नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में बच्चों के डेटा को व्यवस्थित करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह डेटा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित संकेतकों के आधार पर व्यवस्थित रूप से अपडेट, निगरानी और सुधारात्मक उपायों के साथ तैयार किया जाना चाहिए।
जस्टिस नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी की चेयरपर्सन के रूप में 9वीं वार्षिक बैठक में अपने विचार रखे। इस बैठक का उद्देश्य दिव्यांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनकी समस्याओं की गंभीरता को समझना था। इसमें उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे विशेषकर वे जो किसी न किसी रूप में दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं, समाज में किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करें।
प्रमुख बिंदु:
- डाटा के अभाव पर जताई चिंता: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि देश में दिव्यांग बच्चों, विशेषकर यौन शोषण के पीड़ित और कानून से उलझने वाले बच्चों के संबंध में विश्वसनीय डेटा की कमी एक बड़ी चुनौती है। इस कमी के कारण प्रभावी नीतियों, योजनाओं और निगरानी कार्यों को अंजाम देना मुश्किल हो जाता है।
- विशेष सहायता और हेल्पलाइन की जरूरत: जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि समाज की जिम्मेदारी है कि वह दिव्यांग बच्चों के सपोर्ट सिस्टम के रूप में कार्य करे। उन्होंने एक समर्पित 24×7 हेल्पलाइन की मांग की जो विशेष रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए कार्यरत कर्मचारियों की ट्रेनिंग और संवेदनशीलता बढ़ाने में सक्षम हो।
- समावेशी वातावरण की मांग: उन्होंने यह भी कहा कि हमें दिव्यांग बच्चों के लिए एक समावेशी और संवेदनशील वातावरण तैयार करना चाहिए। हमें अपने पारंपरिक विचारों से आगे बढ़कर दिव्यांगता को केवल एक असफलता के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि उनके विकास और सशक्तिकरण के अवसरों को बढ़ावा देना चाहिए।
- दिव्यांग बच्चों के अधिकार: जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांग बच्चों को भी अन्य बच्चों की तरह अधिकार है कि वे एक परिवारिक वातावरण में विकास करें, मीडिया का उपभोग करें और सुरक्षित जीवन जिएं। उन्होंने कहा कि सभी बच्चों की तरह दिव्यांग बच्चों को भी अपनी गलतियों से सीखने और बढ़ने का अधिकार है।
जस्टिस नागरत्ना और चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की ये टिप्पणियां केवल एक सुझाव नहीं, बल्कि दिव्यांग बच्चों के अधिकारों की दिशा में एक ठोस और सार्थक कदम उठाने की अपील है। इन विचारों के जरिए यह स्पष्ट हो जाता है कि समाज और प्रशासन को दिव्यांग बच्चों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील और जागरूक होना होगा। समावेशी डेटा एकत्रित कर नीतियों में सुधार और बच्चों के कल्याण के लिए एक ठोस आधार तैयार किया जा सकता है। अगर हम इन बच्चों के सशक्तिकरण की दिशा में ठोस प्रयास करेंगे, तो वे न सिर्फ अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे, बल्कि समाज में एक सक्रिय और समान नागरिक के रूप में अपनी भूमिका भी निभा पाएंगे।
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