जिस अफ़सर के नाम पर सेना गर्व करती है उनकी बेटियों को आज अफसरों ने घर से निकालकर सड़क पर ला दिया…


महू में बंगला नंबर 69 को खाली करवाने के लिए छावनी परिषद और रक्षा संपदा विभाग आमादा है, ये बंगला भारतीय सेना के पहले ऑर्डिनेंस निदेशक ब्रिगे. ईए रॉडरिगस का है।


अरूण सोलंकी
बड़ी बात Updated On :

इंदौर। महू छावनी का एक बंगला इन दिनों खासी चर्चाओं में है। ये बंगला नंबर 69 है जो करीब सवा सौ साल पुराना है। यह बंगला ब्रिगेडियर ईए रॉडरीगस का है। जहां इस समय उनकी दो बेटियां ऐन्न चंदिरामानी और अरुणा रॉडरिगस रहती हैं।

ब्रिगेडियर रॉडरिगस का बंगला नंबर 69

 

रक्षा संपदा कार्यालय का दावा है कि यह जमीन उनकी है और इस पर रह रहे परिवार ने ज़मीन को गैरकानूनी तरीके से उपयोग किया है और इसीलिए वे इसे खाली करवा रहे हैं। वे इस मामले में स्थानीय कोर्ट से भी केस जीत चुके हैं। केस जीतने के बाद परिषद और रक्षा संपदा के अधिकारियों ने सीधे जाकर परिवार को बाहर निकालना शुरू कर दिया।

बंगला नंबर 69

हालांकि बंगले में रहने वाले परिवार के पास  इस बंगले में बने रहने के लिए तीन जनवरी तक स्टे है ये स्टे कार्रवाई वाले दिन मिला था लेकिन तब तक छावनी परिषद और रक्षा संपदा के अफसरों ने परिवार पर दबाव डालकर उनका सामान बाहर निकलवा दिया और अपना सरकारी सामान अंदर रख लिया।

हालांकि बताया जाता है कि उनके पास लोगों को निकालने का कोई आदेश नहीं था। जिस समय घर की महिलाओं को निकाला जा रहा था उस समय यहां केवल छावनी परिषद और रक्षा संपदा विभाग के कर्मचारी थे और सेना के जवानों के अलावा कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थी।

अब परिवार के लोग सर्द रात में घर के बाहर सड़क पर रखे अपने इस सामान की देखभाल कर रहे हैं। ब्रिग. रॉडरिगस की 75 वर्षीय बेटी और भारत की जानी मानी समाज सेवी अरुणा रोज़ इसी तरह अपने घर के इस सामान की देखभाल कर रही हैं।

अपने घर बंगला नंबर 69 के बाहर अपने सामान की देखभाल करती अरुणा रॉडरिगस

सामान से सड़क जाम है और छावनी परिषद की ओर से परिवार को बार-बार सामान हटा लेने के लिए कह रहे हैं और ऐसा न करने पर परिवार पर कार्रवाई करने की धमकी दी जा रही है। छावनी परिषद के कार्यालय अधीक्षक सतीश अग्रवाल के मुताबिक अगर सोमवार तक सड़कों पर से सामान खाली नहीं किया गया तो वे परिवार के ऊपर चालानी कार्रवाई करेंगे।

विडंबना ये है कि फौज के जिस अफसर के नाम पर सेना अपने सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों को सम्मान देती है उनकी तस्वीर भी इस समय सड़क पर ही रखी है।

ब्रिग. रॉडरिगस की तस्वीर सड़क पर पड़े समान के बीच रखा हुआ

परिषद की ओर से दावा किया जा रहा है कि बंगले पर रॉडरिगस परिवार का कानूनी दावा कमजोर है और वे जल्दी ही अपना सामान हटा लेंगे। हालांकि परिवार के वकील ऐसा नहीं कहते। वकील रवि आर्य बताते हैं कि यह बंगला परिवार का ही है और वे एक सदी से यहां रह रहे हैं। ऐसे में इस तरह उन्हें यहां से हटाना ठीक नहीं है।

बंगला नंबर 69

महू के पुराने जानने वालों को रॉडरिगस परिवार से संवेदना है लेकिन छावनी परिषद और रक्षा संपदा विभाग के अधिकारियों का ख़ौफ़ इतना है कि लोग इस बारे में बोलने से बच रहे हैं।

लोगों के मुताबिक छावनी परिषद के अधिकारी जीवन भर इसी शहर में सेवा देते हैं और कहा नहीं जा सकता कि कब किसी नियम का हवाला देकर उन्हें परेशान करना शुरु कर दिया जाए।

ऐतिहासिक है ये बंगला

वैसे महू छावनी की तरह यह बंगला भी ऐतिहासिक है। इस बंगले का इतिहास 1857 से भी पहले से शुरु होता है। जब गोवा से व्यापार करने ज्यां बाप्टेस्ट कार्डोज़ो महू आए थे और यहां ताउम्र रहे। ज्यां बापतिस्त कार्डोज़ो को मर्चेंट ऑफ महू कहा जाता था और उनकी मृत्यु साल 1871 में हुई। उनकी कब्र आज भी रेलवे स्टेशन के पास के कब्रिस्तान के प्रोटेस्टेंट भाग में है, उस समय इस कब्रिस्तान में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक भाग अलग नहीं थे। परिवार के अनुसार कार्डोज़ो तत्कालीन छावनी परिषद के सदस्य भी थे। उनके बेटे विन्सेंट कार्डोज़ो ने साल 1892 ने यह बंगला खरीदा था।

बंगला नंबर 69 पर

विन्सेंट कार्डोज़ो के दामाद डॉ डायस ने पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना को अपनी सेवाएँ दीं थी। उन्होंने महू में काफी समाज कार्य भी किया था।

पहले विश्व युद्ध में एक डॉक्टर के रूप में काम करने वाले डॉक्टर डायस भी इसी बंगले में रहे

उन्होंने मेन स्ट्रीट में वर्तमान बैंक ऑफ बड़ौदा बिल्डिंग में एक डिस्पेंसरी भी शुरु की थी। इसके अलावा बताया जाता है कि डीपी कैंट अस्पताल में परिवार ने एक वार्ड भी बनाकर दिया।

 पहले भारतीय अफसर…

डॉ. डायस के दामाद ब्रिगेडियर ईए रॉडरिगस थे। ब्रिगे.रॉडरिगस सैंडहर्स्ट मिलिट्री अकादमी इंग्लैंड से किंग्स कमीशन प्राप्त करने वाले भारतीय अफसरों के आखिरी बैच के अफसर थे। 1947 में वे थल सेना के ओर्डिनेन्स विभाग के पहले भारतीय निदेशक बने जिन्हें डायरेक्टर ऑफ ऑर्डिनेंस कहा जाता है। इसी विभाग को सेना के गोला बारूद और असला  संभालने की ज़िम्मेदारी होती है।

ब्रिगे. रॉडरिगस ट्रॉफी

ब्रिगे. रॉडरिगस ने साल 1957 में अपनी तय उम्र से पहले सेना से रिटायरमेंट ले लिया। ब्रिगे. रॉडरिगस के नाम की प्लेट आज भी इस बंगले पर लगी हुई है और भारतीय सेना भी अपने इस अफसर को पूरा सम्मान देती है। आज भी उनके नाम से एक ब्रिगे. ईए रॉडरिगस ट्रॉफ़ी सेना के ऑर्डिनेंस विभाग में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अफसरों को दी जाती है। सेना ने ब्रिगे. रॉडरिगस के नाम पर यह पुरुस्कार 1987 में शुरु किया था।

ब्रिगेडियर रॉडरिगस ट्रॉफी

भारत की आजादी के लिए भी लड़े…

ब्रिगेडियर रॉडरीगस के बड़े दामाद ब्रिगेडियर चंदिरामनी थे और चंदिरामनी के पिता हाईकोर्ट के जज थे। वहीं ब्रिगेडियर रॉडरीगस के भाई भारतीय पुलिस में आईजी के पद से रिटायर हुए थे। अपने शुरुआती कैरियर में वे अंग्रेजों की सेना छोड़कर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज में शामिल हो गए। इसके चलते अंग्रेजी सरकार ने उनका कोर्ट मार्शल भी कर दिया था। बाद में इंदौर में वे बीएसएफ के सेंट्रल स्कूल ऑफ वेपन्स एंड टेकटिक्स के संस्थापकों में भी शामिल रहे।

सेना के एक महत्वपूर्ण पद पर रहे एक अफ़सर की बेटियां आज सेना के ही विभागों से इस तरह का व्यहवार झेल रहीं हैं। छावनी परिषद और रक्षा संपदा कार्यालय इस बंगले को अपने कब्ज़े में लेने के लिए इस आमादा है। ब्रिगेडियर रॉडरिग्स के नाम की ट्रॉफी हांसिल करना जहां सेना के अफसर के लिए फख़्र की बात हीती है तो वहीं महू में अपने पुराने बंगले के बाहर आज भी सेना के इस शानदार अफसर की तस्वीर सड़क पर रखी हुई है।


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