चौतरफा आलोचना के बाद केरल की पिनारई विजयन सरकार ने ‘पुलिस एक्ट’ को वापस लिया


मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने कहा कि, इस कानून की घोषणा के बाद से अलग-अलग क्षेत्र से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने लगी थी और यहाँ तक कि जो  एलडीएफ के समर्थक  और मानवाधिकार की रक्षा करने वालों ने इस पर चिंता व्यक्त की। उसके बाद इस कानून को लागू नहीं किया जा सकता।


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बड़ी बात Updated On :

वाम शासित केरल में अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने वाला अध्यादेश राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। मुख्यमंत्री पिनारई विजयन द्वारा तैयार केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को विपक्षी पार्टियों के कड़े विरोध के बीच केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने  मंजूरी दे दी थी । वहीं मुख्यमंत्री पिनारई ने इस अध्यादेश का बचाव करते हुए कहा था  कि,”किसी को भी अपनी मुट्ठी को उठाने की आजादी है लेकिन ये वहीं खत्म हो जाती है जैसे ही दूसरे की नाक शुरू हो जाती है।” इसके बाद पिनारई सरकार चौतरफा आलोचना में घिर गये थे और बीजेपी और आरएसपी ने इस कानून के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दिया था। वहीं सीपीआईएमएल और  कांग्रेस  ने भी केरल सरकार की इस जनविरोधी कानून का विरोध किया था। इन विरोध और आलोचनाओं के बाद पिनारई विजयन सरकार ने इस कानून पर रोक लगा दिया है।

मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने कहा कि, इस कानून की घोषणा के बाद से अलग-अलग क्षेत्र से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने लगी थी और यहाँ तक कि जो  एलडीएफ के समर्थक  और मानवाधिकार की रक्षा करने वालों ने इस पर चिंता व्यक्त की। उसके बाद इस कानून को लागू नहीं किया जा सकता।

 

दरअसल, राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 21 अक्टूबर को केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश में धारा 118-ए जोड़कर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास 21 नवंबर को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था। इसने अब सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की दोषपूर्ण धारा 66 ए की जगह ली है, जिसके अंतर्गत ऑनलाइन की गई अपमानजनक ‘टिप्पणी’ एक दंडनीय अपराध मानी जाती है।

इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई पोस्ट डालता है तो उसे 5 साल तक कैद या 10000 रुपये तक के जुर्माने या फिर दोनों सजा हो सकती है।

इस कानून के तहत पुलिस को  बिना वारंट बिना कारण बताये किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार होगा।  इस अध्यादेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। यूडीएफ ने इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन मार्च किया।

केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने इस अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में  याचिका दायर की है। वहीं आरएसपी के नेता और पूर्व श्रम मंत्री शिबू बेबी ने भी इस अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी इस  कानून पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा है कि वो केरल सरकार के इस नियम से आश्चर्य में हैं। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ”केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर तथाकथित भड़काऊ आपत्तिजनक पोस्ट करने के कारण पांच साल की सजा के नियम से आश्चर्य में हूं।”

 

सीपीएम की ओर से कहा गया कि सभी विकल्पों और सलाहों पर विचार किया जायेगा, पर इस कानून को वापस  लेने पर कुछ नहीं कहा गया है।

सीपीआई(एमएल) ने इस कानून का विरोध किया था। सीपीआई-एमएल की पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन ने  इसे  केरल सरकार के इस कदम को शर्मनाक करार दिया था।

 

 


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