सुप्रीम कोर्ट ने बीते बृहस्पतिवार को अलीपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) को आदेश दिया कि वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और दो अन्य के खिलाफ बलात्कार के आरोपों पर अपने ‘न्यायिक दिमाग’ का इस्तेमाल करें और मामले की फिर से जांच कर आगे की कार्रवाई तय करें।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली खंडपीठ ने 63 पन्नों के फैसले में यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, ‘हम आरोपों के गुण-दोष और मजिस्ट्रेट को किस प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, इस सवाल पर जाने का इरादा नहीं रखते हैं, क्योंकि यह एक ऐसा पहलू है जिस पर मजिस्ट्रेट को पहले विचार करना चाहिए और विवेकपूर्ण तरीके से और कानून के अनुसार निर्णय लेना चाहिए।’
साल 2018 में पश्चिम बंगाल में एक महिला ने भाजपा नेताओं कैलाश विजयवर्गीय, जिष्णु बसु और प्रदीप जोशी पर उसके साथ बलात्कार किए जाने का आरोप लगाया था। महिला की शिकायत को सीजेएम द्वारा खारिज कर दिया गया था।
सीजेएम ने तर्क दिया था कि कथित घटना के दो साल बाद पुलिस जांच का आदेश देने के लिए साल 2020 में उनकी ओर से आवेदन दायर किया गया था।
हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीजेएम के आदेश को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि दो साल की देरी के संबंध में केवल सुनवाई के दौरान विचार किया जाना चाहिए, न कि जांच के लिए शिकायत दर्ज करने के स्तर पर।
हाईकोर्ट ने महिला की शिकायत को वापस सीजेएम के पास भेज दिया था, जो आगे मामले पर स्वतंत्र निर्णय लेंगे।
सीजेएम ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
जस्टिस शाह ने फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और एफआईआर दर्ज करने के सीजेएम के आदेश को रद्द कर दिया।
शीर्ष अदालत ने पाया कि सीजेएम ने हाईकोर्ट के आदेश को पूरी तरह गलत तरीके से समझा।
जस्टिस शाह ने कहा, ‘हमें सूचित किया गया था कि मजिस्ट्रेट ने रिमांड पर धारा 156 (3) के तहत एफआईआई दर्ज करने का निर्देश देते हुए एक आदेश पारित किया है।
उन्होंने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश और निर्देशों को गलत तरीके से समझा है।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीजेएम को पहले स्वतंत्र रूप से जांच करनी चाहिए और आरोपों पर अपने विवेकपूर्ण दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए, उसके बाद ही एफआईआर दर्ज करने या न करने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि सीजेएम आरोपों की प्रारंभिक जांच का आदेश भी दे सकता है।
समाचार एजेंसी आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि शिकायत करने में देरी के सवाल की जांच करते समय अदालतों को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि एक महिला के लिए सामने आना और बलात्कार या यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाला बयान देना मुश्किल होता है।
आरोपियों की पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता कोई कमजोर महिला नहीं थी।
वह एक अनुभवी सामाजिक/राजनीतिक कार्यकर्ता थी, उनका बलात्कार सहित एफआईआर दर्ज करने का इतिहास रहा है।
उन्हें पहले अन्य अपराधों के लिए तत्काल अभियुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और वास्तव में कई शक्तिशाली लोगों के खिलाफ पुलिस का इस्तेमाल किया था।
वकील ने शिकायत को प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए आरोप लगाया कि 31 अगस्त, 2018 को दर्ज एक एफआईआर में उसने एक तीसरे व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया था, जो भाजपा का कार्यकर्ता है।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि नवंबर 2018 में कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दो लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया और घटना के बाद उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई।
पीड़िता ने दावा किया था कि पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं की तो उसके बाद उन्होंने मजिस्ट्रेट अदालत में आवेदन देकर निचली अदालत से नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आग्रह किया था।
साभार: द वायर