IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने विकसित की नई तकनीक, सौर बैटरी बनाना होगा और भी किफायती


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में धातु ऑक्साइड की पतली झिल्ली बनाने की सस्ती प्रक्रिया विकसित की गई है।


DeshGaon
बड़ी बात Published On :
cost-effective-solar-batteries

नई दिल्ली। सिलिकॉन सौर सेल में उपयोग होने वाले सेमीकंडक्टर में निकेल ऑक्साइड महत्वपूर्ण है। सिलिकॉन सौर सेल बनाने के लिए निकेल ऑक्साइड फिल्म तैयार करनी होती है, जिसकी मोटाई मनुष्य के बालों की मोटाई से एक लाख गुना कम, नैनो पैमाने पर होती है।

नैनो स्तर पर निकेल ऑक्साइड झिल्ली विकसित करने की प्रक्रिया अत्यधिक खर्चीली है, क्योंकि इसके उत्पादन में उपयोग होने वाले उपकरण आयात करने पड़ते हैं। झिल्लियों के विकास में उपयोग होने वाले निकेल एसिटाइलसीटोनेट आदि बेहद महंगे हैं।

तकनीक का महंगा होना इसका उपयोग सीमित कर देता है। हाल ही में भारतीय शोधकर्ता आधुनिक संरचना वाले सिलिकॉन सौर सेल में उपयोग होने वाली सस्ती धातु ऑक्साइड परत विकसित करने में सफल हुए हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन में धातु ऑक्साइड की पतली झिल्ली बनाने की सस्ती प्रक्रिया विकसित की गई है। अध्ययन के बाद सस्ती सौर बैटरी विकसित करने की राह सरल हो जाएगी।

रासायनिक वाष्प निक्षेपण विकास प्रणाली –

धातु ऑक्साइड की पतली झिल्ली बनाने की सस्ती प्रक्रिया विकसित की गई है। वर्तमान प्रक्रिया में उपयोग होने वाली सामग्री की तुलना में नई विकसित तकनीक में उपयोग की गई सामग्री भी सस्ती है, जिसमें सिलिकॉन सब्सट्रेट पर निकेल ऑक्साइड की महीन झिल्ली बनाने के लिए एरोसोल की सहायता से रसायनिक भाप के निक्षेपण की तकनीक का उपयोग किया गया है।

कम लागत और किफायती –

सौर सेल बनाने के लिए धातु ऑक्साइड परत बनाने के लिए विकसित की गई यह तकनीक किफायती है। इसके उपयोग से आधुनिक आर्किटेक्चर वाले सिलिकॉन फोटोवोल्टिक उपकरण बनाने की प्रक्रिया बेहतर होगी, जिससे व्यावसायिक तकनीकों की लागत और जटिलता कम होगी। यह प्रौद्योगिकी विकास के आरंभिक चरण में है। विकास के बढ़ते स्तरों के साथ यह प्रौद्योगिकी उद्योगों में भी अपनायी जा सकेगी।

शोधकर्ता डॉ. कुणाल घोष बताते हैं कि

एरोसोल की सहायता से रसायनिक भाप के निक्षेपण की तकनीक से सिलिकॉन सहित विभिन्न सतहों पर उच्च गुण्वत्ता युक्त पतली झिल्ली बनायी जा सकती है। इसके लिए, एयरोसोल के रूप में भाप अवस्था में पूर्ववर्ती सामग्री का उपयोग किया जाता है। एयरोसोल की मदद से ऑक्साइड आधारित सामग्रियों की विस्तृत श्रेणियों का जमाव सटीक रूप से किया जा सकता है। इसका लाभ सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग के विभिन्न उपयोगों में किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं द्वारा निकेल नाइट्रेट की 15 नैनोमीटर मोटाई की निकेल ऑक्साइड फिल्म विकसित कर उसका अध्ययन किया गया। सिलिकॉन सब्सट्रेट पर जमायी गई बारीक झिल्ली की डायोड संबंधी विशेषताओं से यह सुनिश्चित किया कि इसमें सौर सेल बनाने के लिए जरूरी गुण विद्यमान हैं।

डॉ. घोष बताते हैं कि

हमने पाया कि इस प्रक्रिया से सौर सेल के लिए धातु ऑक्साइड झिल्ली उत्पादन की लागत कम हो सकती है, और इसका व्यापक उपयोग किया जा सकता है। यह एक नई पद्धति है, जिसमें उत्पादन की प्रचलित तकनीकों की लागत और जटिलता कम करने और सौर उद्योग में नया दौर शुरू करने की संभावना है। चूंकि उपकरण सहित पूरी प्रक्रिया का विकास इन-हाउस हुआ है, ऐसे में, अत्याधुनिक आर्किटेक्चर के सिलिकॉन सोलर सेक्टर में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में भी इससे योगदान मिल सकेगा।


Related





Exit mobile version