भोपाल। सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादित कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के साथ ही इसके कई परिवर्तनों की भी उम्मीद भी की जा रही है। सबसे बड़ी उम्मीद मध्यप्रदेश के मंडी कर्मचारियों को है। ये कर्मचारी लगातार सरकार और किसानों की बातचीत पर नज़र रखे हुए हैं।
कृषि कानूनों का विरोध करने वाले शासकीय संगठन संयुक्त संघर्ष मोर्चा के पदाधिकारियों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद अब फिर मध्यप्रदेश का प्रचलित मंडी अधिनियम लागू हो जाता है और वे पहले की तरह अपने काम करेंगे।
केंद्र के द्वारा कृषि कानूनों का नया ड्राफ्ट पेश करने के बाद मध्यप्रदेश में 24 जून को ही इसे लागू कर दिया गया था। संयुक्त संघर्ष मोर्चा के पदाधिकारी बताते हैं कि यह तरीका मनमानी पूर्ण था क्योंकि इसके लिए कोई अधिसूचना भी जारी नहीं की गई थी।
इसके बाद से ही मप्र की एपीएमसी यानी कृषि उपज मंडियों के अधिकार बेहद सीमित हो चुके थे। व्यापारी बाहर से किसान की उपज की खरीदी कर सकते थे और ऐसे में कृषि मंडी की कोई आमदनी भी नहीं होती, जिसके चलते मंडी बोर्ड और सरकार को कमाकर देने वाली मंडियां अपने खर्च तक के लिए सरकार पर निर्भर हो गईं। इस समय करीब 60 के आसपास मंडियां अपनी कर्मचारियों को नियमित वेतन भी नहीं दे पा रही हैं। इससे पहले मंडी कर्मचारियों को पहले ही इसकी आशंका थी और वे इसे लेकर लगातार सरकार का विरोध कर रहे थे।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के बाद इन मंडी कर्मचारियों और इन पर निर्भर पूर्व कर्मियों को भी राहत मिली है।
संयुक्त संघर्ष मोर्चा के संयोजक बीबी फौजदार बताते हैं कि अब वे राज्य सरकार के द्वारा इस मामले में नए निर्देश लागू होने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि अगर सरकार प्रचलित मंडी अधिनिमय दोबारा लागू नहीं करती है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना होगी।
फौजदार बताते हैं कि राज्य सरकार का लागू किया गया मॉडल एक्ट उनके (राज्य सरकार) द्वारा 24 दिसंबर को वापिस लिया जा चुका है।
फौजदार के मुताबिक अब अपने आप ही प्रचलित मंडी अधिनियम लागू हो चुका है। इस तरह अब बंद नाके खुल जाने चाहिए। व्यापारी अब मंडी परिसर के अंदर ही व्यापार करने के लिए बाध्य होंगे। ऐसे में मंडी की आय होगी। अगर ऐसा नहीं होगा तो मंडी कर्मचारी इसे बंद करेंगे क्योंकि यह तो कानून के खिलाफ हैं।
इससे पहले मंडी कर्मचारियों के संयुक्त संघर्ष मोर्चे के पदाधिकारी कह चुके थे कि अगर सरकार किसानों की बात नहीं मानती है तो मध्यप्रदेश की मंडियों से भी एक-एक वाहन दिल्ली बॉर्डर पर जाएगा।
ज़ाहिर है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मध्यप्रदेश के मंडी कर्मचारियों को खुशी हो रही है। प्रदेश की छोटी-बड़ी करीब पांच सौ मंडियों में काम कर रहे और कर चुके करीब दस हजार कर्मचारी इस फैसले से खुश हैं। मंडियों के स्थायी कर्मचारियों की संख्या 6500 और पूर्व कर्मचारियों की संख्या करीब 3500 है इसके अलावा करीब 1000 अस्थायी कर्मचारी हैं।