नई दिल्ली। विवादित कृषि कानूनों के विरोध में बुधवार को सिख संत बाबा राम सिंह ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद किसान आंदोलन के और भी ज़ोर पकड़ने की बात की जा रही है।
कहा जा रहा है कि संत ने कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन पर सरकार के रवैये से दुखी होकर यह कदम उठाया है। अब तक किसान आंदोलन में 20 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है।
बाबा राम सिंह के पार्थिव शरीर को KCGMC लाया गया है, लेकिन उनके अनुयायी (संगत) ने उनके पोस्टमार्टम से साफ इंकार कर दिया है। राम सिंह का पार्थिव शरीर अब नानकसर गुरुद्वारा सिंघारा ले जा रहा है, यहां हजारों की संख्या में उनके अनुयायी जमा हो चुके हैं।
यहां काफी तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए गुरुद्वारा परिसर के बाहर भारी संख्या में पुलिसबल तैनात किया गया है।
यह घटना करनाल में बॉर्डर के पास हुई है। संत बाबा राम सिंह के पास से सुसाइड नोट भी मिला है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि
वे किसानों की हालत नहीं देख सकते हैं। उन्होंने लिखा कि केंद्र सरकार विरोध को लेकर कोई ध्यान नहीं दे रही है, इसलिए वे किसानों, बच्चों और महिलाओं को लेकर चिंतित हैं। अपने हक के लिए सड़कों पर किसानों को देखकर बहुत दिल दुख रहा है। सरकार न्याय नहीं दे रही है। जुल्म है। जुल्म करना पाप है। जुल्म सहना भी पाप है।”
इस घटना के बाद किसान आंदोलन और भी तेज़ होने की संभावना है। इसके बाद किसान आंदोलन के पक्षधर कई राजनेता केंद्र सरकार के रवैये की निंदा कर रहे हैं।
Even as GOI remains stubborn & refuses to be moved by suffering of #farmers, Baba Ram Singh ji Singhra wale has committed suicide after being unable to see the suffering around him at Kundli border. Hope GOI wakes up to the tragedy & repeals the 3 agri laws before it’s too late. pic.twitter.com/z0Ruv8VCYa
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) December 16, 2020
बाबा राम सिंह पिछले काफी दिनों से इस आंदोलन में शामिल थे। इस दौरान वे लगातार सेवा कार्य भी कर रहे थे। विवादित कृषि कानूनों की ख़िलाफ़त करने वाले किसानों में सबसे ज्यादा संख्या पंजाब और हरियाणा के किसानों की है।
अब तक कई बार की बातचीत हो चुकी है लेकिन केंद्र सरकार किसानों की मांगे मानने को तैयार नहीं है। वहीं किसानों को भी लगातार दूसरे किसान संगठनों और खाप पंचायतों का सर्मथन भी मिल रहा है। इस बीच केंद्र सरकार से मिलकर कुछ किसान संगठनों ने कृषि कानूनों को अपना सर्मथन दिया है।