भोपाल। उपचुनावों की परिणाम पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में गए हैं। इससे कुछ रिश्तों में भी गर्मजोशी आने की उम्मीद है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय के रिश्ते भी इनमे से ही एक हैं। कहते हैं कि क्रिकेट का खेल दिलों को मिलाता है और अक्सर राजनीति दूरियां बढ़ाती है, लेकिन इन दोनों के मामले में क्रिकेट की सियासत को लेकर मनमुटाव ही रहा और ये राजनीति के लिए एक हुए हैं। मालवा क्षेत्र में बीजेपी और सिंधिया की सफलता में कैलाश विजयवर्गीय भी अहम किरदार रहे हैं। सिंधिया के सबसे करीबी तुलसीराम सिलावट को सांवेर से जिताने में कैलाश विजयवर्गीय एक अहम किरदार रहे हैं।
एक समय मप्र क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय के रिश्ते ठीक नहीं थे और जब सिंधिया बीजेपी में आए तो दोनों के पास संबंध सुधारना ही एकमात्र रास्ता था। संबंध सुधरे भी लेकिन शुरुआत में सब कुछ औपचारिक ही रहा है लेकिन उपचुनावों के बाद इन संबंधों में गर्माहट आने की उम्मीद है।
छोटे कद वाले विजयवर्गीय मालवा-निमाड़ की राजनीति के बड़े बाज़ीगर कहे जाते हैं। वे मुख्यमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार थे लेकिन उनके मुख्यमंत्री न हो पाने की वजहें कई रहीं। मध्यप्रदेश में भी कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी के लिए काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी। यहां उन्होंने मालवा और निमाड़ की सीटों पर काफी प्रचार किया है। मालवा-निमाड़ में बीजेपी को पर्याप्त सफलता मिली है।
सांवेर सीट सबसे अहम थी, क्योंकि यहां से सिंधिया के सबसे खास नेता तुलसी सिलावट चुनाव लड़ रहे थे। इस सीट की जिम्मेदारी भी एक तरह से कैलाश विजयवर्गीय की ही थी। क्योंकि यहां चुनाव प्रभारी विधायक रमेश मेंदोला थे, जो विजयवर्गीय के सबसे करीबी हैं। मेंदोला का चुनाव प्रबंधन सबसे शानदार माना जाता है। वे खुद अपनी विधानसभा में करीब 90 हजार वोट से जीत चुके हैं और यह प्रदेश में सबसे बड़ी जीत थी।
इसके अलावा सांवेर सीट के लिए युवाओं को जोड़ने की जिम्मेदारी विजयवर्गीय के बेटे और इंदौर की तीन नंबर सीट से विधायक आकाश विजयवर्गीय को दी गई थी। ऐसे में तुलसी सिलावट की जीत से इंदौर के विजयवर्गीय खेमे का कद इंदौर की राजनीति में बढ़ा है।
सांवेर सीट पर कई दिलचस्प समीकरण रहे। पहले तो रमेश मेंदोला को यहां का प्रभार दिया जाना लोगों को अटपटा लगा। इसकी वजह सिंधिया और विजयवर्गीय की पुरानी अदावत या कहें मनमुटाव था। वहीं, दूसरी वजह इस बार बीजेपी के जिलाध्यक्ष राजेश सोनकर भी थे जो सांवेर के पूर्व विधायक हैं और 2018 के विधानसभा चुनावों में तुलसी सिलावट से हारे भी थे। इन कारणों से तुलसी सिलावट खेमे में भीतरघात का डर भी कुछ हद तक रहा होगा।
इसके अलावा तीसरा फैक्टर मंत्री उषा ठाकुर रहीं। जिन्हें सांवेर सीट पर सहप्रभारी बनाया गया था। पिछले विधानसभा चुनावों में उषा ठाकुर अपना टिकिट बदले जाने के बाद से नाराज़ थीं। उन्हें अपनी सीट छोड़कर कैलाश विजयवर्गीय की सीट महू जाना पड़ा था और उनकी सीट इंदौर-तीन से कैलाश के बेटे आकाश को टिकिट दिया गया था। ऐसे में उनकी सीधी नाराज़गी की कैलाश विजयवर्गीय से ही थी। उनकी मौजूदगी भी चुनाव प्रबंधन में गड़बड़ी की आशंका बढ़ा रही थी।
इन सब के बावजूद मेंदोला ने यहां भी अपने अंदाज़ का चुनाव प्रबंधन अपनाया जो काफी प्रभावी रहा। इस दौरान लगातार दर्जनों चुनरी यात्राएं निकाली गईं। कोरोना काल में संक्रमण के डर के बीच इन यात्राओं की चर्चा पूरे प्रदेश और कहा जाए तो देश में भी रही। इसके साथ घर-घर तुलसी नाम का एक अभियान चला दिया गया। जनसंपर्क भी दिन रात होते रहे क्योंकि बीजेपी कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज इसमें जुट गई थी।
कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन इसके आसपास भी नहीं था। चुनावों के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी प्रेम चंद गुड्डू भी इससे लगातार घबराए हुए थे। कांग्रेस की ओर से धार्मिक सीरत के कुछ अभियान जरूर चलाए गए लेकिन वे ख़ास प्रभावी नहीं रहे। गुड्डू अपने पक्ष में बीजेपी की तरह सभाएं और कार्यक्रम नहीं कर सके। इसका सीधा सा मतलब था कि उनसे कम लोग जुड़ सके। यही वजह रही कि सिलावट को काफी बड़े अंतर की जीत मिल सकी।