मध्य प्रदेश की बढ़ती कर्ज़ की चुनौती: वित्तीय संकट की आहट!


मध्य प्रदेश सरकार लगातार बढ़ते कर्ज के बोझ तले दबती जा रही है। हाल ही में सरकार ने 5000 करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने का ऐलान किया है, जिससे राज्य का कुल कर्ज 3.95 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा। सरकार की यह कर्ज़ पर बढ़ती निर्भरता राज्य की वित्तीय स्थिति को और कमजोर कर रही है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने सरकार को कर्ज़ लेने के बजाय राजस्व बढ़ाने और घाटे में चल रहे उपक्रमों की समीक्षा करने की सलाह दी है। यह स्थिति राज्य के विकास और आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।


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Mohan yadav Shivraj Singh VD sharma

मध्य प्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही है, और राज्य लगातार कर्ज के दलदल में फंसता नजर आ रहा है। हाल ही में, मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार ने दो और कर्ज लेने की योजना बनाई है, जिससे सरकार पर वित्तीय दबाव और बढ़ जाएगा। 5000 करोड़ रुपये के इस कर्ज में दो हिस्से होंगे, प्रत्येक 2500 करोड़ रुपये का। इनमें से पहला कर्ज 11 साल के लिए लिया जाएगा, जिसका भुगतान ब्याज सहित अक्टूबर 2035 तक किया जाएगा, जबकि दूसरा कर्ज 19 साल के लिए होगा, जिसका भुगतान ब्याज के साथ अक्टूबर 2043 तक किया जाएगा।

इससे पहले, 24 सितंबर को सरकार ने 5000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था, और अब नए कर्ज के बाद, चालू वित्त वर्ष में कुल कर्ज की राशि 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है। इससे राज्य सरकार का कुल कर्ज 3.95 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा, जो राज्य के बजट 4 लाख करोड़ रुपये के लगभग बराबर हो जाएगा। इस बढ़ते कर्ज ने राज्य की वित्तीय सेहत को गंभीर बना दिया है, और विकास कार्यों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

मध्य प्रदेश की वित्तीय स्थिति को लेकर हाल ही में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी अपनी चिंता जताई है। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार को अत्यधिक कर्ज लेने के बजाय अपने राजस्व को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, घाटे में चल रहे उपक्रमों की समीक्षा कर उनमें सुधार की रणनीति बनाई जानी चाहिए ताकि राज्य की वित्तीय स्थिति को स्थिर किया जा सके।

आंकड़ों के मुताबिक, 31 मार्च 2024 तक राज्य पर 3 लाख 75 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था, और एक वर्ष के भीतर सरकार ने 44 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लिया। यह स्थिति राज्य को वित्तीय संकट की ओर धकेल रही है, और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वित्तीय अनुशासन नहीं लाया गया, तो इसका असर प्रदेश के विकास और आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा।

CAG की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बजट तैयार करने की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि बजट अनुमानों और वास्तविक खर्चों के बीच अंतर को कम किया जा सके। इसके साथ ही, राज्य सरकार को घाटे में चल रहे उपक्रमों के कामकाज की समीक्षा कर उनमें सुधार के उपाय करने चाहिए ताकि आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सके। राज्य के बढ़ते राजकोषीय घाटे पर नजर रखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार अपने खर्चों और कर्ज प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करे ताकि वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।



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