आदित्य एल-1 व चंद्रयान-3 को लेकर इस साल भारत को मिल सकती है खुशखबरी


आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में ऐसी जगह स्थापित किया जाएगा जहां से सूर्य पर होने वाली घटनाओं पर 24 घंटे अध्ययन किया जा सकेगा।


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aditya l1 satelite

नई दिल्ली। अगले तीन माह में देश को अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर एक और खुशखबरी मिलने वाली है। आदित्य एल-1 को लॉन्च करने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और सब कुछ ठीक रहा तो अगले तीन माह में उसे अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया जाएगा।

उदयपुर सोलर ऑब्जर्वेटरी (USO) के तत्वावधान में उदयपुर में तीन दिवसीय सौर भौतिकी कार्यशाला ‘बहु-स्तरीय सौर परिघटनाएं’ शुरू हुई है।

इसी मौके पर यह जानकारी प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद तथा अंतरिक्ष आयोग के सदस्य, इसरो के पूर्व अध्यक्ष, अंतरिक्ष विभाग के पूर्व सचिव, पीआरएल प्रबंध परिषद के अध्यक्ष पद्मश्री एएस किरण कुमार ने दी।

उन्होंने कहा कि अब तक हम धरती से अलग-अलग स्थानों से 12-12 घंटे ही सूर्य पर होने वाली ग्रहीय गतिविधियों का अध्ययन कर पाते थे। अब आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में ऐसी जगह स्थापित किया जाएगा जहां से सूर्य पर होने वाली घटनाओं पर 24 घंटे अध्ययन किया जा सकेगा।

आदित्य एल-1 की कक्षा पृथ्वी और सूर्य से दूरी की तुलना में पृथ्वी से यदि 1 प्रतिशत रहेगी तो सूर्य से 99 प्रतिशत होगी।

उदयपुर स्थित सौर वेधशाला की अहम भूमिका –

उदयपुर स्थित सौर वेधशाला की भूमिका भी इस मिशन में महत्वपूर्ण रहेगी। सूर्य से आने वाली रेडियो विकिरणों का ऑब्जर्वेशन इसी वेधशाला के माध्यम से किया जाएगा।

पद्मश्री एएस किरण कुमार ने आदित्य एल-वन के फायदों को लेकर बताया कि सूर्य से विकिरणों के साथ पार्टिकल्स भी आते हैं जिन्हें ‘सोलर विण्ड’ कहा जाता है। अलग-अलग तरह की सोलर विण्ड पृथ्वी के वायुमण्डल पर भी अलग-अलग प्रभाव डालती होंगी।

इसका अध्ययन कर फायदे और नुकसान पर शोध किए जा सकेंगे। यदि नुकसानदेह सोलर विण्ड की जानकारी कुछ समय पूर्व हमें हो जाती है तब उसके समाधान के लिए हमारे पास कुछ वक्त होगा और बड़े नुकसान से बचने का प्रयास किया जा सकेगा।

क्या है आदित्य-एल1 मिशन –

आदित्य-एल1 मिशन पूरी तरह से सूरज को केंद्रित करके बनाया गया है। इस मिशन के तहत इसरो आदित्य-एल1 को ऑर्बिट एल-1 में लॉन्च करेगी। ये वही ऑर्बिटल है जो सूरज और पृथ्वी के बीच का पहला लाग्रंगियन पॉइंट है।

लाग्रंगियन पॉइन्ट अंतरिक्ष में एक ऐसी स्थिति होती है, जो पृथ्वी से भेजी गई चीज को वहां रोके रखती है। इस जगह पर गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव और कक्षा की गति संतुलित रहती है। अगर यह मिशन सफल रहा तो इससे सूरज के बारे में हमें बहुत कुछ और पता चल जाएगा।

सूरज के अध्ययन से क्या फायदा होगा –

इस मिशन के जरिए सूरज के बारे में इंसान बहुत ज्यादा जान पाएंगे। दरअसल, पृथ्वी सहित हर ग्रह और सौरमंडल से परे एक्सोप्लैनेट्स होते हैं और यह विकास अपने मूल तारे द्वारा कंट्रोल होता है।

यही वजह है कि सौर मौसम और वातावरण जो सूरज के अंदर और आसपास होने वाली प्रक्रियाओं से निर्धारित होता है, पूरे सोलर सिस्टम को प्रभावित करता है। यहां तक कि सोलर सिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव उपग्रह की कक्षाओं को बदल सकते हैं।

इसे ऐसे समझिए कि इनकी वजह से पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार बाधित हो सकता है। इन्हीं सब तरह की समस्याओं से समय रहते निपटने के लिए सूरज का अध्ययन बहुत जरूरी है।

पृथ्वी पर आने वाले तूफानों के बारे में जानने एवं उन्हें ट्रैक करने तथा उनके प्रभाव की भविष्यवाणी करने के लिये निरंतर सौर अवलोकन की आवश्यकता होती है। इसलिये सूर्य का अध्ययन किया जाना महत्त्वपूर्ण है।

चंद्रयान-3 भी इसी साल होगा लॉन्च –

भारत में निकटवर्ती अंतरिक्ष मिशन के संबंध में पद्मश्री एएस किरण कुमार ने बताया कि चंद्रयान-3 और एक्सपोसेट की तैयारी इसी साल की है।

चंद्रयान-2 में लैंडर में जो तकनीकी समस्याएं आई थीं, उनमें सुधार कर लिया गया है और नया लैंडर तैयार है। इन दो मिशन के बाद जापान के साथ एक लूनर कार्यक्रम प्रस्तावित है जिस पर आरंभिक मंथन चल रहा है।


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