भोपाल गैस त्रासदी का कचरा निपटान: सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से किया इनकार, हाईकोर्ट के फैसले को दी मान्यता


सुप्रीम कोर्ट ने पीथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी के रासायनिक कचरे के निपटान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट की टास्क फोर्स समिति की निगरानी में निपटान की प्रक्रिया जारी रहेगी।


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बड़ी बात Updated On :

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 27 फरवरी 2025 को, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्देश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें भोपाल गैस त्रासदी स्थल से 337 मीट्रिक टन खतरनाक रासायनिक कचरे को पीथमपुर में निपटाने का आदेश दिया गया था। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने संबंधित पक्षों को अपनी आपत्तियाँ हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी है।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को नोटिस जारी किया था, जिसके बाद 18 फरवरी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 27 फरवरी से 10 मीट्रिक टन कचरे के परीक्षण निपटान (ट्रायल रन) का आदेश दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि हाईकोर्ट ने 15 तकनीकी सदस्यों की एक टास्क फोर्स समिति गठित की है, जो कचरे के निपटान की पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रही है।

कामत ने यह भी बताया कि 2013 और 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद दो परीक्षण निपटान सफलतापूर्वक किए गए थे। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि जब निपटान के उपाय किए गए, तो दावा किया गया कि 11 सार्वजनिक प्रतिनिधियों में से 8 ने सहमति दी थी, लेकिन अब वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आकर कहते हैं कि उन्होंने ऐसी कोई सहमति नहीं दी। इसके अलावा, प्रस्तुत की गई परीक्षण रिपोर्ट्स यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) की बजाय किसी अन्य निजी संयंत्र की प्रतीत होती हैं।

भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक संगठन के वकील ने बताया कि संबंधित संयंत्र में उन विषाक्त गैसों की निगरानी नहीं की जाती, जिनकी नियमों के तहत आवश्यकता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कचरे के निपटान के लिए बेहतर वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह नोट किया कि हाईकोर्ट द्वारा गठित टास्क फोर्स समिति में राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI), राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) जैसे उच्च स्तरीय तकनीकी विशेषज्ञ निकाय शामिल हैं। इन विशेषज्ञ संस्थाओं की प्रासंगिक विशेषज्ञता और हाईकोर्ट द्वारा मामले की पर्याप्त समीक्षा को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। संबंधित पक्षों को हाईकोर्ट के समक्ष अपनी आपत्तियाँ और सुझाव प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी गई है।

यह निर्णय उन चिंताओं के बीच आया है, जिनमें पीथमपुर में कचरे के निपटान से स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर संभावित प्रभावों को लेकर सवाल उठाए गए थे। हाईकोर्ट की टास्क फोर्स समिति की निगरानी में परीक्षण निपटान की प्रक्रिया जारी रहेगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निपटान प्रक्रिया सुरक्षित और प्रभावी हो।


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