जबलपुर में हिंदू-मुस्लिम विवाह पर बवाल: विधायक टी. राजा सिंह की चेतावनी, कहा- ‘लड़की फ्रिज में कटी मिलेगी


जबलपुर में एक हिंदू युवती और मुस्लिम युवक की शादी को लेकर विवाद बढ़ गया है। तेलंगाना विधायक टी. राजा सिंह ने इसे ‘लव जिहाद’ बताते हुए मुख्यमंत्री से शादी रोकने की अपील की है। हिंदू सेवा परिषद और अन्य संगठनों ने भी विरोध दर्ज कराया है।


DeshGaon
बड़ी बात Published On :

जबलपुर में एक हिंदू मुस्लिम विवाह को लेकर विवाद गर्मा रहा है। दरअसल हिंदू युवती और मुस्लिम युवक की प्रस्तावित शादी को लेकर लोग विरोध कर रहे हैं।

इस मामले में स्थानीय नेताओंं का विरोध तो लगातार जारी ही था अब इसमें दूसरेेेेे प्रदेशों के भी नेता कूद पड़े हैं। कट्टर हिंदुत्व के हिमायती बनकर अपनी विचारधारा के लोगों में प्रसिद्धि पाने वाले तेलंगाना के बीजेपी विधायक टी राजा सिंह ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से हस्तक्षेप करने की अपील की है।

 

टी राजा सिंह ने इस शादी को “लव जिहाद” का हिस्सा बताते हुए इसे रोकने की मांग की। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर शादी नहीं रोकी गई, तो लड़की की जान को खतरा हो सकता है। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई और मामला तेजी से फैलने लगा।

हिंदू संगठन क्यों नहीं चाहते ये हिंदू-मुस्लिम विवाह!

वहीं, जबलपुर में हिंदू सेवा परिषद के प्रदेश प्रमुख अतुल जेसवानी ने भी इस शादी का विरोध करते हुए जिलाधिकारी पुष्पेंद्र अहाके को ज्ञापन सौंपा है। जेसवानी ने युवती अंकिता राठौर और युवक हसनैन अंसारी के विवाह को “लव जिहाद” करार देते हुए इस पर आपत्ति जताई और विवाह आवेदन को रद्द करने की मांग की। उनका कहना है कि यह विवाह हिंदू समाज के खिलाफ है और इसे किसी भी स्थिति में रोका जाना चाहिए। जेसवानी ने मुख्यमंत्री यादव से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है।

 

पुष्पेंद्र अहाके, जो कि जबलपुर के जिलाधिकारी हैं, ने बताया कि उन्हें हिंदू सेवा परिषद से हसनैन अंसारी और अंकिता राठौर के खिलाफ एक ज्ञापन मिला है, जिसमें विवाह के लिए दी गई विशेष विवाह अधिनियम संबंधी आवेदन को रद्द करने की मांग की गई है। उन्होंने कहा कि इस आवेदन की जांच की जाएगी और उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।

इंदौर में गमशुदगी दर्ज

मामले में युवती के परिवार ने इंदौर के राऊ थाने में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई है, जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। पुलिस जबलपुर और सिहोरा में युवक के घर पहुंची, लेकिन वहां कोई नहीं मिला। इंदौर पुलिस के साथ जबलपुर की पुलिस ने सिहोरा में युवक के घर की तलाशी ली, परंतु दोनों का पता नहीं चल पाया।

 

इधर, भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) ने इस मामले को लेकर जबलपुर बंद का आह्वान किया है। भाजयुमो के जिला मंत्री पलाश दुबे ने कहा कि यदि 24 घंटे के भीतर लड़की और लड़के का पता नहीं चलता है, तो न केवल सिहोरा बल्कि पूरा जबलपुर बंद किया जाएगा।

 

इस बीच, युवक और युवती ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की है। उन्होंने कहा कि उन्हें जान का खतरा है और वे अपनी मर्जी से शादी करना चाहते हैं। हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए हैं कि दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई न की जाए। वहीं कई नेता इस मामले में कोर्ट जाने की भी बात कह रहे हैं।

 

 

कोर्ट के भी विरोधाभासी फैसले!

देश में हालिया हिंदू मस्लिम विवाह को लेकर कोर्ट के फैसले भी महत्वपूर्ण हैं, जबलपुर हाईकोर्ट के एक इसी साल मई में लिए गए निर्णय को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जहां कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था।

2024 में, जबलपुर हाईकोर्ट ने शादी कर चुके अंतरधार्मिक प्रेमी युगल के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत पंजीकरण के बावजूद, मुस्लिम पुरुष और हिंदू महिला का विवाह तब तक वैध नहीं माना जा सकता जब तक कि महिला इस्लाम धर्म में धर्मांतरित न हो। इस फैसले में न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला दिया, जिसमें ऐसे विवाह को ‘फासीद’ यानी अनियमित माना गया। इस फैसले ने मध्य प्रदेश में अंतरधार्मिक विवाह के कानूनी संदर्भ को और भी जटिल बना दिया है।

 

इसके विपरीत, 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर फैसला सुनाते हुए उनके विशेष विवाह अधिनियम के तहत बिना धर्मांतरण किए शादी करने के अधिकार को मान्यता दी थी। न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की बेंच ने जोड़े को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया, ताकि वे अपने विवाह को बिना किसी हस्तक्षेप के पूरा कर सकें। इस फैसले में कहा गया था कि एसएमए व्यक्तिगत कानूनों को दरकिनार कर विवाह की अनुमति देता है, और धर्मांतरण की कोई आवश्यकता नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले से भिन्न है, जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ का अधिक प्रभाव था।


Related





Exit mobile version