एकलबारा की बरसी: प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही जहां विस्थापित हो गए राम, नर्मदा की धाराओं में डूब गया गांव


साल भर बाद, एकलबारा गांव की बस कुछ ही निशानियां बची हैं, जो इस बात की गवाह हैं कि यहां कभी ज़िंदगियां बसी थीं। बीते साल नर्मदा का पानी जब गांव को निगल गया, तब से यहां के लोग अपनी बर्बाद जमीन और उजड़े घरों को देखते हुए, दिल में बस एक ही सवाल लिए जी रहे हैं—कब उनका जीवन फिर से सामान्य होगा? विकास के बड़े-बड़े दावों के पीछे, इन गांवों की कहानियां छिप जाती हैं, लेकिन असली सच्चाई इन्हीं कहानियों में बसी है। लोग आज भी सरकार की ओर देख रहे हैं, लेकिन उनकी आंखों में अब उम्मीद से ज्यादा सवाल हैं।



नदियां जीवन देती हैं, उनके किनारे मानवता विस्तार पाती है। नदियां चाहती हैं कि उन्हें बहने दिया जाए लेकिन लोग और शासक कई बार ऐसा नहीं चाहते। नदियों को बांधों से रोका जाता है और फिर जीवन देने वाली नदियां कई लोगों के लिए जीवन लेने वाली धाराएं बन जाती हैं। नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले कई गांवों की कहानी ऐसी ही है। कई गांव अब कहानी बनकर ही रह गए हैं। अब लोगों की नहीं बल्कि इन गांवों की बरसी मनाई जाती है जो नर्मदा की धाराओं में खो गए। धार जिले में नर्मदा किनारे बसा एकलबारा भी ऐसा ही एक गांव है। जो पिछले साल 16 सितंबर 2023 को नर्मदा की लहरों में खो गया था। यह बाढ़ मानवनिर्मित कही जाती है, जिससे नदी के किनारे बसे कई गांवों में पानी भर गया था।

गांव वाले याद करते हुए बताते हैं कि उस रोज शनिवार का दिन था, दोपहर तक लोग अपने रोजाना के कामों में लगे थे। सब कुछ सामान्य लग रहा था लेकिन उनके नजदीक ही गांव की मौत दबे पांव आ रही थी। दोपहर तक जो धाराएं गांव के किनारे पर थीं शाम होते-होते वे गांव के बीच आ चुकी थीं। कुछ ही घंटों में गांव में पानी भरा, पहले खेत डूबे फिर आंगन और फिर डूबे घर। गांव वाले धीरे-धीरे सब कुछ डूबते हुए देख रहे थे।

लोग कहते हैं कि वो राम मंदिर भी नहीं बचा जो शायद संवत 1235,  11 सदी में दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर के वंशजों ने यहां बनाया था। मंदिर अब खंडहर है, बताया गया कि जब मंदिर में भी पानी भरने लगा तो दीवारें टूट गईं इसके बाद जब पानी उतरा तो खंडित हो चुके मंदिर से राम लला की मूर्ती को निकालकर पुजारी अपने घर ले आए जो डूब से बचा हुआ था। इस तरह रामलला को शरण मिल गई लेकिन इलाके के बड़े काश्तकारों का संपन्न गांव अब एक साल बाद एक खंडहर के रूप में दिखाई दे रहा है और राम अब तक विस्थापित ही हैं, पानी बढ़ने के साथ नर्मदा की लहरें आकर इसे अपने में समा लेती हैं और पानी घटने पर इन खंडहरों को छोड़कर चली जाती हैं। गांव में अब केवल तीन परिवार ही रहते हैं।

Three houses are built in the middle of the ruined Ekalbara village in Dhar district, photo Rajendra Joshi
खंडहर हो चुके एकलबारा गांव के बीच बने हैं तीन घर, फोटो राजेंद्र जोशी

एकलबारा गांव, जो नर्मदा नदी के किनारे बसा था, सरदार सरोवर बांध के बैकवॉटर के क्षेत्र में आता है। यह बांध भारत के सबसे बड़े बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है, जिसे गुजरात, मध्य प्रदेश, और महाराष्ट्र के क्षेत्रों को सिंचाई, पीने के पानी, और बिजली प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था। हालांकि, इस परियोजना का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि कई गांव, खासकर नर्मदा घाटी के आसपास बसे गांव, इसकी डूब क्षेत्र में आ गए। एकलबारा उन गांवों में से एक था जिसे पहले डूब क्षेत्र के खतरे में रखा गया, लेकिन बाद में सरकारी तकनीकी गणना ने इसे खतरे से बाहर करार दिया।

किसानों की समृद्धि पर पानी फिर गया

एकलबारा के हर घर में खेती होती थी। यहां के किसान मुख्य रूप से सोयाबीन, गेंहू, और चने की खेती करते थे। यह इलाका सम्पन्न किसानों के गांव के रूप में जाना जाता था। जगदीश मंडलोई, जिनके परिवार का लगभग 200 क्विंटल चना, 100 क्विंटल सोयाबीन, और 50 क्विंटल गेंहू इस बाढ़ में बह गया, बताते हैं कि जब तक उन्हें मुआवजा मिला, उनकी फसल का कोई अता-पता नहीं था। उनके खाते में मात्र 13,000 रुपये आए, जबकि नुकसान कई लाख रुपए का हुआ था। कई किसानों की यही कहानी है, जिनकी फसलें नर्मदा के पानी में समा गईं।

गांव के दृश्य
फोटो: राजेन्द्र जोशी

जब बाढ़ आई, तो प्रशासन की ओर से न तो किसी प्रकार की चेतावनी दी गई और न ही कोई मुनादी कराई गई। गांव के बुजुर्ग देवीसिंह दादा कहते हैं कि आमतौर पर जब जलस्तर बढ़ता है, तो मुनादी कराई जाती है, लेकिन इस बार प्रशासन ने इसे नजरअंदाज कर दिया। जगदीश मंडलोई बताते हैं कि तहसीलदार उस दिन दोपहर में गांव में आए थे और पानी बढ़ने की चेतावनी दी थी, लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि गांव तुरंत खाली किया जाए।

बिजली कटने से बढ़ा संकट

लोकेन्द्र सिंह बताते हैं कि सुबह से ही गांव की बिजली कटी हुई थी। जब उन्होंने बिजली विभाग से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि पूरे गांव की बिजली काट दी गई है, लेकिन इसका कारण नहीं बताया गया। बिजली कटने से गांव वाले समय रहते खतरे का अंदाजा नहीं लगा पाए, और इसीलिए उन्हें अपने घरों से निकलने का भी मौका नहीं मिला।

36 घंटे बाद भी बर्बादी का मंजर

36 घंटे तक गांव में पानी भरा रहा, जिसके बाद जब पानी उतरा तो गांव खंडहर में बदल चुका था। मिट्टी से बने पुराने घर, जो भारी बरसात में भी नहीं गिरते थे, पानी के तेज बहाव और दबाव के कारण ध्वस्त हो गए। हर घर में जमा अनाज पानी में समा चुका था। गांव की गलियों में खंडहर मकान और सड़े हुए अनाज की बदबू के बीच, अब यहां इंसानों से ज्यादा आवारा पशु और जीव-जंतु दिखते हैं।

तबाह हुआ एकलबारा गांव

राहत और पुनर्वास का अभाव

मनोज डोंगरसिंह बताते हैं कि लगभग 40 परिवारों को आज तक तात्कालिक राहत राशि नहीं मिली है। सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित इस गांव का डूब स्तर 143.04 मीटर पर था, जिसे नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने बाद में घटाकर 139.52 मीटर कर दिया। यह तकनीकी गणना ग्रामीणों के लिए विनाशकारी साबित हुई। उंकार दादा जैसे कई लोग, जिन्हें इस डूब से बाहर कर दिया गया था, आज भी अपने परिवार के साथ डूब क्षेत्र में ही रह रहे हैं। 13 परिवार ऐसे हैं जिन्हें अब तक पुनर्वास का कोई लाभ नहीं मिला है।

एकलबारा निवासी ग्रामीण

एकलबारा के गांव में अब तेंदुओं की बढ़ती हलचल ग्रामीणों के लिए नया संकट बन चुकी है। वन विभाग ने तेंदुओं को पकड़ने के लिए पिंजरे लगाए थे, लेकिन इस प्रयास में एक बकरी की जान चली गई। बकरी के मुआवजे के नाम पर आज तक कुछ नहीं मिला। रघुवीर सिंह और श्याम सिंह बताते हैं कि गांव का एकता अब टूट चुकी है। पहले गांव वाले सरदार सरोवर बांध के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करते थे, लेकिन अब राजनीति ने इस एकता को खत्म कर दिया है।

पुनर्वास और भविष्य की चुनौतियां

सरदार सरोवर बांध के प्रभावित गांवों के पुनर्वास की योजना कई सालों से विवादों में घिरी रही है। सरकार की ओर से कई पुनर्वास योजनाएं बनाई गईं, लेकिन ज़मीन पर उनका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो सका। आज भी एकलबारा के कई ग्रामीण सरकारी भवनों में शरण लिए हुए हैं, लेकिन उनका भविष्य अंधकार में है।

 



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