इंदौर। आंबेडकर विश्वविद्यालय में नए कुलपति की नियुक्ति भी कर दी गई है। राजभवन से जारी आदेश में होलकर साइंस कॉलेज के प्रोफेसर दिनेश कुमार शर्मा को नया कुलपति बनाया गया है। यह इत्तेफ़ाक ही है कि अपनी नौकरी के दौरान शर्मा ने सबसे बड़ी लड़ाई आंबेडकर विश्वविद्यालय में कुलसचिव रहते तब कुलपति रहीं डॉ. आशा शुक्ला के खिलाफ ही लड़ी। यह लड़ाई इतनी तनातनी भरी थी कि उनका अचानक कुलसचिव के पद से तबादला तक कर दिया गया और बाद में जब वे हाईकोर्ट से स्थगन लेकर आए तो नए कुलसचिव अजय वर्मा अपने कक्ष में ताला लगाकर चले गए। इसके बाद प्रो. शर्मा ने कुछ देर तक सांकेतिक धरना भी दिया था।
देश के पहले सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के तौर पर शुरु किये गए महू के डॉ. बीआर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विवि की कुलपति डॉ. आशा शुक्ला को शासन ने हटा दिया है। शुक्रवार शाम शासन ने एक अधिसूचना जारी कर विश्वविद्यालय में धारा 44 लागू कर दी गई।
डॉ. आशा शुक्ला का नाम उनकी नियुक्ति के बाद से ही विवादों में बना रहा है। वे मूलरुप से बरकतउल्ला विश्वविद्याल से हैं और वहां के महिला अध्ययन केंद्र की उनके पूर्णकालिक प्रोफेसर होने पर भी विवाद हैं। इस बारे में उन पर राजभवन को गलत जानकारी देने का आरोप है। इस मामले की आपराधिक शिकायत भोपाल के बागसेवनिया थाने में भी दर्ज की गई थी।
इसके साथ ही विश्वविद्यालय के कुलसचिवों के साथ भी उनकी अनबन बनी रही और इसी के चलते कुलसचिव विश्वविद्यालय छोड़कर जाते रहे। इनमें पहले थे डॉ. एचएस त्रिपाठी जो इसके बाद भोज विश्वविद्यालय और फिर बरकतउल्ला विश्वविद्याल के कुलसचिव बनाए गए।
आंबेडकर विश्वविद्यालय में राजभवन द्वारा नए कुलपति की नियुक्ति भी कर दी गई है। इस बार यह दायित्व होलकर साइंस कॉलेज में पढ़ा रहे प्रो. दिनेश कुमार वर्मा को मिला है। हालांकि वर्मा आंबेडकर विश्वविद्याल के पिछले कुलसचिव रहे हैं और डॉ. आशा शुक्ला के साथ उनकी पटरी नहीं बैठी और काफी विवाद के बाद उन्हें यहां से जाना पड़ा था।
प्रो. दिनेश शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय में हो रही आर्थिक अनियमितताओं के बारे में एक रिपोर्ट बनाकर शासन को भेजी थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे विश्वविद्यालय में बिना कार्यपरिषद की मंजूरी लिये ही परामर्शदाताओं की नियुक्तियां की गईं। यह नियुक्तियां तीन श्रेणियों में की गईं थीं। जिन्हें 32 से 75 हजार रुपये तक दिये जा रहे थे। इस विषय को देशगांव ने 9 फरवरी 2021 को प्रकाशित अपनी एक खबर में विस्तार से लिखा था। इस ख़बर को यहां पढ़ा जा सकता है।
नियम विरुद्ध की जा रहीं ग़ैर-ज़रूरी नियुक्तियों के चलते वित्तीय संकट में फंसा आंबेडकर विश्वविद्यालय
डॉ. बीआर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला को राज्य सरकार ने इमरजेंसी धारा का उपयोग कर हटा दिया है। इस संबंध में उच्च शिक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार शाम नोटिफिकेशन जारी कर दिया है।
इससे पहले प्रो. आशा शुक्ला ने राजभवन इस्तीफा भेजा था। डॉ. शुक्ला इंतजार कर रहीं थी कि इस्तीफ़ा मंजूर हो और फिर वे कुलपति का पद औपचारिक रुप से छोड़ें लेकिन शासन ने धारा 44 लगाकर उन्हें हटा दिया। प्रो. शुक्ला पर आर्थिक अनियिमतताओं के आरोप सिद्ध हुए हैं। इसके बाद डॉ. बीआर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय अधिनियम 2015 की धारा 44 लागू की गई है।
शुक्रवार को उच्च शिक्षा विभाग के एसीएस शैलेंद्र सिंह द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार महू विवि के कार्यकलापों में कुप्रबंधन के पाया गया है। इस अधिसूचना के मुताबिक विश्वविद्यालय में जो स्थिति बनी है उनमें विश्वविद्यालय का संचालन इसके हितों को संरक्षित करते हुए नहीं किया जा सकता है।
डॉ. आशा शुक्ला के खिलाफ जिन शिकायतों पर कार्रवाई की गई है वह पिछले करीब दो साल से लगातार की जा रहीं थीं। इनमें प्रमुख शिकायतकर्ता गबूर सिंह चौहान थे। जिन्होंने शुक्ला पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे। इसे लेकर चौहान द्वारा महू के डोंगरगांव थाने में एक शिकायत भी गी गई थी। हालांकि कई बार शिकायत के बाद भी इस मामले में कुछ खास नहीं हुआ। इसके बाद यह मामला उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव तक पहुंचा।
उच्च शिक्षा मंत्री की डॉ. आशा शुक्ला से पहले ही अनबन चल रही थी और वे दीक्षांत समारोह के साथ अन्य कार्यक्रमों में भी शायद ही कभी शामिल हुए थे। इसके बाद यादव ने इस मामले में इंदौर कमिश्नर से जांच करने के लिए कहा। मामले की जांच पहले उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ. सुरेश सिलावट को दी गई। सिलावट, मंत्री तुलसी सिलावट के भाई हैं और कहा गया कि वे खुद अपने करीबियों को कुलपति बनवाना चाहते हैं इसलिए जांच कर रहे हैं हालांकि इन बातों के बाद सिलावट ने खुद को इस जांच कमेटी से अलग कर लिया और फिर कमिश्नर ने जांच आईएएस अधिकारी रजनी सिंह को दे दी।
बताया जाता है कि रजनी सिंह की जांच में डॉ. आशा शुक्ला पर लगाए गए आरोप सही पाए गए। जांच रिपोर्ट में आर्थिक अनियमितताओं की पुष्टि हुई है। इसमें विवि में कार्यपरिषद की मंजूरी के बिना 11 अध्ययन शालाएं खोलने में अनियमितता पाई गई।
इसके अलावा पंचायत राज प्रशिक्षण के दौरान नियमों से परे जाकर राशि खर्च हुई। इसमें जांच अधिकारी को सभी दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं कराए गए। बताया गया कि ऐसे लोगों को प्रशिक्षण कार्यक्रम में बुलाया जो योग्य ही नहीं थे। अतिथि विद्वानों और कंसल्टेंट की नियुक्ति में भी गड़बड़ी पाई गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई।