पीएससी परीक्षा-2019 की भर्ती प्रक्रिया को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला


हाई कोर्ट ने अपने इस आदेश में यह भी कहा है कि उक्त उम्मीदवार को यह स्थान पीएससी प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के साथ प्रत्येक स्तर के चयन में देना होगा।


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जबलपुर। हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में मप्र लोक सेवा आयोग की पीएससी परीक्षा-2019 की भर्ती प्रक्रिया मूल अधिनियम के असंशोधित परीक्षा नियम 2015 के तहत करने के निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि अनारक्षित के बराबर या उससे अधिक अंक लाने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को अनारक्षित वर्ग में स्थान मिलना आवश्यक है।

हाई कोर्ट ने अपने इस आदेश में यह भी कहा है कि उक्त उम्मीदवार को यह स्थान पीएससी प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के साथ प्रत्येक स्तर के चयन में देना होगा। ऐसे मेरिटोरियस आरक्षित उम्मीदवार की रिक्त सीट उसी आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार से भरी जाएगी।

हाई कोर्ट ने यह आदेश 55 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद गुरूवार को सुनाया। इस फैसले के परिणामस्वरूप एमपीपीएससी परीक्षा 2019 की प्रारंभिक व मुख्य परीक्षाओं की चयनसूची फिर से बनानी होगी।

उल्लेखनीय है कि पीएससी ने 14 नवंबर, 2019 को 571 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। प्रारंभिक परीक्षा 20 जनवरी, 2020 में हुई और उसके तुरंत बाद 17 फरवरी को परीक्षा नियम में बदलाव कर दिया।

पीएससी ने 21 दिसंबर को संशोधित नियम के अनुसार परिणाम घोषित कर दिए। जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं थीं। इंदौर, जबलपुर समेत कई जिलों के उम्मीदवारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर राज्य के संशोधित नियम की वैधानिकता को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, विभोर खंडेलवार, आदित्य सांघी एवं आशीष अग्रवाल  पैरवी कर रहे थे। वहीं शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आशीष बर्नार्ड व पीएससी की ओर से पराग तिवारी ने पक्ष रखा।

प्रशासनिक न्यायाधीश सुजय पाल व न्यायमूर्ति डीडी बंसल की युगलपीठ ने मप्र लोक सेवा, अजा, जजा एवं ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम 1994 के तहत परीक्षा नियम में 17 फरवरी 2020 को किए गए संशोधन को असंवैधानिक करार दिया।

हाईकोर्ट ने कहा कि यह नियम आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को उनके अधिकारों से वंचित रखता है, इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित करना जरूरी है। संशोधित नियम के तहत अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवार को मिलने वाला उक्त लाभ केवल मुख्य परीक्षा में देने का प्रविधान किया गया था, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच द्वारा इंदिरा साहनी के मामले में दिए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यदि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी के बराबर या अधिक अंक लाता है तो उसे अनारक्षित वर्ग की श्रेणी में स्थान मिलना ही चाहिए। ऐसा नहीं करने से सजातीय मेरिट उम्मीदवारों में भेदभाव पैदा हो सकता है जो संविधान के अनुच्छेद 14 का खुला उल्लंघन होगा।


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