MPPSC 2019 के रिजल्ट संबंधी पूर्व आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका


मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा एमपीपीएससी-2019 परीक्षा के रिजल्ट को लेकर पहले पारित किए आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है।


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जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा एमपीपीएससी-2019 परीक्षा के रिजल्ट को लेकर पहले पारित किए आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है जिसने पूर्व के आदेश पर सवाल उठाया है।

याचिका दायर करने वाले वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि मप्र लोकसेवा आयोग द्वारा 10 अक्टूबर 2022 को पीएससी प्रारंभिक परीक्षा-2019 के घोषित रिजल्ट के खिलाफ सौ से अधिक अभ्यर्थियों ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 20 नवंबर 2022 को आदेश जारी किया कि संशोधित परिणाम में जिन आरक्षित वर्ग के आवेदकों का चयन हुआ है, सिर्फ उनकी ही मुख्य परीक्षा ली जाए।

इस आदेश के खिलाफ ओबीसी व सामान्य वर्ग के आवेदकों ने अपील के जरिये हाईकोर्ट की शरण ली है।

अपील का मुख्य आधार यह है कि हाईकोर्ट द्वारा परीक्षा नियम-2015 में किए गए 17 फरवरी 2020 के संशोधन को हाईकोर्ट की युगल पीठ सात अप्रैल 2022 के आदेश के जरिये असंवैधानिक घोषित कर चुकी है।

इसके बावजूद असंवैधानिक नियमों के तहत 21 दिसंबर, 2020 को पीएससी प्रारंभिक परीक्षा-2019 का परिणाम व 31 दिसंबर 2021 को मुख्य परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया गया।

हाईकोर्ट ने पूर्व के असंशोधित नियम-2015 के तहत परिणाम घोषित करने का आदेश दिया था जिसके पालन में मप्र लोकसेवा आयोग ने पूर्व घोषित दोनों परीक्षा परिणाम निरस्त कर 10 अक्टूबर 2022 को दो भागों में 80 प्रतिशत व 13 प्रतिशत पर परिणाम जारी किया जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में 103 आवेदकों ने चार याचिकाएं दायर कर दीं।

याचिका दायर करने वाले आवेदकों का मुख्य तर्क यही था कि उन्हें पुन: मुख्य परीक्षा देनी पड़ रही है, जबकि वे साक्षात्कार के लिए चयनित हो गए थे।

वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से साफ किया था कि मप्र लोकसेवा आयोग की कार्रवाई सही है, ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों परीक्षा परिणाम अंसवैधानिक नियमों के अनुसार जारी किए गए थे।

इसके बावजूद एकल पीठ ने इस तर्क को रिकॉर्ड पर लिए बिना आदेश पारित कर दिया। इसके तहत छह माह के भीतर संशोधित परिणाम में सफल हुए सिर्फ आरक्षित वर्ग के आवेदकों की विशेष परीक्षा व साक्षात्कार लेने की व्यवस्था दे दी।

दरअसल, एक भर्ती परीक्षा में दो अलग-अलग परीक्षाएं नहीं ली जा सकतीं। यदि मप्र लोकसेवा आयोग द्वारा एकल पीठ का आदेश लागू किया जाता है, तो दूसरे आवेदकों के साथ भेदभाव होगा।


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