इमरती के बहाने बसपा ने थामा भाजपा का हाथ, मायावती ने सभी सीटों पर मांगे वोट


कांग्रेस के विरोध में अगर भाजपा की बजाए बसपा को वोट मिलते हैं तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होना तय है। मायावती वैसे भी कमलनाथ सरकार के पिछले कार्यकाल में संतुष्ट नहीं थीं। वहीं कांग्रेस ने उनके साथ राजस्थान में जो किया वह भी उनके लिए भुलाने के काबिल बात  नहीं हैं। जाहिर है कमलनाथ का यह बयान बसपा और भाजपा को साथ आने का एक नई वजह दे रहा है।  


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भोपाल। उपचुनावों के दौरान चुनावी सभा में दिए गए एक बयान ने मध्यप्रदेश में राजनीति की नई दिशा दे दी है हालांकि राजनीति इस दिशा में उतने ही दिनों तक चलेगी जब तक कोई और नेता इस तरह का बयान नहीं देता। फिलहाल इस नई दिशा ने एक गठबंधन का रास्ता भी खोल दिया लगता है।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा मंत्री इमरती देवी को आइटम कहने के बाद सियासी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय जनता पार्टी के अलावा अब कमलनाथ के विरोध में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती भी उतर आई हैं।

उन्होंने ट्वीट कर कमलनाथ के बयान को अतिशर्मनाक और अतिनिंदनीय बताया है। अपने इस ट्वीट में मायावती ने राजनीतिक सही-गलत का भी पूरा ख्याल रखा है। उन्होंने मंत्री इमरती देवी को केवल डबरा विधानसभा से चुनाव लड़ रही एक दलित महिला कहकर ही संबोधित किया है।

मायावती भले ही भाजपा वाली इमरती देवी के अपमान पर कमलनाथ से नाराज हों, लेकिन उन्होंने इसे अपने पक्ष में मोड़ने के लिए इमरती देवी की की बजाए बसपा के लिए वोट मांगे हैं।  उन्होंने दलित समुदाय के लोगों से सभी 28 सीटों पर बसपा के लिए वोट करने की अपील की है।

कांग्रेस के विरोध में अगर भाजपा की बजाए बसपा को वोट मिलते हैं तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होना तय है। मायावती वैसे भी कमलनाथ सरकार के पिछले कार्यकाल में संतुष्ट नहीं थीं। वहीं कांग्रेस ने उनके साथ राजस्थान में जो किया वह भी उनके लिए भुलाने के काबिल बात  नहीं हैं। जाहिर है कमलनाथ का यह बयान बसपा और भाजपा को साथ आने का एक नई वजह दे रहा है।

इसके अलावा एक अन्य लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो बहुजन समाज पार्टी को अहम बना रहा है वह यह है कि  साल 2018 के उपचुनावों मे  बहुजन समाज पार्टी को 5.11 प्रश वोट मिले थे।  इनका एक बड़ा वोट बैंक ग्वालियर चंबल क्षेत्र में हैं।

इस बार यहां सोलह सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। ऐसे में बसपा को यहां अपने लिए बड़ी संभावनाएं भी नजर आ रही हैं। मार्च में हुए सियासी उलटफेर के बाद यहां दोनों ही दलों में भीतरघात की संभावनाएं भी हैं।

ऐसे में एक बड़ा फायदा बसपा को हो सकता है। बसपा की इसे समझ चुकी है और उन्होंने अपने कैडर को अंदरूनी तौर पर काम करने के लिए यहां सक्रीय कर रखा है।

वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए यह मौका कमलनाथ को घेरने के लिए सबसे उमदा साबित हुआ है। अब चुनावी मुद्दों से ज्यादा कमलनाथ के बयान पर ही भाजपा के नेता ज्यादा बात कर रहे हैं।

ट्विटर पर जहां हैशटैग माफी मांगो कमलनाथ चलाया जा रहा है तो वहीं जमीन पर कमलनाथ के खिलाफ मौन प्रदर्शन किए जा रहे हैं। इंदौर में खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया इन प्रदर्शनों में शामिल हुए। भाजपा द्वारा प्रदेश भर में कई स्थानों पर इस तरह के प्रदर्शन करने की योजना है।


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