मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का अहम फैसला: मजदूरों को राहत, अब नए मालिकों को भी मिलेगा नोटिस


मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने फैसले में श्रम न्यायालय को यह अधिकार दिया है कि वह किसी भी नए मालिक या अन्य संबंधित पक्षकार को नोटिस भेज सकता है, भले ही वह मूल विवाद का हिस्सा न हो। इस फैसले के तहत, यदि कोई कंपनी अपने अधिकारों और देनदारियों को ट्रांसफर करती है, तो नए मालिक पर भी मुआवजा देने की जिम्मेदारी आ सकती है। कोर्ट का यह फैसला श्रमिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिहाज से अहम माना जा रहा है।


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बड़ी बात Updated On :
MP हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय को नए मालिकों को भी नोटिस जारी करने का अधिकार दिया। यह फैसला श्रमिकों के हित में एक अहम कदम है।

इंदौर स्थित MP हाईकोर्ट की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि श्रम न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह उस पक्ष को भी नोटिस जारी कर सके, जो मूल संदर्भ में पक्षकार नहीं था। यह फैसला न्यायमूर्ति सुष्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने दिया।

खंडपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया, “पहले चरण की सुनवाई में मामला 11/ID/2024 के रूप में पंजीकृत किया गया है और चूंकि इस मामले में कई कर्मचारियों के अधिकार दांव पर हैं, इसलिए यह उचित है कि संपत्तियों और देनदारियों को संभालने वाले नए मालिक को भी पक्षकार के रूप में शामिल किया जाए। इस स्थिति में, अपीलकर्ता यह दावा नहीं कर सकते कि वे नए हैं और उनके खिलाफ कोई राहत नहीं मांगी जा सकती।”

अदालत के फैसले का आधार

इस निर्णय में हाईकोर्ट ने एकल-न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें श्रम न्यायालय को यह अधिकार दिया गया था कि वह ऐसे किसी भी संस्था, समूह या वर्ग को नोटिस जारी कर सकता है, जो कि सीधे संदर्भ का पक्षकार नहीं है। इस संदर्भ में अदालत ने ग्लोब ग्राउंड इंडिया कर्मचारी संघ बनाम लुफ्थांसा जर्मन एयरलाइन्स (2019) के मामले का हवाला दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की थी, जिसमें मध्यप्रदेश श्रम आयुक्त द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में यह सवाल उठाया गया था कि सेंटुरी यार्न और सेंटुरी डेनिम यूनिट द्वारा मंजीत ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और मंजीत कॉटन प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरण और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25-एफएफ के तहत मुआवजे का भुगतान वैध है या नहीं। यदि नहीं, तो श्रमिकों को क्या राहत दी जानी चाहिए?

अपीलकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं के वकील का तर्क था कि वे संदर्भ में शामिल अन्य पक्षों के विवाद से प्रभावित नहीं हैं, लेकिन नए खरीदार के रूप में उन्हें संदर्भ में पक्षकार बनाना अनुचित है। उनका कहना था कि 15 जुलाई 2021 को जब उन्होंने यूनिट खरीदी, तब वे इस मामले में आए, और यूनिट के पुराने श्रमिक उनके कर्मचारी नहीं रहे हैं, इसलिए मुआवजे की जिम्मेदारी उनकी नहीं बनती।

खंडपीठ ने एकल-न्यायाधीश की व्याख्या को सही ठहराते हुए कहा, “न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला है कि श्रम न्यायालय को नए पक्ष को भी नोटिस जारी करने का अधिकार है। हालांकि अंतिम निर्णय सबूतों के आधार पर ही किया जाएगा और इसमें दोनों पक्षों के हितों का ध्यान रखा जाएगा।”

 

हाईकोर्ट के इस फैसले को आसान भाषा में समझिए…

  1. प्रमुख निर्णय:
    • इंदौर बेंच की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया है कि श्रम न्यायालय को यह अधिकार है कि वह ऐसे पक्षकार को भी नोटिस भेज सके जो मुख्य संदर्भ में शामिल नहीं था।
    • यह फैसला उस मामले के आधार पर दिया गया है जिसमें श्रम न्यायालय ने ग्लोब ग्राउंड इंडिया कर्मचारी संघ बनाम लुफ्थांसा जर्मन एयरलाइन्स (2019) के फैसले को संदर्भित किया है, जिससे उसे किसी अन्य संस्था या समूह को भी नोटिस भेजने का अधिकार मिला।
  2. मामले की पृष्ठभूमि:
    • यह मामला सेंटुरी यार्न और सेंटुरी डेनिम यूनिट द्वारा मंजीत ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और मंजीत कॉटन प्राइवेट लिमिटेड को संपत्ति और देनदारियों के हस्तांतरण से संबंधित है।
    • विवाद का मुख्य मुद्दा यह है कि यूनिट के ट्रांसफर के बाद कर्मचारियों को मुआवजा देने की जिम्मेदारी नए मालिक पर आएगी या नहीं।
  3. नए मालिकों की अपील:
    • नए मालिकों का दावा है कि उन्होंने कंपनी को 2021 में खरीदा है, और पूर्व कर्मचारियों के प्रति मुआवजे की जिम्मेदारी उन पर लागू नहीं होती।
    • उनका तर्क यह भी था कि वे मामले के पहले चरण में शामिल नहीं थे, इसलिए उन्हें इस संदर्भ में मुआवजा नहीं देना चाहिए।
  4. खंडपीठ की टिप्पणी:
    • हाईकोर्ट ने एकल-न्यायाधीश के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि श्रम न्यायालय को ऐसे किसी भी पक्ष को नोटिस भेजने का अधिकार है, जो संदर्भ का प्रारंभिक पक्षकार न होने के बावजूद मुद्दे से प्रभावित हो सकता है।
    • अदालत ने स्पष्ट किया कि मामले का अंतिम निर्णय सबूतों के आधार पर ही किया जाएगा, जिससे दोनों पक्षों के हितों का ध्यान रखा जा सके।
  5. फैसले का प्रभाव:
    • यह फैसला उन श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण है जो कि इस यूनिट में पहले से काम कर रहे थे और ट्रांसफर के बाद उनकी नौकरी और मुआवजे पर संकट मंडरा रहा था।
    • इसके जरिए यह सुनिश्चित किया गया है कि नए मालिक भी श्रम अधिकारों के प्रति जवाबदेह होंगे, खासकर जब कंपनी की देनदारियां और संपत्तियां ट्रांसफर के बाद उनके पास आ जाती हैं।

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