लोकसभा के बाद आज राज्यसभा में जाएगा महिला आरक्षण विधेयक, जानिये 2010 के मुकाबले कितना बदल चुका है उच्च सदन


साल 2010 में जब पिछली बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया था तब से अब तक राज्यसभा में काफी बदलाव आ चुका है। तब की सबसे बड़ी पार्टी अब छोेटी है और कई नए दल अब यहां नजर आ रहे हैं।


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लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण पर विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में प्रवेश करेगा और यह विधेयक अब पारित होने के लिए तैयार है। हालांकि ऐसा पहले भी होता रहा है लेकिन इस बार विधेयक के पारित होने की पूरी संभावना है क्योंकि उच्च सदन 13 वर्षों के अंतराल के बाद काफी बदला हुआ है। साल 2010 में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब समाजवादी पार्टी जैसे एक अहम दल ने अपना रुख बदल लिया था लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं।

लोकसभा में बुधवार को सपा और बसपा ने कुछ चेतावनी के साथ संविधान संशोधन विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने कहा, ”हमने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, लेकिन सवालों के साथ। हम ओबीसी कोटा, अल्पसंख्यक कोटा और महिला आरक्षण का तत्काल कार्यान्वयन चाहते थे।

वहीं 13 साल पहले साल 2010 को याद करें तो जब विधेयक पेश किया गया था तो सपा सांसद नंदकिशोर यादव और कमाल अख्तर सभापति हामिद अंसारी की मेज पर चढ़ गए थे और यादव ने एक माइक्रोफोन भी उखाड़ दिया था, जिसके बाद उन्हें और सांसद वीरपाल सिंह यादव को निलंबित कर दिया गया था।

साल 2010 में भाजपा ने विधेयक का सर्मथन किया था और उस समय  दिवंगत नेता अरुण जेटली ने बहस में अपनी पार्टी का नेतृत्व किया था। बिल का जोरदार समर्थन करते हुए जेटली ने कहा था कि सदन में आते समय उन्हें एहसास हुआ था कि वह उस दिन इतिहास रचने में भागीदार बनेंगे।

जयंती नटराजन ने कांग्रेस की ओर से विधेयक के पक्ष में बात की थी और बृंदा करात ने सीपीएम सदस्य के रूप में इसका समर्थन किया था। हालाँकि तत्कालीन केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा था कि विधेयक के भीतर ओबीसी के लिए उप-कोटा रखना मुश्किल होगा क्योंकि 1931 में हुई जातिगत जनगणना के अभाव में ओबीसी आबादी पर कोई डेटा नहीं था। हालांकि इसके बाद यूपीए सरकार ने जून 2011 में यह जनगणना शुरु की थी और इसे  सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) नाम दिया था लेकिन इसके बाद आज तक इस जनगणना के परिणाम जारी नहीं किए गए हैं। कांग्रेस की मांग यह भी है कि उस दौरान की गई जनगणना के परिणाम जारी करवाए जाएं।

इसके बाद अब कांग्रेस ने इस विषय पर अपना रुख बदला है, अब वे ओबीसी के लिए आरक्षण के साथ बिल चाहते हैं।

राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में सोनिया गांधी और राहुल गांधी विधेयक के समर्थन के साथ महिला कोटे के भीतर ओबीसी कोटा की मांग कर रहे हैं।

साल 2010 में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव ने पुराने संसद भवन के बाहर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां सांसद अक्सर विरोध प्रदर्शन करते थे, और ओबीसी महिलाओं को विधेयक से लाभ नहीं मिलने पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की थी। तब से अब तक राज्यसभा की संरचना में भारी बदलाव आया है। . 2010 में  71 सदस्यों के साथ कांग्रेस उच्च सदन में सबसे बड़ी पार्टी थी जो अब 30 सांसदों तक सिमट गई है।

2008 में 44 सीटों के साथ भाजपा बहुत पीछे थी, जो 2010 के अंत तक बढ़कर 51 हो गई। आज, 94 सदस्यों के साथ भाजपा उच्च सदन में सबसे बड़ी पार्टी है।
2010 में तृणमूल कांग्रेस के पास सिर्फ दो राज्यसभा सांसद थे, लेकिन अब 13 हैं।

AAP, जो 2010 में अस्तित्व में नहीं थी, के राज्यसभा में 10 सांसद हैं।

2008 में 12 राज्यसभा सांसद और 2010 के अंत तक 18 राज्यसभा सांसद रखने वाली बसपा के पास आज कोई राज्यसभा सांसद नहीं है।

वाईएसआरसीपी, जो तब अस्तित्व में नहीं थी, अब उच्च सदन में 9 सांसद हैं।

2008 में सीपीएम के पास 15 सांसद थे – 2010 के अंत तक यह संख्या मामूली रूप से गिरकर 13 हो गई लेकिन अब केवल 5 सांसद उनके पास हैं।

अलग राज्य की मांग को लेकर तेलंगाना में उभरी बीआरएस के आज सात सांसद हैं, लेकिन 2010 में वह मौजूद नहीं थे।

वहीं तब और अब में द्रमुक, जद (यू), बीजद और राजद जैसी पार्टियों की मौजूदगी में मामूली अंतर है।

इस दौरान  राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मामूली रूप से बढ़ा है। आज, उच्च सदन में महिलाओं की संख्या 13.02 प्रतिशत है। 2008 और 2010 के बीच, प्रतिशत 9.79 प्रतिशत से 11.15 प्रतिशत तक भिन्न था।


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