सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर राजनीति और मोदी सरकार का छिपा हुआ संदेश!


इंडिया गेट और राष्ट्रीय समर स्मारक के बीच खाली पड़ी छतरी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है।


sanjeev srivastava संजीव श्रीवास्तव
बड़ी बात Published On :
subhas chandra bose hologram statue

सरदार पटेल (Vallabhbhai Patel), वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) और सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) ये ऐसे नाम हैं जो पिछले कुछ अर्से से अक्सर चर्चा में हैं।

फिलहाल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर राजनीति जारी है। इंडिया गेट और राष्ट्रीय समर स्मारक के बीच खाली पड़ी छतरी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है।

विवाद की 3 प्रमुख वजहें हैं:

पहला: चूंकि, भारतीय जनता पार्टी (BJP) या आरएसएस (RSS) के पास खुद का कोई बड़ा नेता नहीं है इसलिए, इन नेताओं के बहाने वह खुद को राष्ट्रभक्त साबित करने की कोशिश कर रही है।

दूसरा: पटेल, सावरकर या नेताजी के बहाने मोदी सरकार पिछली सरकारों खासतौर पर, नेहरू-गांधी परिवार को इन नेताओं के साथ अन्याय करने वाला (विलेन) बताकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है।

तीसरा: वर्तमान सरकार इतिहास को बदलने की फिराक में है ताकि, अपनी पसंद के नेताओं को हीरो बनाकर पेश किया जा सके।

इसके अलावा, वर्तमान सरकार पर हिंदुत्व का एजेंडा थोपने और लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर बांटने की साजिश जैसे आरोप भी लगाए जा रहे हैं। हालांकि, इन सब की परवाह किए बिना सरकार ने 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर उनकी होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण कर दिया। इंडिया गेट और राष्ट्रीय समर स्मारक के बीच खाली पड़ी इस छतरी में जल्द ही नेताजी की कांस्य प्रतिमा लगाई जागी जिसका निर्माण जारी है।

पहले भी हुए हैं ऐसे काम और विवाद

इससे दो दिन पहले 21 जनवरी को इंडिया गेट के नीचे जल रही अमर जवान ज्योति (Amar Jawan Jyoti) पर जल रही लौ का राष्ट्रीय समर स्मारक (National War Memorial) की लौ में विलय कर दिया गया। इसे लेकर भी विवाद पैदा हो गया और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा कि कांग्रेस (Congress) की सरकार के आने पर इसे वापस इंडिया गेट (India Gate) के नीचे ही प्रज्वलित किया जाएगा।

स्वतंत्रता सेनानियों को लेकर पैदा होने वाला यह कोई पहला विवाद नहीं है। इससे पहले भी सरदार पटेल (Vallabhbhai Patel ) और वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को लेकर वर्तमान सरकार और भाजपा (BJP) पर ऐसे ही आरोप लगे हैं।

क्यों पिछली सरकारों पर लगे ये आरोप?

इन आरोपों से अलग भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मानना है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले बहुत से महापुरुषों के योगदान के साथ पिछली सरकारों ने न्याय नहीं किया। भाजपा का आरोप है कि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं को तो जीवित रहते ही भारत रत्न (Bharat Ratna) से सम्मानित कर दिया गया जबकि, भारतीय संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) को 1990 में वीपी सिंह सरकार ने भारत रत्न दिया।

भाजपा का मानना है कि पिछली सरकारों ने आजादी के बाद देश को एकीकृत करने वाले सबसे बड़े नायक सरदार पटेल (Vallabhbhai Patel) को 1991 में भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला तब किया जब उन पर बेहद दबाव पड़ने लगा। इसी तरह नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1992 में भारत रत्न देने का फैसला तो किया गया लेकिन, नेताजी के परिवार ने ही इसका विरोध कर दिया और मामला कोर्ट में जाने की वजह से सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

क्यों नहीं लगनी चाहिए ये प्रतिमाएं?

इतिहास को देखने और लिखने के तरीके पर सरकारों का दखल या असर कोई नई बात नहीं है। वर्तमान दौर में सत्तासीन सरकार भी ऐसा ही प्रयास कर रही है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

हालांकि, वर्तमान सरकार अपनी पार्टी से जुड़े किसी बड़े नेता (श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी) के नाम या प्रतिमा स्थापना की जगह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेताओं की याद में अगर सरदार पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) या इंडिया गेट के सामने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित कर रही है तो, इससे किसी पार्टी की भावना क्यों आहत होनी चाहिए, यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है।

भारतीय संविधान में है इसका इलाज

कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहता। भारत पर लंबे समय तक विदेशी आक्रांताओं और औपनिवेशिक शक्तियों ने राज किया और हमारे इतिहास को बदलने की कोशिशें की। आजादी के बाद लंबे समय तक एक ही पार्टी सत्ता में रही और यह सत्ता लोकतांत्रिक तरीके से चुनावों में जीत के बाद हासिल की गई। लोकतंत्र में सरकार के बारे में अंतिम फैसला लेने का काम जनता करती है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी सरकार के फैसले से सभी सहमत हों यह जरूरी नहीं है। यही वजह है कि संविधान ने विचार और अभिव्यक्ति की आजादी को मूल अधिकार के तौर पर मान्यता दी है। सरकार से असहमत होने और अपने विचार रखने का अधिकार हर किसी को है। जय प्रकाश नारायण से लेकर अन्ना हजारे तक ने इसी अधिकार का प्रयोग कर स्थापित सत्ताओं के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद की और बिना किसी हिंसा के सत्ता की चूलें हिला दी।

किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता पाना या सत्ता में बने रहना ही प्रमुख उद्देश्य होता है। सभी राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए मुद्दों की ताक में होते हैं ताकि, जनभावनाओं को अपने पक्ष में किया जा सके। रोटी सिकेगी या जलेगी, इसका फैसला तो चुनाव में ही होगा क्योंकि, लोकतंत्र की यही रीति है।



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