बैन झेल रही रेट होल माइनिंग तकनीक ने बचाई उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे 41 मज़दूरों की जान


रैट-होल खनन में श्रमिकों के प्रवेश और कोयला निकालने के लिए आमतौर पर तीन से चार फीट ऊंची संकीर्ण सुरंगों की खुदाई शामिल होती है


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बड़ी बात Published On :

उत्तरकाशी की सिलक्यारा माइन में 17 दिनों से फंसे 41 मजदूरों को निकाल लिया गया। इस काम में तमाम बड़ी तकनीकों और मशीनों का सहारा लिया गया लेकिन आखिरी वक्त पर ये सब  नाकाम साबित हो गईं। ऐसे में सहारा मिला एक पुरानी तकनीक का जिसे रेट होल खनन कहते हैं यानी चूहे की तरह खुदाई करना। बताया जाता है कि इस तरह जब कुछ मजदूरों ने सुरंग का रास्ता खोलना शुरू किया तो इस खुदाई में बड़ी मशीनों से भी कम समय लगा। रेट होल खनिकों की प्रतिभा और अनुभव ने इन 41 जिंदगियों को बचाने में सबसे अहम भूमिका अदा की।  इस तरीके से खनन पर बीते 9 साल से प्रतिबंध लगा हुआ है।

इस काम की तारीफ सभी जगह हुई। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने कहा कि रैट-होल खनिकों ने 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके अभूतपूर्व काम किया। उन्होंने यहां एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “रैट-होल खनन अवैध हो सकता है, लेकिन इन खनिकों की प्रतिभा और अनुभव का उपयोग किया जा रहा है, यह उनकी क्षमता है।”

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में मेघालय में रैट-होल खनन तकनीक का उपयोग करके कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। रैट-होल खनन में श्रमिकों के प्रवेश और कोयला निकालने के लिए आमतौर पर तीन से चार फीट ऊंची संकीर्ण सुरंगों की खुदाई शामिल होती है। हॉरिज़ोंटल यानी क्षैतिज सुरंगों को अक्सर “चूहे के बिल” कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक सुरंग लगभग एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त होती हैं।

उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग में ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और नवयुग इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा  मुख्य संरचना के ढहे हुए हिस्से में क्षैतिज रूप से रैट-होल खनन तकनीक से खोदने के लिए दिल्ली, झांसी और देश के कई दूसरे हिस्सों से  12 विशेषज्ञों को बुलाया गया है।   एनएचएआई के सदस्य विशाल चौहान ने बताया कि एनजीटी ने उस तकनीक से कोयला खनन, सुरंग में जाकर कोयला निकालने पर रोक लगा दी है, लेकिन इस तकनीक का उपयोग अभी भी निर्माण स्थलों पर किया जाता है।

 


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