इंदौर। रामनवमी पर खरगोन में हुई हिंसा और बाद में कार्रवाई के नाम पर संख्यक समुदाय के लोगों के घर गिराए जाने के मामले में मुस्लिम संगठन जमीअत उलमा ए हिंद द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से अपील की गई है कि वे राज्य सरकारों को निर्देश दें कि बिना अदालती आदेश के किसी भी दुकान या मकानों को तोड़ने की कार्यवाही न करें।
इससे पहले जमीअत उलमा ए हिंद के द्वारा गृह मंत्री अमित शाह को भी पत्र लिखकर खरगोन के मामले में उच्च स्तरीय जांच करवाने की अपील की गई है।
जमीयत के मुताबिक, भाजपा शासित राज्यों में अपराध की रोकथाम के नाम पर अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों को परेशान किया गया है और इसका उद्देश्य उन्हें आर्थिक रूप से तबाह करना है।
जमीयत की ओर से इस याचिका में कमेटी के सचिव गुलजार अहमद आज़मी वादी बने हैं वहीं मध्य प्रदेश गुजरात और उत्तर प्रदेश की सरकारों को इस में पक्षकार बनाया गया है। पिछले कुछ समय में इन राज्यों में लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर मकानों को तोड़ने की कार्रवाई बड़े पैमाने पर की गई हैं।
याचिका कर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट जाने से पहले कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से भी सलाह ली है जबकि कबीर दीक्षित नाम के वकील कोर्ट में औपचारिक रूप से याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे हैं।
मध्य-प्रदेश के खरगोन और बड़वानी जिले के सेंधवा में रामनवमी के बाद हुए दंगों के बाद केवल आरोपों के आधार पर न्याय के नाम पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के घरों और दुकानों को तोड़ा गया है। जबकि तोड़े गए कुछ मकान शासकीय योजनाओं के तहत बनाए गए थे और दंगों के आरोप में पुलिस ने ऐसे कई लोगों को आरोपी बनाया गया जो घटना के समय या तो अस्पताल में भर्ती थे या जेल में बंद थे।
यही नहीं सरकारें बिना अदालती आदेशों के घर गिराए जाने की इस नई न्याय प्रक्रिया से अपनी लोकप्रियता बढ़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अब मामा नहीं बुलडोजर मामा के नाम से पुकारा जा रहा है। उनकी सरकार के मंत्री और विधायक भी लोगों में इसका पर्याप्त प्रचार कर रहे हैं।
वहीं पार्टी और सरकार के समर्थक ट्विटर पर शिवराज कार राजदंड नाम से हैशटैग भी चला रहे हैं। इस तरह अदालतों से परे इस त्वरित न्याय की प्रक्रिया को लगातार उचित बताने की कोशिश सरकार की ओर से हो रही है।