दमोह उपचुनावः राहुल सिंह के तय होने के बाद भी सिद्धार्थ मलैया क्यों बने हुए हैं सबसे महत्वपूर्ण चेहरा!


सिद्धार्थ चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में अगर उम्मीदवारी को लेकर पार्टी अपना निर्णय बदलती है तो ठीक है नहीं तो संभव है कि वे अपने लिए अपनी राह ख़ुद तैयार करें।


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भोपाल। प्रदेश में फिलहाल दमोह के उपचुनावों को लेकर राजनीति तेज है। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस के बागी विधायक राहुल सिंह लोधी को भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार तय कर दिया है और अगर भाजपा से राहुल सिंह जीतते हैं तो यह दमोह की राजनीति पूरी तरह बदलने वाला होगा।

हालांकि राहुल सिंह की राह में सबसे बड़ी मुश्किल पूर्व मंत्री और प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेताओं में रहे जयंत मलैया और उनके पुत्र साबित हो रहे हैं। जयंत मलैया चुनावी राजनीति से दूर होने की इच्छा जता चुके हैं और स्वभाविक तौर पर उनके उत्तराधिकारी सिद्धार्थ मलैया हैं।

सिद्धार्थ अपने पिता के साथ दमोह में पिछले करीब दो दशकों से सक्रिय रहे हैं। उनकी पहचान पार्टी के एक पढ़े लिखे युवा नेता के रुप में है। बताया जाता है कि सिद्धार्थ चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में अगर उम्मीदवारी को लेकर पार्टी अपना निर्णय बदलती है तो ठीक है नहीं तो संभव है कि वे अपने लिए अपनी राह ख़ुद तैयार करें।

ऐसे में सिद्धार्थ कांग्रेसी खेमे में भी जा सकते हैं। बताया जाता है कि वे कांग्रेस के से लगातार संपर्क में हैं। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ इस पूरे मामले पर नज़र रखे हुए हैं और वे खुद भी सिद्धार्थ को कांग्रेस में लाने के लिए प्रयासरत हैं। यह भी एक वजह हो सकती है कि कांग्रेस ने अब तक अपने उम्मीदवार तय नहीं किया है। अगर ऐसा होता है कि भाजपा से एक मज़बूत पकड़ वाला नेता छिटक सकता है।

स्थानीय राजनीति के हिसाब से सिद्धार्थ के लिए ऐसा ज़रूरी हो गया है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर उनके पिता और उनके परिवार के राजनीतिक अस्तित्व पर गहरा संकट आना तय है और यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी ने इस पर पहले विचार नहीं किया।

हालांकि भाजपा के नेता मलैया परिवार के कांग्रेस की ओर मुड़ने की संभावना को ज्यादा बल नहीं देते। वे मानते हैं कि जयंत मलैया कभी पार्टी नहीं छोड़ेंगे और सिद्धार्थ अपने परिवार के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते हैं।

सिद्धार्थ मलैया चुनाव के निर्णय को लेकर अब तक चुप हैं लेकिन उनके सर्मथक मुख़र हैं। उनके करीबियों के मुताबिक यह क्षेत्र की राजनीति बदलने और उस पर से मलैया परिवार का प्रभाव खत्म करने की एक सोची-समझी साज़िश है और यह दमोह की रीजनीति को घोर जातिवाद में जकड़ने की भी साज़िश है।

दरअसल दमोह में अब लोधी फैक्टर काफी चल रहा है। सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल की दमोह की राजनीति में एंट्री के बाद से ही यहां लोधी वर्चस्व बढ़ रहा है। पटेल के आने के बाद उन्होंने अपना वर्चस्व बनाना शुरु किया और जयंत मलैया  कमजोर भी हुए।

राहुल सिंह लोधी भी सांसद के करीबी माने जाते हैं। वहीं दमोह में फिलहाल जबेर का विधायक धर्मेंद्र सिंह लोधी और भाजपा जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह लोधी हैं। इसके अलावा जिला पंचायत में भी लोधी समाज से आने वाले कई सदस्य हैं। वहीं जिले में एक बड़ी संख्या लोधी वोटरों की है। जो जीत-हार का निर्णय कर सकता है। राहुल सिंह लोधी को इसी वर्ग से उम्मीद है। हालांकि यहां अन्य जातियों की संख्या भी कम नहीं है और यह संख्या काफी कुछ बदल सकती है।

  • लोधी वोट करीबः 16 हज़ार
  • ब्राम्हण करीबः 18 हजार
  • दलित करीबः 25 हजार
  • पटेल करीबः 8 हजार
  • जैन और वैश्य करीबः 25 हजार

सिद्धार्थ के सर्मथकों के मुताबिक उन्हें टिकिट नहीं देना सही नहीं क्योंक राहुल सिंह को पार्टी पहले ही राज्यमंत्री के ओहदे वाला एक पद दे चुकी थी। वहीं अगर केवल परिवारवाद के कारण सिद्धार्थ का टिकिट काटा जा रहा है तो किसी दूसरे  पुराने भाजपाई को उम्मीदवार बनाना चाहिए था क्योंकि इस तरह कांग्रेस की ओर से आने वाले हर नेता को पद देकर भाजपा अपने ही नेताओं में असुरक्षा पैदा कर रही है।


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