है।
- जनता को इस फैसले की पूरी जानकारी नहीं दी गई, और प्रभावित लोगों को कोई सुरक्षा सलाह भी जारी नहीं की गई।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और राज्य सरकार का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में विशेषज्ञों से सलाह लिए बिना ही आदेश दे दिया। उन्होंने कहा, “यह एक खतरनाक अपशिष्ट है! निपटान प्रक्रिया को लेकर जनता में डर और असंतोष है।”
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने प्रभावित लोगों को स्थानांतरित करने की कोई योजना नहीं बनाई है। इसके अलावा, उन्होंने इस तथ्य को उजागर किया कि निपटान स्थल के 1 किमी के दायरे में 4-5 गांव हैं, जिससे बड़ी आबादी को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम हो सकता है।
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि निपटान की प्रक्रिया सभी सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए की जाएगी और इसमें जनता की सुरक्षा सर्वोपरि होगी।
क्या हो सकता है आगे?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की है। इस दौरान, राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अपना पक्ष अदालत में प्रस्तुत करना होगा।
इस फैसले से न केवल भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोग, बल्कि पीथमपुर और इंदौर के निवासियों का भविष्य भी जुड़ा हुआ है। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय लेता है और क्या कचरे का निपटान पीथमपुर में होगा या कोई नया समाधान खोजा जाएगा।