लगातार अनदेखी के बाद भी अब भाजपा की गलतियों को सुधारेगा भारतीय किसान संघ!


रकार ने संघ की मांगों को कोई तवज्जो नहीं दी और न ही संघ के नेताओं को किसी तरह का महत्व दिया गया। यही वजह रही कि किसान आंदोलन की शुरुआत में किसान संघ ने आंदोलन को समर्थन दिया था।


डॉ. संतोष पाटीदार
बड़ी बात Updated On :

खेती किसानी के नए कानूनों पर पहले-पहल केन्द्र सरकार के समक्ष आपत्ति दर्ज करने वाला भारतीय किसान संघ सरकार की आफत बन गए नए कानूनों पर राष्ट्रीय मंथन का महाभियान शुरू करने जा रहा है।

सरकार के “ढाई – कानून”  व किसान आंदोलन की चौसर पर “ढाई – घर” चलने की तमाम असफल कोशिशों के बाद थकी – हारी हुकूमत को किसान संघ ने सशर्त साथ देने का फैसला किया है।

इन कानूनों में पुख्ता रद्दोबदल के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून व खाद्यान्न स्टॉक सीमा की छुट वापस लेने जैसी मांग के साथ किसान संघ गांव-गांव, खेत-खलिहान तक पहुंच रहा है ताकि किसानों में नए कानून को लेकर उपजे भ्रम को दूर किया जा सके। इसके साथ ही कानून में बदलाव व समर्थन मूल्य कानून बनाने का दबाव सरकार पर बने।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून की मांग व कानूनों में सुधार की अपनी पांच सूत्रीय मांग के साथ देशभर में अलख जगाएगा।

इस बारे में किसान संघ के मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्य के संगठन मंत्री महेश चौधरी ने बताया कि गणतंत्र दिवस पर किसान संघ के वार्षिक कार्यक्रम मातृभूमि पूजन के साथ हम करीब एक लाख गाँवो में अपने 30 लाख किसानों तक पहुँचने का महाअभियान शुरू कर रहे हैं।

किसान संघ अकेले मध्यप्रदेश के करीब छह हजार गाँवों में किसानों से सम्पर्क करने जा रहा है। 26 जनवरी को मातृभूमि पूजन के साथ हमारे इस अभियान की शुरूआत होगी। एक पखवाड़े में यह सम्पर्क अभियान पूरा होगा।

बैंगलुरू में हुई भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में तीन दिन तक देशभर के 30 प्रांतों से आए 131 प्रतिनिधियों ने किसान आंदोलन को लेकर गहन मंथन किया।

दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों व संघ की मांगें कुछ हद तक समान है। एक ही फ़र्क है, संघ कानून वापसी के बजाए सुधार का पक्षधर है।

किसान आंदोलन की समर्थन मूल्य कानून बनाने व खाधान्न स्टॉक की सीमा खत्म नहीं करने की मांग और बिजली बिल का विरोध जैसे मसले भी संघ की सूची में हैं।

महेश चौधरी कहते है खेती के हित में इस अवसर का अधिकाधिक फायदा लेने की कोशिश सुधारों के माध्यम से भी हो तो संघ को गुरेज़ नहीं हैं।

यह मौका भी हाथ से निकल गया तो हो सकता है सरकार खेती को उसके हाल पर छोड़ दे। इससे देश के किसान हताश हो जाएंगे।

ऐसे में स्वाभाविक है किसान संघ की बेंगलुरू की चिंतन बैठक में दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन को लेकर चिंता व विचार मंथन होना ही था।

बैठक का मुख्य मुद्दा भी यही था क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार से उपेक्षित भारतीय किसान संघ ने 5 जून 2020 को अध्यादेश के आते ही देश की बीस हजार ग्राम समितियों के माध्यम से 450 जिलों में धरना ज्ञापन के माध्यम से इस बिल में सुधार को लेकर अपने सुझाव व प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय एवं कृषि मंत्री को भेजे थे। तब से ही भारतीय किसान संघ सरकार पर कानूनी सुधार के लिए दबाव बनाता आ रहा है ।

यह बात अलग है सरकार ने संघ की मांगों को कोई तवज्जो नहीं दी और न ही संघ के नेताओं को किसी तरह का महत्व दिया गया। यही वजह रही कि किसान आंदोलन की शुरुआत में किसान संघ ने आंदोलन को समर्थन दिया था।

इससे केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई थी औऱ फिर सरकार द्वारा संघ को किसी तरह आंदोलन से दूर कराया गया।

कानूनी सुधार पर महेश चौधरी बताते हैं कि भारतीय किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के कानूनी अधिकार के साथ-साथ अन्य संशोधन करने के लिए कानूनी दायरे में आंदोलनरत रहा है।

इस बारे मे संघ की बैठक में लिये गए फैसलों की जानकारी देते हुए महेश चौधरी बताते हैं कि हमारी मांगें बहुत स्पष्ट हैं और संघ ने बैठक में पारित प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज दिये है। देखना है कि सरकार क्या करती है। संघ ने नए कानून में संसोधन की मांग की है। इनमें

  1. पहली मांग,  किसानों से व्यापारी वर्ग धोखाधड़ी नहीं कर सके और इसके लिये निजी व्यापारियों का केंद्र एवं राज्य स्तर पर बैंक सुरक्षा या बैंक गारंटी के साथ पंजीयन हो और इसकी जानकारी वेब पोर्टल पर दर्ज हो।
  2. दूसरी मांग, जिला स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह कृषि न्यायालय की स्थापना हो।
  3. तीसरी मांग, जीवन वस्तु अधिनियम से निर्यातक तथा प्रसंस्करण करने वाले बड़े उद्योगों को दी गई स्टाक सीमा की छूट वापिस लेने का।
  4. चौथी मांग, कांट्रैक्ट फार्मिंग संविदा खेती करने वाली कंपनी एवं उद्योग को किसान का दर्जा नहीं दिए जाने की है।
  5. पांचवी मांग है समर्थन मूल्य की अनिवार्यता के लिये सरकार कानून बनाए।

महेश चौधरी स्पष्ट करते हैं कि भारतीय किसान संघ पहले किसान आंदोलन के समर्थन में था बाद में आंदोलन का राजनीतिकरण होने से संंघ अलग हो गया। उनके अनुसार किसान आंदोलन के राह भटकने से भारतीय किसान संघ ने भी उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

संघ ने मांग की थी कि किसान आंदोलन व कानून के समाधान के लिए निष्पक्ष समिति गठित हो। जिसमें देश के सभी पंजीकृत किसान संगठनों को लिया जाए और उच्चतम न्यायालय के निर्णय को सभी किसान संगठन स्वीकार करें।

चौधरी ने कहा कि बेंगलुरु की बैठक में किसान आंदोलन के साथ कृषि कानूनों को लेकर किसानों में फैले भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से किसानों के बीच हम जायेंगे।

संघ के वार्षिक कार्यक्रम के तहत 26 जनवरी को अपने 30 लाख सदस्यों के साथ देश के एक लाख गांवों में कानून में सुधार की मांगों को लेकर जन जागरण अभियान शुरू होगा।

इसके साथ ही तीन वर्षीय सदस्यता वर्ष के तहत देशभर में 600 से अधिक जिलों में 75000 से अधिक गांव में 75 लाख सदस्य बनाने का संकल्प बेंगलुरु की प्रतिनिधि सभा में लिया गया।

भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बीते दिनों बेंगलुरु में संपन्न हुई थी। बैठक में देशभर के 30 प्रांतों से 131 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।

कुल जमा किसान आंदोलन का जवाब देने भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार के बचाव में गांव- गांव , चौपाल- चौपाल के अभियान की उद्घोषणा कर दो दिन में ही घर बैठ गई।

भाजपा में चौपाल की जगह सोशल मीडिया व चैनल में आंदोलनरत हो गई है, नतीजे में मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारतीय किसान संघ को अपनी केंद्र सरकार व भाजपा के किये धरे का वजन ढोना पड़ रहा है।

यह अलग बात है भाजपा व इसकी सरकारों और नेताओं ने किसान संघ की उपेक्षा व इसे कमजोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।


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