मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा: ऐतिहासिक कदम, इसका इतिहास और संभावित प्रभाव Explainer


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की चर्चा की। उन्होंने इस कानून के लागू होने के महत्व पर बल दिया, जिसे सरकार के तीसरे कार्यकाल में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। UCC का उद्देश्य भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक कानून लागू करना है, जो विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मामलों में समान नियम प्रदान करेगा। मोदी ने इस कानून के लाभों को उजागर करते हुए कहा कि यह समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करेगा। इसके साथ ही, उन्होंने UCC के विरोध में उठ रही चिंताओं का भी उल्लेख किया, जो विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों से आ रही हैं।


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बड़ी बात Updated On :

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) भारत में एक समान व्यक्तिगत कानूनों की व्यवस्था को लागू करने की योजना है। इसका उद्देश्य सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, और गोद लेने जैसे मामलों में समान नियमों का निर्धारण करना है। वर्तमान में भारत में व्यक्तिगत कानून धार्मिक आधार पर विभाजित हैं, जैसे हिंदू कानून, शरिया कानून, आदि। UCC का लक्ष्य इन भिन्नताओं को समाप्त करना और सभी नागरिकों को समान कानूनी अधिकार प्रदान करना है।

 

UCC की आवश्यकता:

भारत की विविधता और विभिन्न धार्मिक समूहों के कारण व्यक्तिगत कानूनों में भिन्नता है। इस विभाजन के कारण न्याय की असमानता और सामाजिक असमानता हो सकती है। UCC का उद्देश्य इस असमानता को समाप्त करना और सभी नागरिकों के लिए एक समान कानूनी ढांचा प्रदान करना है। यह नागरिकों को समान न्याय, सुरक्षा, और अधिकार सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

 

इतिहास:

UCC का विचार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में शामिल किया गया था, जो कहता है कि राज्य को पूरे भारत के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करना चाहिए। इसका उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना और विभिन्न धर्मों के बीच समानता को बढ़ावा देना है।

 

 क्या कहता है भारतीय संविधान!

भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के तहत, राज्य को अपने नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने का प्रयास करना चाहिए। चूंकि नीति निर्देशक तत्व न्यायिक रूप से लागू नहीं होते, अदालतें UCC के कार्यान्वयन को सीधे लागू नहीं कर सकतीं।संविधान के निर्माताओं ने राष्ट्रीय एकता और लिंग न्याय को बढ़ावा देने के लिए UCC की आवश्यकता को महसूस किया, जो धार्मिक संबद्धताओं से स्वतंत्र हो।

UCC की चर्चा का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिश शासन के दौरान, 1835 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसमें भारतीय कानूनों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान भी UCC पर चर्चा हुई और इसे एक दीर्घकालिक लक्ष्य के रूप में शामिल किया गया।

 

वर्तमान स्थिति:

वर्तमान में, प्रत्येक व्यक्ति के लिए लागू कानून उसकी समुदाय और/या धर्म पर निर्भर करता है। भारत में लागू होने वाले तीन प्रमुख व्यक्तिगत कानून संहिताएं हैं:

हिंदू मैरिज एक्ट: विभिन्न अधिनियमों द्वारा शासित जैसे हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 आदि, जो धार्मिक शास्त्रों और परंपराओं पर आधारित हैं।

मुस्लिम पर्सनल लॉ: धार्मिक कानून और शरीअत पर आधारित, जिसमें विवाह, उत्तराधिकार, विरासत आदि शामिल हैं।

क्रिश्चियन पर्सनल लॉ: भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 द्वारा नियंत्रित, जो सभी ईसाई धर्मावलंबियों के नागरिक मामलों को कवर करता है और धार्मिक शास्त्रों द्वारा शासित है।

 

यूसीसी पर मौजूदा सरकार की प्रतिबद्धता:

वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने UCC को अपनी प्राथमिकता के एजेंडे में शामिल किया है। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में UCC को लागू करने का वादा किया था। बीजेपी का मानना है कि UCC भारतीय समाज को एकजुट करेगा और सभी नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित करेगा। पार्टी के नेताओं का कहना है कि UCC का लागू होना देश में सामाजिक समरसता और कानून के शासन को मजबूत करेगा।

 

संभावित परिणाम…

 

UCC लागू होने पर कई महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं:

 

1. समान व्यक्तिगत कानून: वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग कानून हैं, जैसे हिंदू कानून और शरिया कानून। UCC लागू होने से ये सभी कानून एकीकृत हो जाएंगे, जिससे सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू होंगे।

2. समान अधिकार और सुरक्षा: UCC के माध्यम से महिलाओं और अन्य कमजोर समूहों को समान कानूनी अधिकार और सुरक्षा मिल सकेगी। विशेषकर, उत्तराधिकार और तलाक के मामलों में समानता सुनिश्चित की जाएगी।

3. न्याय की सरलता: वर्तमान में व्यक्तिगत कानूनों की जटिलता और भिन्नता के कारण न्याय प्राप्त करना कठिन हो सकता है। UCC के लागू होने से न्याय प्रक्रिया को सरल और समान बनाया जा सकेगा।

4. सामाजिक एकता: UCC का उद्देश्य सभी धार्मिक समुदायों के बीच समानता और एकता को बढ़ावा देना है। यह समाज में भेदभाव को समाप्त करने में मदद कर सकता है और एक समान नागरिक पहचान को बढ़ावा दे सकता है।

5. संवैधानिक और कानूनी चुनौती: UCC के लागू होने पर कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों द्वारा विरोध हो सकता है। इसके संवैधानिक और कानूनी पहलुओं पर गहन चर्चा और विश्लेषण की आवश्यकता होगी।

 

राजनीतिक विरोध:

यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रस्ताव को लेकर कई राजनीतिक विरोध भी सामने आए हैं। कुछ विपक्षी दल और धार्मिक संगठनों का कहना है कि UCC के लागू होने से धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात हो सकता है और विभिन्न धर्मों की सांस्कृतिक विशिष्टताओं की रक्षा पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इसे एक विवादास्पद मुद्दा बताते हुए इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ मानने की बात की है। उनका तर्क है कि UCC धार्मिक विविधता और संस्कृति की स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के विरोध के बिंदु

1. धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: विरोधी दलों का कहना है कि UCC लागू होने से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। वर्तमान में धार्मिक समुदायों को उनके पारंपरिक व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार जीने की स्वतंत्रता प्राप्त है, और UCC इसके खिलाफ हो सकता है।

2. सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता की कमी: कई आलोचकों का तर्क है कि UCC भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को कमजोर कर देगा। अलग-अलग धर्मों और समुदायों के अपने-अपने सांस्कृतिक और धार्मिक नियम होते हैं, और UCC इन विशेषताओं को समाप्त कर सकता है।

3. संविधानिक समस्याएँ: कुछ संविधानिक जानकारों का मानना है कि UCC लागू करने से मौजूदा संविधानिक प्रावधानों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों में टकराव उत्पन्न हो सकता है। यह बहुलतावादी समाज में सभी धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के सिद्धांत के खिलाफ हो सकता है।

4. विरोधी समुदायों की आपत्तियाँ: विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों ने UCC के खिलाफ विरोध जताया है, यह मानते हुए कि यह उनके धार्मिक प्रथाओं और विश्वासों के खिलाफ हो सकता है। उदाहरण के लिए, मुस्लिम समुदाय ने शरिया कानून के खिलाफ UCC को एक खतरे के रूप में देखा है।

5. अवैज्ञानिक और असमान कार्यान्वयन: आलोचक मानते हैं कि UCC का कार्यान्वयन जटिल और असमान हो सकता है। विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हैं, और UCC को एक समान तरीके से लागू करना व्यावहारिक रूप से कठिन हो सकता है।

6. विवाद और विरोध का संभावित कारण: UCC के लागू होने से सामाजिक और राजनीतिक विवाद बढ़ सकते हैं। यह धार्मिक समुदायों के बीच तनाव और विभाजन को बढ़ा सकता है, जिससे समाज में अराजकता और असंतोष फैल सकता है।

7. भ्रष्टाचार और प्रशासनिक समस्याएँ: UCC के कार्यान्वयन के दौरान भ्रष्टाचार और प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। लागू करने में कमी और असमर्थता के कारण न्याय की प्रक्रिया में दिक्कतें उत्पन्न हो सकती हैं।

8. पारंपरिक और आधुनिक मान्यताओं में अंतर: UCC को लागू करने से पारंपरिक और आधुनिक मान्यताओं के बीच टकराव हो सकता है। यह बदलाव उन लोगों के लिए कठिन हो सकता है, जो पारंपरिक तरीके से जीवन जीने में विश्वास करते हैं।

 

 

यूनिफॉर्म सिविल कोड एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देना है। यह कानून धार्मिक भेदभाव को समाप्त करने और सभी नागरिकों के लिए समान कानूनी सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा। मौजूदा सरकार, विशेषकर बीजेपी, ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं और UCC को लागू करने की प्रतिबद्धता दिखाई है। हालांकि, इसका कार्यान्वयन जटिल हो सकता है और विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच संवाद और समझौते की आवश्यकता होगी। राजनीतिक विरोध और संवैधानिक चुनौतियाँ भी UCC के लागू होने की राह में अड़चन पैदा कर सकती हैं।


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