आंबेडकर जन्मस्थली पर कब्जे की लड़ाई, विवाद और खूनी संघर्ष के बाद समिति कार्यालय पर लटका ताला


21 अगस्त को भारत बंद के दौरान डॉ. आंबेडकर की विरासत पर विवाद ने नया मोड़ ले लिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आंबेडकर से जुड़े स्मारकों पर कब्जा जमाने की कोशिश की, जिसके कारण 18 अगस्त को स्मारक समिति के दो गुटों के बीच मारपीट हुई। इस घटना के बाद प्रशासन ने स्मारक को सील कर दिया है। समिति के भीतर उठे विवादों ने एक नई राजनीति का संकेत दिया है, और स्थिति अब भी अनसुलझी है।


Aman Gupta
बड़ी बात Updated On :

एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण के चलते बीते 21 अगस्त को भारत बंद का आयोजन किया गया। बंद का आह्वाहन करने वाले राजनीतिक दल और देश भर के दलित संगठन आंशिक ही सही लेकिन भारत बंद कराने में सफल रहे। दलित अधिकारों और राजनीति की बात हो आंबेडकर का जिक्र न आये यह कैसे संभव है? 21 अगस्त को भी आंबेडकर केंद्र में थे। 

 

जबकि हर कोई आंबेडकर को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में देश की सरकार चला रहा संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भला कैसे पीछे रह सकता है। इसके लिए वह डॉ. आबेडकर से जुड़े स्थानों पर कब्जा कर दलितों के बीच अपनी पहुंच बनाने की कोशिश के साथ ही बाबा साहब को संघ की विचारधारा में समाहित करने का प्रयास कर रहा है। और यह सब करने के लिए आंबेडकर की जन्मस्थली, और उनसे जुड़े स्थानों से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है?  

 

अपनी इन्हीं कोशिशों के चलते संघ ने साल 2020 में अपने एक स्वयं सेवक राजेश वानखेड़े को स्मारक समिति का सचिव भी बनवा दिया था। सचिव बनने से पहले राजेश दो बार इंदौर नगर निगम के पार्षद का चुनाव भी लड़ चुके थे। राजेश के सचिव बनने के बाद से स्मारक परिषर में संघ से जुड़ी गतिविधियों की शुरुआत होने लगी, जिसे सरकारी समर्थन भी हासिल था। 

राजेश की नियुक्ति के बाद से ही बहुत सारे लोग उनकी कार्यशैली पर सवाल उठा रहे थे  और राजेश का विरोध कर रहे थे। हाल ही में समिति के सदस्यों के बीच का आपसी विवाद खुलकर सामने आ गया और बीते 18 अगस्त को दोनों ही गुटों में मारपीट और हाथापाई तक हो गई, जिसमें कई लोग घायल हैं। प्रशासन ने इस झगड़े के बाद स्मारक को सील कर दिया है, जिसके चलते ऑफिस का कामकाज और दर्शानार्थियों के आने पर रोक लगा दी गई है। 

 

बीते काफ़ी दिनों से यह चर्चा का विषय है कि कैसे स्मारक की परंपराओं और नियमों को अपने फायदे के लिए बदला जा रहा है। बीते डेढ़ साल में स्मारक और उससे जुड़ी राजनीति में इतना बदलाव हो गया है कि अब वहां पत्थरबाजी और लाठी डंडों का प्रयोग किया जा रहा है। समिति के सदस्य एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। एक दूसरे के खिलाफ बयान जारी कर रहे हैं। 

राजेश के साथ ही समिति में शामिल हुए और बाद उपाध्यक्ष बने प्रकाश वानखेड़े बात करते हुए बताते हैं कि, 18 अगस्त की घटना वाले दिन पुरानी समिति के 20 लोगों ने विरोध के तौर पर स्मारक स्थल पर विरोध प्रदर्शन, ज्ञापन और बाद में एक टिफिन पार्टी का आयोजन किया था जिसका उद्देश्य सबके साथ मिलकर आगे की रणनीति पर चर्चा करनी थी। इसी लिए सभी लोग वहां पहुंचे हुए थे। इसी दौरान हम लोगों ने स्मारक के प्रबंधक से स्मारक स्थल की चाभी मांगी, जिसे देने से उसने मना कर दिया और कहा कि आप लोग अब समिति के सद्स्य नहीं हैं, उसके बाद भी अगर आपको अंदर जाना है तो सचिव या फिर अध्यक्ष का पत्र लेकर आइये। इसके बाद विवाद की शुरुआत हुई, इस दौरान राजेश के परिवार के सदस्य जो कि उसके द्वारा गठित एक और समिति के सदस्य के तौर शामिल हैं वहां पहले से मौजूद थे। इसी दौरान आपस में कहां सुनी के बाद एक दूसरे के साथ हाथापाई हुई जिसमें कई लोगों को गंभीर चोटें आईं। 

राजेश वानखेड़े

स्मारक समिति के दोनों ही पक्ष एक दूसरे पर फर्जी समिति होने का आरोप लगा रहे हैं। प्रकाश वानखेड़े कहते हैं कि किसी कहने से क्या होता है? इस समिति का गठन 2020 में किया था, भंते सुमेध बोधि जिसके अध्यक्ष थे, राजेंद्र वाघमारे तथा प्रकाश वानखेड़े उपाध्यक्ष और राजेश वानखेड़े को उपाध्यक्ष बनाया गया था।

 

समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि महाराष्ट्र के अकोला में रहते थे, और रोज के कामकाज में उनका कोई दखल नहीं होता था, इसके चलते सचिव होने के कारण राजेश ही इसके लिए जिम्मेदार थे, स्मारक स्थल पर हो रही हर गतिविधि के लिए वह ही जिम्मेदार थे। समिति के बाकि सदस्यों ने जब उनसे समिति के कामकाज का हिसाब मांगना शुरु किया, जिसके लिए वह हर बार कोई बहाना बनाकर टालते देते थे। ऐसा करते करते तीन साल गुजर गये, इस साल उनसे फिर हिसाब मांगा गया तो उन्होंने फिर से टालमटोली की, जिसके चलते 14 अप्रैल को समिति के दो तिहाई सदस्यों ने सर्वसम्मति से उन्हें समिति से बाहर कर दिया। 

 

प्रकाश कहते हैं कि ऐसा करने का अधिकार केवल अध्यक्ष के पास होता है, लेकिन इस मामले में समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि बीमार होने के कारण यात्रा करने और समिति का काम देख पाने में अक्षम थे, अपनी जगह पर उन्होंने, मुझे( प्रकाश वानखेड़े) इसके लिए नियुक्त किया था, कि मैं इसका काम देखूं। मेरे पास सुमेध बोधि का वह पत्र भी है, जो उन्होंने मुझे कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए लिखा था। 

पिछले दिनों स्मारक पर हुए विवाद के बाद स्थिति कुछ ऐसी थी। कितने लाठी डंडे चले थे कि लोग खून से लथपथ दिखाई दे रहे थे।

राजेश वानखेड़े कहते हैं कि उनके ऊपर लगाए जा रहे सभी आरोप वेबुनियाद हैं। वह कहते हैं कि जिन अनियमितताओं का आरोप लगाया जा रहा है वह कभी हुईं ही नहीं। किसी को शक है तो ऑडिट रिपोर्ट देख ले, लेकिन ऑडिट रिपोर्ट मांगने पर कुछ दिनों बाद देने की कहते हैं। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि वह अभी बाहर हैं, और लौटकर आने पर कुछ भी कर पाएंगे। 

मोहन राव वकोड़े

वाकोड़े के इस सवाल का जवाब देते हैं समिति के पूर्व सदस्य जो राजेश वानखेड़े के साथ ही स्मारक समिति में शामिल हुए थे। नाम न बताने की शर्त पर बात करते हुए कहते हैं कि स्मारक में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। जब उनसे पूछा गया कि जब यह सब हो रहा था तब आप क्यों चुप थे, इस सवाल पर वह कहते हैं, हम सभी समाज जन, बाबा साहब के मिशन को आगे बढ़ाने के इरादे से यहां से जुड़े थे, पैसा कमाना किसी का उद्देश्य था नहीं, मिशन के काम को आगे बढ़ाना सेवा का काम है। दूसरा छोट-मोटे झगड़े हर जगह होते हैं। तो यहां भी थे, और वह स्मारक समिति के काम को लेकर ही थे। दूसरी बात यह थी कि बाबा साहब कि जन्मस्थली  पर देश दुनिया की नजरें होती हैं, ऐसे में अगर इस तरह की बातें बाहर जातीं तो बदनामी होती। इस वजह से सब लोग चुप रहे और इंतजार किया कि शायद ठीक हो जाए। 

 

राजेश के साथ ही समिति में शामिल हुए राजीव आंबोरे कहते हैं कि ऐसा कई बार हुआ कि हम लोगों से कोरे कागज पर दस्तखत ले लिए गये, इसका कारण सिर्फ यही था कि स्मारक समिति का संचालन था, कुल मिलाकर हम लोगों को बेवकूफ बनाया गया।

 

राजेश के साथ समिति में शामिल रहे लोगों से जब इस बारे में पूछा कि आप लोगों ने इसकी कहीं शिकायत की क्या कि स्मारक समिति में इस तरह की गतिविधियां चल रही हैं? इस सवाल पर प्रकाश वानखेड़े कहते हैं कि हां हमने हर जगह इसकी शिकायत दी, जिसमें इंदौर संभाग के कमिश्नर, इंदौर के डीएम तथा महू के एसडीएम सभी को इस सबंध में अवगत कराया गया है।  

 

बता दें कि स्मारक के संचालन के लिए जो एक व्यक्ति जिम्मेदार है वह समिति का अध्यक्ष जो कि भारतीय बौद्ध महासभा का कोई भंते होता है, उसे ही स्मारक का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। एक परंपरा है वर्तमान अध्यक्ष अपने जीते जी ही अगले अध्यक्ष की घोषणा कर देता है, भंते सुमेध बोधि उसी परंपरा के आखिरी अध्यक्ष थे, जिनकी बीती मई में मृत्यु हो गई। 

 

उनकी मृत्यु से पूर्व दोनों ही पक्षों का दावा है कि स्मारक समिति के अध्यक्ष भंते सुमेधे बोधि उनके साथ हैं। प्रकाश वानखेड़े का दावा है कि सुमेध बोधि ने कार्यसमिति के संचालन के लिए उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया था, और यह काम उन्होंने 13 मार्च को जबकि स्मारक समिति बाबा साहब के जन्मदिन की तैयारियों में व्यस्त होती है। इसके पीछे का कारण पूछने पर प्रकाश कहते हैं कि उनकी तबितयत खराब रहती थी, और उनका निवास था यवतमाल में जिसके चलते बार बार यहां आना उनके लिए संभव नहीं था। जिसके चलते उन्होंने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी। 

 

आंबेडकर जयंती समारोह के बाद जब भंते वापस लौट रहे थे तब राजेश और उसके गुंड़ों ने भंते का अपहरण करके उनसे अपने समर्थन में एक पत्र लिखवाया और उसी पत्र के आधार पर फर्जी सदस्यों की नियुक्तियां की और खबर छपवाई कि भंते उनके साथ हैं। 

 

इस पूरे मसले पर दोनों पक्षों के दावों से इतर भंते सुमेध बोधी ने इस संबध में एक पत्र सहायक पंजीयक कलेक्टर इंदौर को लिखा गया है, इस पत्र में लिखा गया है कि हटाए गये सचिव राजेश वानखेड़े ने उनके द्वारा पहले से दस्तखत किये चेक बुक और लेटरहेड के दुरुपयोग का डर दिखाकर समिति के नियमों के विरुद्ध जाकर प्रबंध कार्यकारिणी के पांच सदस्यों प्रकाश वानखेड़े, प्रकाश निकड़े, राजू अंभोरे, सुनील खंडेराव और शशिकांत वानखेड़े के खिलाफ जबरदस्ती झूठे शपथपत्र तथा आरोपपत्र पर दस्तखत करवाए गये। 

 

भंते द्वारा लिखे इसी पत्र में आगे लिखा है कि वह इनका खंडन करते हैं तथा 1 मई को आयोजित की गई साधारण बैठक और निर्वाचन सूची का विरोध एवं खंडन करता हूं।( हमारे द्वारा इस पत्र की सत्यता को सत्यापित नहीं की जा सकती है) इस पूरे मामले की एक प्रमुख कड़ी स्मारक समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि की मृत्यु हो गई है, इसलिए उनका पक्ष जान पाना मुश्किल है। 

 

बात करते हुए राजेश वानखेड़े कहते हैं कि विवाद की प्रमुख जड़ पांच सदस्यों का निष्कान है, पांच सदस्यों के निष्कान का कारण पूछने पर वह कहते हैं कि जन्मस्थली स्मारक कोई मामुली जगह नहीं है, देश विदेश की नजर यहां होती है, खासकर आंबेडकर और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए यह एक तीर्थ है, इसके साथ ही यहां देश के बड़े बड़े नेताओं का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में इसको चलाने के लिए क्षमतावान और प्रबुद्ध व्यक्ति की आवश्यकता है। जिन लोगों को निकाला गया है वह इस समिति के लायक नहीं हैं, रोज कमाने खाने वाले लोग हैं, ऐसे में उनको स्मारक की महत्ता का अंदाजा कैसे होगा, जिसके चलते वह हर काम में बाधा डालते थे। इसलिए उनको निष्काषित किया गया था ताकि नए और क्षमतावान लोगों को लाया जा सके। 

 

समिति के पूर्व सचिव रह चुके मोहनराव वाकोड़े कहते हैं कि यह सब नियत का मामला है, बाबा साहब के मिशन और दलित समाज को आगे ले जाने के लिए पद और प्रतिष्ठा ज्यादा जरूरी नहीं है। वह बताते हैं कि वानखेड़े स्मारक समिति के संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं जिसके लिए यह सब खेल खेला जा रहा है। वह कहते हैं कि समिति का एक महत्वपूर्ण पद कोषाध्यक्ष उन्होंने अपने मामा अरुण इंगले को बनाया हुआ था। जिसके चलते वह यहां आने वाले दान, चंदे और फंड का दुरुपयोग आसानी के कर पाता था। 

 

एक समय में राजेश के करीबी रहे और वर्तमान में विरोधी गुट में शामिल राजू अंभोरे कहते हैं कि अरुण इंगले राजेश के सगे मामा हैं, उसके बाद भी उसने राजेश की कार्यशैली से दुखी होकर दो-तीन बार इस्तीफा दिया लेकिन राजेश उनको हर बार मनाकर ले आता था। कार्यकारिणी समिति ने राजेश को बर्खास्त कर दिया तब उसके साथ केवल दो ही लोग थे एक अरुण इंगले दूसरा डॉ अनिल गजभिए। और इन तीनों ने मिलकर ही 18 अगस्त की साजिश रची जिससे की स्मारक और समिति का नाम खराब कर सके। 

 

स्मारक समिति पर करीब से नजर रखने वाले एक पूर्व सदस्य नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि स्मारक पर जो भी हुआ वह किसी तीसरे की साजिश है बाकि सभी लोग मोहरे हैं। वह कहते हैं कि इस सबके पीछे संघ और उससे जुड़े लोग हैं जो स्मारक पर कब्जा करना चाहते हैं, सीधे तौर पर वे ऐसा कर पाने की स्थिति में नहीं है। संघ और सरकार के दखल के कारण ही प्रशासन भी इस मसले पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। अगर यह विवाद जल्दी नहीं सुलझा तो सरकार अपना नुमाइँदा यहां बैठा देगी। 

 

महू के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सोलंकी कहते हैं कि स्मारक पर हो रही सारी गतिविधियां चंदे के खेल को लेकर हैं। वह बताते है, “स्मारक में हर साल करोड़ों रुपये का दान आता है, जो दानपेटी में डाला जाता है। दानपेटी साल में एक बार जिले के प्रमुख अधिकारियों के सामने खोली जाती है। जबकि, बीते कई वर्षों से उसको अकेले में या फिर छोटे स्तर के अधिकारियों के सामने खोलकर सब खेल कर दिया जाता है।”

सोलंकी आगे कहते हैं, “उससे बड़ा खेल यह है कि राजेश वानखेड़े जब से सचिव बने हैं, उन्होंने जन्मस्थली स्मारक के लिए ऑनलाइन चंदा लेना शुरू किया है। दान देने वाले लोगों को ‘इनकम टैक्स’ में छूट भी प्रदान की जाती है, यहां तक तो सब ठीक है; लेकिन सवाल यह है कि स्मारक स्थल पर विकास किस चीज का हो रहा है? क्योंकि वहां पर कोई काम कराने की आपको अनुमति नहीं है। स्मारक के तीनों तरफ सेना की जमीन है, ऐसे में जो भी काम कराया जाएगा वह सेना और शासन के द्वारा किया जाएगा। फिर आप किस बात का पैसा ले रहे हैं, और उस पैसे से क्या काम कराया गया?”

दिनेश सोलंकी स्मारक स्थल पर पैसे वसूलने के हथकंडों के बारे में बताते हुए बीते दिनों की एक घटना का जिक्र करते हैं, “एक नाबालिग प्रेमी जोड़ा स्मारक के अंदर कुछ करते हुए सीसीटीवी में पकड़ा गया था। सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग को आधार बनाकर उन्होंने उन बच्चों के माता-पिता से चार हजार रुपये वसूल किए: यह कहकर कि उनके बच्चे स्मारक की पवित्रता को नष्ट कर रहे थे। लेकिन, स्मारक की ओर से उस वसूली की कोई रसीद या फिर कोई पर्ची नहीं दी गई जिससे पता चले कि उनसे यह शुल्क किस आधार पर वसूला गया।”

 

(उक्त खबर दिल्ली के पत्रकार अमन गुप्ता ने मोजो स्टोरी के लिए लिखी है। हम उनकी अनुमति से इसे देशगांव पर साभार प्रकाशित कर रहे हैं।)

 


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